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________________ त्रयोविंशः सर्गः ततो नपेण प्रतिचोद्यमाना वृद्धाः करामापितवेत्रवण्डाः । इतोऽमुतस्ते त्वरया विचेरुस्त्वरध्वमित्येवमुवाहरन्तः ॥ ३१ ॥ स्नानानुलिप्तास्तनुशुक्लवस्त्राः कण्ठावसक्तामललोलमाला। ते ब्रह्मचर्यव्रतपूतगात्रा बभ्रुर्बलोंस्तान्बलिनो युवानः ॥ ३२ ॥ तेषां बलीनां ज्वलनान्पुरस्थान' कृतोपवासाः शुचिशक्लवस्त्राः । दृढव्रताः श्रावकपुण्डरीका मौलि यथा मौलवलिं दधार ॥३३॥ प्रदीपमालामणिमण्डितानां मालाकलापैः परिमण्डितानाम् । विभासतामष्टशतैबलीनां पेतुः पुरस्त्रीनयनोत्पलानि ॥ ३४ ॥ तथा पांचों प्रकारको विपञ्जिका ( हवन सामग्री ) भी प्रचुर मात्रामें तैयार थो ।। ३० ।। उक्त क्रमसे समस्त सामग्री प्रस्तुत हो जानेपर सम्राट वरांगराजने अपने वृद्ध प्रतीहारोंको चलनेका आदेश दिया था। स्वामीका आदेश पाते ही उन्होंने हाथमें बेतका डंडा उठा लिया था ओर तत्परताके साथ इधर-उधर दौड़ते फिरते हुए पूजाकर्ममें नियुक्त सब लोगोंको कहते जाते थे 'शीघ्रता करो, सम्राट तैयार हैं' ॥ ३१ ॥ सामग्रीको मन्दिर यात्रा प्रतीहारका संकेत पाते ही पूजा सामग्री ले जानेके लिए नियुक्त युवक लोगोंने समस्त सामग्रीको उठा लिया था। उन सब बलवान् युवकोंने पवित्र लेप करके खब स्नान किया था, इसके उपरान्त शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण किये थे। उनके गले में हिलती डुलती हुई चंचल मालाएँ पड़ी थी तथा उन दिनों परिपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करनेके कारण उनके शरीर अत्यन्त पवित्र थे॥ ३२॥ इन युवकोंके द्वारा उठायी गयी पूजा सामग्रो इतनो शुद्ध और स्वच्छ थी कि उसकी प्रभासे सारा वातावरण आलोकित हो रहा था। इन युवकोंके आगे प्रधान श्रावक लोग सर्वोत्तम पूजन सामग्रीको मुकुटके ही समान अपने शिरोंपर रखकर लिये जा रहे थे। इन श्रावकोंने पहिलेसे उपवास कर रखा था, शुद्ध धवल वस्त्र धारण कर रखे थे तथा पूजाके समय पालन करने योग्य सब ही व्रतोंको दृढ़तासे निभा रहे थे॥ ३३ ॥ ___ समस्त पूजन सामग्रीके आस-पास मणि तथा दोपोंको आवलियां सजायो गयी थीं, वे सब ओरसे सुन्दर सुगन्धित मालाओंसे वेष्टित थीं तथा उनकी छटा अद्भत ही थी। इस विधिकी एक सौ आठ प्रमाण पूजन सामग्री जब राजसदनसे मन्दिर ले जायी रही थी, तब नगरकी कुलबधुएँ बड़ी उत्सुकतापूर्वक उसे देख रही थीं ।। ३४ ।। ४७ १. [ ज्वलतां पुरस्तात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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