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________________ ওও श्रीपाल-चरित्र करते हैं। नवपद का स्मरण करते ही एक मगर ने श्रीपाल को अपनी पीठ पर चढ़ा कर समुद्र-तट पर पहुंचा दिया। हाथ में बँधी हुई 'जल-तरणी जड़ी' और सिद्धचक्र के प्रताप से कुमार को कुछ भी तकलीफ न हुई। मगर ने कुमार को जिस तट पर उतारा था, वह कोकण देश का किनारा था। समुद्र-तटसे कुछ ही दूर चलने पर कुमार को एक जंगल मिला। थकावट के कारण श्रीपाल कुमार एक चम्पक वृक्ष के नीचे लेट गये। लेटते ही उन्हें निद्रा आ गयी। यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से इस समय उनका कोई रक्षक न था, तथापि जिस धर्म ने समुद्र में उनकी रक्षा की थी, वही धर्म इस समय भी उनकी रक्षा कर रहा था। पुण्यात्मा को यदि दुःख मिलता है, तो वह भी उसके लिये सुख का कारण हो पड़ता है। प्रायः उसको कष्ट होता ही नहीं। दावानल उसके लिये मेघ-राशि हो जाता है। भीषण सर्प सुशोभित पुष्प-माला बन जाता है। जल में स्थल, जंगल में-मंगल और विषका अमृत हो जाता है। पुण्य-प्रताप ही ऐसा है। इसके प्रताप से दुर्जनों के भीषण षड्यन्त्र भी बेकार हो जाते हैं और जो कार्य कष्ट पहुँचाने के उद्देश्य से किये जाते हैं, वही मंगल जनक सिद्ध होते हैं। कुछ समय तक सोने के बाद, जब कुमार की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि घुड़सवारों की एक बहुत बड़ी संख्या उनके चारों ओर बड़े कायदेसे खड़ी है और सब लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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