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________________ वराङ्ग चरितम् ArIHARCHAIRAHARMAHARASHPAHARASTROMAMROHARMATIPATTERames द्वात्रिंशदायोजितनाटकानि वृद्धाः किराता विविधाश्च दास्यः । सुशिल्पिनः कर्मकरा विनीता दत्तानि पित्रा विधिवदहित्रे ॥ २२॥ अन्यच्च लोकेऽतिशयप्रवृत्तसुसंस्कृतं द्रव्यमनेकभेदम् । एकोनविंशः क्रीडानुरूपं विधिना विभूत्यै प्रोत्या ददौ भूमिपतिः सुतायै ॥ २३ ॥ सर्ग: सद्रत्नसंस्कारितचारुरूपां दिवाकरांशुप्रतिमां महाहीम् । आरुह्य तो तां शिविका महा प्राचक्षितां सागरवृद्धिगेहम् (?) ॥ २४ ॥ अष्टादशणिगणप्रधानैरष्टादशान्येव दिनानि तत्र । कश्चिद्भटस्यावनिपात्मजायाश्चक्रे विभूति महती महभिः ।। २५ ।। ताम्बूलवस्त्रोत्तमभूषणानि विलेपनं स्रग्वरभोजनानि । प्रस्पर्धयेवाहरहस्तदानीं संप्रेषयन्ति स्म नरेन्द्रपल्यः ॥ २६ ॥ हजार था, एक हजारसे गुणित सौ अर्थात् एक लाख प्रमाण ग्राम दिये थे तथा चौदह कोटि प्रमाण सुवर्ण मुद्राएँ समर्पित की थीं ॥ २१ ॥ ___ इसके अतिरिक्त बत्तीस नाटककी आयोजना करनेवाले (ललित-कला वेत्ता) दिये थे, अन्तःपुरमें रहने योग्य अनेक वृद्ध पुरुष, किरात, सब प्रकारकी दासियाँ, सब तरहके शिल्पकार तथा विनीत कर्मचारी पिताने आवश्यकताका विचार करके अपनी प्रिय पुत्रीको दिये थे ।। २२ ।।। इतना ही नहीं संसारमें महत्ता तथा सुसंस्कृत आदर्श जीवनके लिए आवश्यक सब ही प्रकारके पदार्थ, मनोविनोद, । क्रीड़ा, आदि प्रसंगोंके उपयुक्त सामग्री, तथा विभव-प्रभावके प्रदर्शक सब ही उपकरणोंको महाराज देवसेनने बड़ी प्रोतिके साथ पुत्रीको समर्पित किये थे ।। २३ ।। इस विधिसे विवाह संस्कार समाप्त हो जानेपर वर-वधूको विदाके लिए महा मूल्यवाली पालकीमें बैठाया गया था। उत्तम-उत्तम रत्नोंके जड़ावके कारण पालकीकी शोभा मनोहारी हो गयी। वह सूर्यके किरणोंके समान जगमगा रही थी। इसके उपरान्त विशाल वैभव और पूजाके साथ उन दोनोंने सागरवद्धिके घरमें प्रवेश किया था ॥ २४ ॥ वहाँपर पहुँच जाने पर महा ऋद्धिशाली श्रेणी तथा गणोंके अठारह प्रधानोंने लगातार अठारह दिनतक कश्चिद्भट , [३६४] तथा राजाकी बेटोका बड़े समारम्भपूर्वक स्वागत किया था तथा बड़ी-बड़ी विभूतियाँ भेंट की थीं ॥ २५ ॥ इन दिनों ही महाराज देवसेनकी सब रानियाँ भी प्रतिदिन वस्त्र, उत्तम-भूषण सुस्वादु भोजन, श्रेष्ठतम मालाएँ, । १. [ महाहं ]। Jain Education intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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