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________________ नवाँ परिच्छेद .सेवक की भाँति उनकी आज्ञा की राह देख रहे हैं। तुरन्त ही उन सवारों का सरदार कुमार की ओर अग्रसर हुआ! उनके समीप पहुँच, उसने कुमार को बतलाया कि इस देश का नाम कोकण है। ठाणापुरी नामक नगरी में इसकी राजधानी है। यहाँ के राजा का नाम वसुपाल है। वह बहुत ही प्रजावत्सल हैं। अभी कुछ ही दिन की बात है कि एक दिन राजा अपनी राज-सभा में बैठे हुए थे। अचानक एक नैमित्तिक वहाँ आ पहुँचा। राजा ने उसकी समुचित अभ्यर्थना करने के बाद उसे कहा :-“यदि आप निमित्त शास्त्र के ज्ञाता हैं तो बतलाइये कि, मेरी मदनमञ्जरी नामक कन्या का पति कौन होगा? वह कहाँ मिलेगा? हम लोग उसे कैसे पहचान सकेंगे? और किस मास की किस तिथि को उससे हमारी भेंट होगी?" नैमित्तिक ने कहा:- "हे राजन् ! हमारा निमित्तशास्त्र ध्रुव की भाँति अटल है। सुनिये, वैशाख शुक्ला दशमी के दिन ढ़ाई प्रहर दिन चढ़ने पर समुद्र के तटपर यदि आप खोज करेंगे तो कन्या के पति से आपकी अवश्य भेंट हो जायगी। वह एक जंगल में चंपक वृक्ष के नीचे सोता हुआ मिलेगा। उसे आराम पहुंचाने के लिये उस वृक्ष की छाया स्थिर हो जायगी।" . नैमित्तिक की इस बात पर राजा को विश्वास न हुआ। वे कहने लगे कि :- “यह केवली थोड़े ही है, जो इस प्रकार सब बातें बतलाता है? इस प्रकार संशयशील होने पर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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