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________________ बरांग चरितम् STS Te विधिका पता लग भी जाता है तो क्रोधादि कषायोंकी सहायता के कारण भयंकर विषयरूपी शत्रु नाना प्रकारसे उस आचरण और ज्ञानकी उपासनामें विघ्न करते हैं ॥ ८ ॥ स्वप्नश्च भृत्यो युगचक्रकूर्मा द्यूतं च दास्यं परमाणवश्च । रत्नं तथाक्षश्च निदर्शनानि दशोपदिष्टानि मनुष्यलोके ॥ ९ ।। यथैव मेहः प्रवरो गिरीणां जलाश्रयानामुदधिविशिष्टः । गोशीर्षवृक्षस्तरुषु प्रधानस्तथा भवानां मनुजत्वमाहुः ॥ १० ॥ ग्रहेषु चन्द्रो मृगरामृगेषु नरेषु राजा गरुडोऽण्डजेषु । रत्नेषु वज्र' जलजेषु पद्मं यथा तथा सर्वभवेषु नृत्वम् ॥ ११ ॥ मनुष्यजातिर्ब्रतशीलहीना तिर्यङनराणामशुभं ददाति । दुःखान्यमेयानि च नारकाणा 'मनन्तशः प्रापयतीति विद्धि ।। १२ ।। इस मनुष्यलोक में जीवोंका विभाग समझाने के लिए स्वप्न, सेवक, युग, चक्र, कच्छप, जुआ, धन, धान्य, परमाणु, रत्न और पांसे यह दश उदाहरण दिये हैं ।। ९ ॥ मनुष्यगतिकी प्रधानता समस्त पर्वतोंमें जिस प्रकार सुमेरु उन्नत और विशाल है, नदी, तालाब, झोल, कूप आदि सब प्रकारके जलाशयों में जैसे समुद्र श्रेष्ठ है, संसारके नीम, अश्वत्थ, वर, पीपल, चन्दन आदि सब वृक्षोंमें गोशीर्ष ( गोरोचन ) के पेड़को जैसी प्रधानता है उसी प्रकार नरक, त्रिर्यञ्च मनुष्य और देवगतियोंमें उत्तम कर्मभूमियां मनुष्य ही सर्वोपरि हैं ॥ १० ॥ गुरु, भौम, रवि, शुक्र आदि ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारोंमें जैसा चन्द्रमा है, मृग आदि वन्य पशुओं में जैसी स्थिति मृगों के राजा सिंहकी है, मनुष्यों में जिस प्रकार राजा सबसे श्रेष्ठ, अण्डेसे उत्पन्न होनेवाले पक्षियोंमें जो स्थिति गरुड़को है, रत्नोंमें जो माहात्म्य वज्रका है, जलसे उत्पन्न पदार्थोंमें जैसी कमलकी प्रधानता है, ठीक इसी प्रकार सब भवोंमें मनुष्यभवकी प्रधानता है ।। ११ ।। ऐसा मनुष्य भव ही अहिंसादि व्रत और सामाजिक आदि शीलोंसे हीन होकर इस जीवको तिर्यञ्चगति और कुमानुष जन्मके पतन की ओर ले जाता है। इतना ही नहीं नरक गतिके उन दुःखोंमें झोंक देता है जिनका कोई आदि अन्त नहीं है तथा जिन्हें यह जीव संयम प्राप्त न होनेसे एक, दो बार नहीं अनन्त बार भरता है ॥ १२ ॥ २. म तथा चक्षुनिदर्शनानि । १. क घायं । Jain Education International ३. म कारकाणां । For Private & Personal Use Only AKISA अष्टमः सर्गः [ १३१ ] * www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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