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श्रीपाल-चरित्र
१०९ के, अपनी-अपनी कला प्रदर्शित करने के बाद, राजकुमारी ने भी अपना कौशल दिखाया। मध्यस्थ पण्डितों ने कहा :-"धन्य है, राज-कुमारी को! यहाँ जितने राजकुमार उपस्थित हैं, उनके और राज-कुमारी के कला-कौशल में जमीन आसमान का अन्तर है। किसी को भी राजकुमारी से श्रेष्ठ नहीं ठहराया जा सकता।"
पण्डितों का यह निर्णय सुनकर, राजकुमारों का चेहरा पीला पड़ गया। वे ऐसे निस्तेज हो गये जैसे सूर्य के सम्मुख तारा और चन्द्र निस्तेज हो जाते हैं। यह देखकर कुमार श्रीपाल आगे बढ़े। राज-कुमारी ने उनके हाथ में एक वीणा दी। वीणा देखते ही कुमार ने उसके गुण दोष समझ लिये। उन्होंने कहा:- “यह वीणा ठीक नहीं है। इसकी तुम्बड़ी में दोष रह गया है और इसका यह दण्ड भी जला हुआ है।”
कुमार की यह बातें सुन, राज-कुमारी और पण्डितों को परमानन्द हुआ। उसी समय उनके हाथ में दूसरी वीणा दी गयी। कुमार ने भी अपना कौशल दिखाना आरम्भ किया। उनके वीणा-वादन में ऐसी मोहिनी, ऐसा माधुर्य और ऐसा जादू था, कि सब सुनने वाले निद्राभिभूत हो गये। इस समय कुमार को एक परिहास करने की सूझी। उन्होंने सब लोगों के वस्त्राभूषण उतार कर सभामण्डप में उनका ढेर लगा दिया; लेकिन लोगों को होश
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