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________________ दसवाँ परिच्छेद भय के कारण काँप उठा। उसी समय उसने दोनों रानियों की शरण ली। यह देख, चक्रेश्वरी ने कहा :- "हे पापात्मा! सतियों की शरण लेने के कारण आज तो मैं तुझे छोड़ देती हूँ, किन्तु यह अच्छी तरह स्मरण रखना, कि अब कभी अन्याय का विचार भी मन में लाया, तो तुझे जिन्दा न छोडूंगी।" धवल सेठ को इस प्रकार शिक्षा दे, देवी ने दोनों रानियों को अपने पास बुलाकर कहाः- “तुम लोग जरा भी चिन्ता न करो। तुम्हारे पति कुशल हैं। वे अपनी नयी ससुराल में मौज कर रहे हैं। आज के तीसवें दिन तुम्हें वे अवश्य मिलेंगे। लो, मैं तुम दोनों को एक-एक पुष्पमाला देती हूँ यत्न-पूर्वक रखना। ज्यों-ज्यों समय बीतता जायगा, त्यों-त्यों इनकी सुगन्ध बढ़ती जायगी। इन मालाओं की विशेषता यह है, कि इनके प्रताप से तुम्हारे सतीत्व की रक्षा होगी। गले में इन मालाओं को पहने रहना, फिर यदि तुम्हें कोई कुदृष्टि से देखेगा तो वह कुछ दिनों के लिये अन्धा हो जायेगा।" इतना कह, चक्रेश्वरी देवी सदल-बल अन्तर्धान हो गयी। साथ ही सब तूफान भी शान्त हो गया। समुद्र फिर अपनी पूर्वावस्था में आ गया और सब नौकायें यथानियम अग्रसर होने लगीं। यह सब हाल देख कर, धवलसेठ के वे तीनों मित्र उसके पास पहुंचे। उन्होंने कहा:-“सेठजी! हमारी बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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