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वराङ्ग चरितम्
प्रकृति - स्थूल तथा सूक्ष्म जगतकी उत्पादिका, जड़ तथा एक शक्तिको प्रकृति कहते हैं यह संसार भरका कारण होते हुए भी कोई इसका कारण नहीं होता है । इसे अव्यक्त, प्रधान आदि शब्दों द्वारा भी कहा है । सत्य-रज-तम गुणोंकी साम्यावस्था ही प्रकृति है । यह अकारण, नित्य, व्यापक, निष्क्रिय, एक, निराश्रित, लिंग अवयव-विवेक चैतन्य हीन सामान्य, स्वतंत्र तथा प्रसव धर्मिणी है ।
महत्-पुरुषके समीप आने पर प्रकृतिमें विकार होता है इस प्रकृतिके प्रथम परिणमनको महत् अथवा बुद्धि कहते हैं यही सृष्टि का
बीज है ।
अहंकार - महत्से अहंकार उत्पन्न होता है । अर्थात् मैं कर्ता-धर्ता आदि हूँ यह भावना ही सांख्य दर्शनका अहंकार है यह त्रिगुणके कारण प्रधान रूपसे तीन प्रकार का होता है ।
कौशिक-कुशिक राजाके अति तप करने पर इन्द्र ही पुत्र रूपसे उनके उत्पन्न हुए थे । ये पुत्र कौशिक बड़े तपस्वी और सिद्ध थे। ये विश्वामित्र नामसे भी ख्यात हैं ।
काश्यप-वैशेषिक दर्शनके प्रणेता कणाद मुनि । इस नामके एक और भी ब्राह्मण ऋषि हुए हैं, जो विष विद्यामें पारंगत थे । महाभारतके अनुसार इन्होंने परीक्षितको फिरसे जीवित किया था ।
गौतम - न्याय दर्शनके प्रवर्तक गौतम ऋषि तथा इनके वंशज । भरद्वाज मुनिका भी गौतम नाम था । एक स्मृतिकार तथा महात्मा बुद्ध के लिए भी गौतम शब्दका प्रयोग हुआ है ।
कौण्डिन्य - कुण्डिन मुनिके पुत्र । इन्हें शिवके कोपसे विष्णुने बचाया था । गौतम बुद्धके प्रधान, वयोवृद्ध शिष्यका नाम भी कौण्डिन्य
था ।
माण्डव्य - वैदिक ऋषि । वाल्यावस्थाके अपराधके कारण यमराजने इन्हें शूली पर चढ़वा दिया था । इस पर ऋषिने यमको शाप दिया था तथा वे पाण्डुके यहां दासीसे उत्पन्न हुए थे ।
वशिष्ठ– सुप्रसिद्ध वैदिक ऋषि । यज्ञस्थलमें उर्वशीको देख कर मित्र और वरुणका चित्त चञ्चल हुआ तथा इनका जन्म हुआ । इन्हें इंद्रने घूस रूपसे ब्राह्मणत्व दिया था । इनकी और विश्वामित्रकी प्रतिद्वंदिता वैदिक साहित्यमें भरी पड़ी है ।
अत्रि - ब्रह्माकी चक्षुसे उत्पन्न वैदिक ऋषि । कर्दम ऋषिकी पुत्री अनुसूया इनकी पत्नी थीं । सप्तर्षियोंके सिवा दस प्रजापतियोंमें भी अत्रिकी गिनती है। इन्होंने भी ऋग्वेदके अनेक मन्त्रोंकी रचना की थी ।
कुत्स - प्रायश्चित्त शास्त्रके प्रणेता ऋषि । इनका धर्म आपस्तम्भ धर्म नामसे ख्यात है तथा गृह्य कल्प- धर्म सूत्रादिमें वर्णित है । अंगिरस -ब्रह्माके द्वितीय पुत्र । इनकी पत्नी शुभ थी । पुत्र बृहस्पति थे तथा इनके छह कन्याएं हुई थीं । इन्होंने ऐसा तप किया था कि इनके तेजसे पूर्ण विश्व व्याप्त हो गया था ।
गर्ग- बृहस्पतिके वंशज वितथ ऋषिके पुत्र । शिवकी आराधना करके इन्होंने चौंसठ अंग ज्योतिष आदिका परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया
था ।
मुद्गल - वैदिक ऋषि । इन्होंने गोत्रों को प्रारम्भ किया था। इनकी पत्नीका नाम इन्द्रसेना था। एक उपनिषद् का भी नाम है। कात्यायन - अत्यन्त प्राचीन वैदिक ऋषि । इन्होंने धर्मशास्त्रोंकी भी रचना की है । ये दो हुए हैं गोभिलपुत्र कात्यायन तथा वरुरुचि (सोमदत्त पुत्र) कात्यायन । प्रथमने अनेक सूत्र ग्रन्थों की रचना की है जो वैदिक धर्मकी मूलभित्ति है । द्वितीयको पाणिनी सूत्रका वार्त्तिककार कहते हैं ।
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