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चौदहवाँ परिच्छेद दिनों के बाद श्रीपाल ने एक दूत भेजकर शंख पुर से अरिदमन को बुला भेजा, और सुरसुन्दरी को उसके हाथों में सौंपकर, उसे विदा किया। अनन्तर श्रीपाल की असीम कृपा से दोनों दम्पत्ति सानन्द जीवन व्यतीत करने लगे।
पाठकों को स्मरण होगा, कि बाल्यावस्था में सात सौ कोढ़ियों ने श्रीपाल की रक्षा की थी। उनको जब इस समय यह मालूम हुआ, कि हमारे राजा उज्जयिनी आये हैं, तब वे लोग भी उज्जयिनी दौड़ आये और श्रीपाल के दर्शन कर बहुत ही प्रसन्न हुए। श्रीपाल ने भी उन सबों को राणा की उपाधि से विभूषित कर उन्हें अपनी सेना का नायक बनाया।
चम्पानगर से आकर मतिसागर मन्त्री ने भी श्रीपाल के सम्मुख सिर झुकाया। उन्होंने पूर्ववत् फिर उसे उसके पदपर नियुक्त कर दिया। इसीप्रकार अनेक स्वजन-स्नेही उनके पास आये। सबों की समुचित अभ्यर्थना कर उन्हें अपने यहाँ आश्रय प्रदान किया। सब लोग उनकी छत्रछाया में रहकर सानन्द जीवन व्यतीत करने लगे।
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