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पहला परिच्छेद हो रहा था; किन्तु राजकुमार को बचाने के लिये इससे बढ़कर दूसरा कोई उपाय न था। इसीलिये उसने कोढ़ियों की बात स्वीकार कर ली। कोढ़ियों ने उसे सवारी के लिये एक टट्ट दे दिया। रानी ने राजकुमार को गोद में ले, चारों ओर से अपना शरीर ढंक लिया, और उसी पर बैठ कोढ़ियों के साथ वह अपना रास्ता तय करने लगी।
यह दल कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि पीछे से अजीतसेन के सवार आते हुए दिखाई दिये। कोढ़ियों के नजदीक आने पर उन्होंने पूछा-क्या तुमने किसी स्त्री को एक बच्चे के साथ इस रास्ते से जाते देखा है?
कोढ़ियों ने साफ इनकार किया; परन्तु सवारों को सन्देह हुआ, इसलिये वे कोढ़ियों से नाना प्रकार के प्रश्न करने लगे। कोढ़ियों ने उत्तर दिया कि- हमने किसी स्त्री को न तो जाते ही देखा है, न वह हमारे ही साथ है, फिर भी यदि तुम्हें विश्वास न हो तो हमारे दल की भली भाँति तलाशी ले सकते हो, किन्तु इस बात का ध्यान रहे कि हमें छूने से तुम्हें भी यही रोग हो जाने की सम्भावना है।
कोढ़ियों की बातें सुन सवारों ने अधिक जाँचपड़ताल करना अनावश्यक समझा और वहीं से सब वापस लौट गये।
अब राजकुमार व रानी को किसी प्रकार का भय न रहा; किन्तु दुर्भाग्यवश कोढ़ियों के साथ रहने और उनके
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