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________________ वराङ्ग चरितम् २ - धर्मामृतके रचयिता श्रीनयसेन ( १११२ ई० ) जटासिंहनन्दिको "चरित्र रत्नाकर रधिकगुणर्सज्" रूपसे स्मरण करते हैं । ' ३ - पाव पंडित अपने पार्श्वनाथ पुराणमें ( १२०५ ) जटाचार्य नामसे वरांग चरितकारकी प्रशंसा करते हैं । ४—अनन्तनाथ पुराणके कर्त्ता जन्ताचार्य ( १२०९ ) " नृपभृत्य वर्धित सुधर्मर श्री जटासिंहनद्याचार्य" रूपसे जटाचार्यका स्मरण करते हैं। ५ - पुष्पदन्तपुराणके निर्माता गुणवर्मं द्वितीय ( १२३० ई० ) भी जटाचार्यको "मुनिपुंगव जटासिंहनन्दि" नामसे प्रणाम करते हैं । करते हैं । ६- श्री कमलभव अपने शान्तीश्वर पुराण में ( १२३५ ई० ) जटासिंहनन्दि नामसे ही वरांगचरितकारका उल्लेख ७- नेमिनाथ पुराणके प्रारम्भमें महाबल कविने ( १२४५ ) भी 'जगती ख्याताचार्य' रूपसे जटासिंहनन्दिका उल्लेख किया है। टाचार्यका निर्देश करनेवाला एकमात्र शिलालेख निजाम राज्य के कोप्पल ( कोप्पन ) नामके स्थानपर पाल्कीगुण्डु पहाड़ीपर मिला है। प्राचीन कालमें यह स्थान सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थान रहा होगा जैसा कि यहाँसे प्राप्त विविध शिलालेखोंसे स्पष्ट है । यहाँपर मिले शिलालेखों में सम्राट् अशोकके भी लेख हैं। प्रादेशिक परम्पराके आधारपर कहा जा सकता है कि मध्ययुगमें भी यह स्थान जैनियोंके लिए पूज्य रहा है । जटाचार्यका निर्देशक लेख अशोकके शिलालेखके ही पास है । पत्थरपर दो चरण खुदे हैं और उनके नीचे कन्नड़ भाषामें दो पंक्तिका लेख भी अंकित है। श्मशानपर कोई स्मारक बनवा " जटासिंहनन्दि आचार्यर पदव चावय्यं माडिसिदों" जैन परम्परामें यह प्रथा प्रचलित थी कि किसी भी पूज्य पुरुषके देहत्याग स्थान अथवा देते थे और उसपर चरण चिह्न खुदवा देते थे। ऐसे स्थानोंको 'निषिदि' नामसे कहा १. सर्ग १, श्लोक १३ ( मैसूर संस्करण १९२४-६ ) । २. सर्ग १, श्लोक १४ । ३. सर्ग १, इलोक १३ ( मैसूर संस्करण १९३० ) । ४. सर्ग १ श्लोक २९ ( मद्रास संस्करण १९३३ ) । ५. सर्ग १, श्लोक १९ ( मैसूर संस्करण १९१२ ) । ५. सर्ग १ श्लोक १४ । ७. कर्नाटक साहित्य परिषद् पत्रिका, जिल्द ३२, सं० ३, पृ० १३८-५४ पर श्री एन० बी० शास्त्रीका 'कोपन- कोप्पण' शीर्षक निबन्ध | ८. हैदराबाद आरकेयोलोजीकल सीरीज, सं० १२ (१९३५) में सी० आर० कृष्णम् चारल लिखित 'कोपबलके कन्नण शिलालेख । For Private & Personal Use Only Jain Education International H भूमिका [९] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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