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श्रीमदरविषेणाचार्यकृतम्
पद्मचरितापरनामधेयं पद्मपुराणम्
षड्विंशतितमं पर्व अतो जनकसम्बन्धं शृणु श्रेणिक ते परम् । निवेदयामि यद्वृत्तं भवावहितमानसः' ॥१॥ भामिनी जनकस्यासीद् विदेहा नाम सुन्दरी । गर्भनिवेदनं तस्याः प्रत्यक्षत चिरं सुरः ॥२॥ जगाद श्रेणिको नाथ तं गर्भ केन हेतुना । देवो रक्ष विज्ञातुमेतदिच्छामि शिष्यताम् ॥३॥ उवाच गौतमो राजा नाम्ना चक्रध्वजोऽभवत् । स्थाने चक्रपुराभिख्ये भार्या तस्य मनस्विनी ॥४॥ तयोश्चित्तोत्सवापत्यं कन्या गुरुगृहे च सा । रराज सितमतलेशैलेखनी वर्णपूरिका ॥५॥ राज्ञः पुरोहितस्यास्य धूम केशस्य पिङ्गलः । स्वाहाकक्षिभवोऽधीते सुतस्तत्रैव पाठके ॥६॥ विद्यालाभस्तयो सीदन्योन्यहृतचेतसोः । विद्याधर्मावगाहश्च जायतेऽवहितात्मनाम् ॥७॥ पुरा संसातः प्रीतिः प्राणिनामुपजायते । प्रीतितोऽभिरतिप्राप्ती रतेर्विश्रम्भसंभवः ॥८॥ सद्भावात् प्रणयोत्पत्तिः प्रेमैवं पञ्चहेतुकम् । दुर्मोचं बध्यते कर्म पातकैरिव पञ्चभिः ॥६॥
अथानन्तर गौतमस्वामी राजा श्रेणिकसे कहते हैं कि हे श्रेणिक ! अब राजा जनकका वृत्तान्त कहता हूँ सो तुम सावधान चित्त होकर सुनो।।१।। राजा जनककी विदेहा नामकी सुन्दरी स्त्री थी। उसके गर्भ रहा, सो एक देव चिरकालसे उसके गर्भकी प्रतीक्षा करने लगा ।।२।। यह सुन राजा श्रेणिकने कहा कि नाथ! वह देव किस कारणसे विदेहाके गर्भकी रक्षा करता था ? यह मैं जानना चाहता हूँ सो कहिए ॥३।। इसके उत्तरमें गौतमस्वामीने कहा कि चक्रपुरनामा नगरमें एक चक्रध्वज नामका राजा था। उसकी स्त्रीका नाम मनस्विनी था ।।४।। उन दोनोंके चित्तोत्सवा नामकी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या गुरुके घर अर्थात् चाटशालामें खड़िया मिट्टीके टुकड़ांसे वर्णमाला लिखती हुई सुशोभित होती थी ।।५।। उसी गुरुके घर राजाके पुरोहित धूमकेशकी स्वाहा नामको स्त्रीसे उत्पन्न पिङ्गल नामका पुत्र भी अध्ययन करता था ।।६।। चित्तोत्सवा और पिङ्गल इन दोनोंका चित्त परस्परमें हरा गया इसलिए उन्हें विद्याकी प्राप्ति नहीं हो पाई । सो ठीक ही है क्योंकि विद्या और धर्मकी प्राप्ति स्थिर-चित्तवालोंको ही होती है ।।७। आचार्य कहते हैं कि पहले स्त्री पुरुषका संसर्ग अर्थात् मेल होता है फिर प्रीति उत्पन्न होती है, प्रीतिसे रति उत्पन्न होती है, रतिसे विश्वास उत्पन्न होता है और तदनन्तर विश्वाससे प्रणय उत्पन्न होता है । इस तरह प्रेम पूर्वोक्त पाँच कारणोंसे उत्पन्न होता है। जिस प्रकार हिंसादि पाँच पापोंसे जो छूट न सके ऐसे कर्मका बन्ध होता है उसी प्रकार पूर्वोक्त पाँच कारणोंसे प्राणियोंके गाढ़ प्रेम उत्पन्न होता है ।।८-६॥
१. मानस म । २. प्रत्यैक्षित म० । ररक्ष । ३. -मेतमिच्छामि म०, ज०, ख०। ४. राज्ञां म० ।
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