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________________ ११० ग्यारहवाँ परिच्छेद न हुआ। कुछ समय के बाद जब वे लोग सचेत हुए, तब अपनी यह अवस्था देखकर विस्मय पूर्वक बड़े ही लज्जित हुए। अब राज-कुमारी की प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी। उसने कुमार के गले में वर-माला पहना दी। उसे कुमार का प्रकृत रूप दिखाई देता था, इसलिये वह उनपर तनमन से मुग्ध हो रही थी, किन्तु दूसरे लोगों को वह रूप न दिखाई देता था, इसलिये राज-कुमारी को ऐसे विरूप पति की प्राप्ति देखकर वे दुःखित होने लगे। अब कुमार ने अपना प्रकृत रूप धारण कर लिया। उनका वह रूप देखते ही चारों ओर से धन्य-धन्य की आवाज आने लगी। राजकुमारी और श्रीपाल की इस अनुपम जोड़ी की लोग मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करने लगे। अनन्तर राजा ने बड़े समारोह के साथ दोनों को विवाह-सूत्र में आबद्ध कर दिया। अब श्रीपाल अपनी इस नूतन वधू के साथ वहीं रहने और आनन्द करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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