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________________ वराङ्ग चरितम् कुलोचितं राज्यमपोह्य मामकं विभज्य तावत्स्वमनोऽनुवर्तने । कृ'तापराधस्तु मया सहस्व तं नृनाथ इत्येवमयाचत प्रभुम् ॥ ७० ॥ अनुप्रभाष्येवमतीव नीतिविन्नरेन्द्रचित्तं कुलेश्वरोऽहरत् । स्वभावभद्रः कृपया समन्वितो नृपः स तस्मै कृतवाननुग्रहम् ॥ ७१ ॥ प्रसादलाभात्परितुष्टमानसः कृतार्थतां तामवगम्य चात्मनः । मनोहरां मूर्तिमतीमिव श्रियं ददौ सुतां भूपतये मनोहराम् ।। ७२ ।। यया हि भूतिः कनकावदातया मनोहरश्रोणिकुचप्रदेशया । नरेन्द्रपुत्र्या नरदेवसत्तमो न सा विभूतिर्गदितुं हि शक्यते ॥ ७३ ॥ 'हे महाराज ! जो राज्य मेरे वंश में कई पीढ़ियोंसे चला आ रहा है उस मेरे राज्यको आप अपनी इच्छानुसार किसी भी अपने आज्ञाकारीको बाँट दीजिये । किन्तु हे नरनाथ ! मैंने आपके पूज्य पिताजी पर आक्रमण करके जो आपके प्रति अपराध किया है उसे क्षमा कर दीजिये ।' इन शब्दों में वकुलेश्रने वरांगराजसे क्षमा याचना की थी ।। ७० ।। इसमें सन्देह नहीं कि वकुलेश्वर राजनीतिमें बड़ा ही कुशल था इसीलिए ऐसी विनम्र प्रार्थना करके उसने वरांगराज चित्तको प्रसन्न कर लिया था । वरांगराज तो स्वभावसे हो साधु थे, कृपा उनके रोम रोममें समायी थी । अतएव उन्होंने अपने स्वभावानुसार ही उस शत्रुको क्षमा कर दिया था ।। ७१ ।। 'नम्ननावसानो हि '' Jain Education International **** वकुलेश्वरका आत्मा भी ऐसी सरलतासे वरांगराज सदृश महाशक्तिशालीका अनुग्रह प्राप्त करके अत्यन्त संतुष्ट हो गया था। उसे अनुभव हुआ था कि वह अपने आरम्भ किये गये जटिल कार्य में सफल हुआ है। इसके उपरान्त ही शरीरधारिणी लक्ष्मीके समान दर्शकोंके मनोंको बलपूर्वक अपनी ओर आकृष्ट करनेमें समर्थं रूप तथा गुणवती 'मनोहरा' राजपुत्रीको उसने वरांगराजसे व्याह दिया था ॥ ७२ ॥ राजपुत्री मनोहराकी समचतुरस्त्र संस्थानयुक्त देहका रंग तपाये गये विशुद्ध सोनेके समान था, उसका नितम्ब प्रदेश तथा उन्नत स्तन आपाततः मनको आकृष्ट करते थे। ऐसी राजपुत्रीसे संयुक्त होकर श्रेष्ठ वरांगराजकी जो शोभा और सम्पत्ति बढ़ी थी उसका अविकल वर्णन करना तो किसी भी विधिसे शक्य हो ही नहीं सकता है ॥ ७३ ॥ १. [ कृतोऽपराधस्तु ] । २. क यया हि सस्ता । ५३ For Private & Personal Use Only एकविंश: सर्गः [ ४१७ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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