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________________ श्रीपाल - चरित्र हमें निराधार बना दिया है ! इसके पाशविक - बलके सामने हम लोग कैसे ठहर सकेंगी? उत्तम तो यही होगा, कि हम भी समुद्र में गिरकर अपना प्राण दे दें, ताकि एक साथ ही इन सब झंझटों का अन्त आ जाय !” जिस समय दोनों रानियाँ यह बातें सोच रहीं थीं, उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा । समुद्र में बड़ी-बड़ी तरंगे - हिलोरें उठने लगीं। आकाश बादलों से घर गया । चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार दिखलाई देने लगा । बादलों की गरजना और बिजली का चमकना बहुत ही भयावना मालूम होता था । इसी समय वायु के कई झोंके इतने जोर के आये कि नौकाओं के पाल की रस्सियाँ टूट गयीं। सब लोगों के हृदय काँप उठे। कई लोग अनेक तरह के संकल्प विकल्प करते थे। सबको अपने-अपने प्राण की पड़ी थी । सब कोई मन-ही-मन ईश्वर का स्मरण कर रहे थे। इसी समय डमरू बजाते हुए, हाथ में खड्ग लिये, एक क्षेत्रपाल प्रकट हुए, उनके पीछे बावन वीरों की सेना के साथ, हाथ में चक्र घुमाती हुई, सिंह-वाहिनी चक्रेश्वरी देवी ने पदार्पण किया। उन्होंने आते ही धवल सेठ को बुरी सलाह देनेवाले, उस चौथे मित्र को मार डाला। अनन्तर क्षेत्रपाल ने उसके शरीर को खंड-खंड कर समुद्र में फेंक दिया। अपने मित्र की यह गति देख कर धवल के देवता कूच कर गये । उसका दुर्बल हृदय Jain Education International For Private & Personal Use Only ८५ www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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