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________________ सारा खेल काम-वासना का अब आप फिर क्रोध कर सकते हैं। अब आप फिर अपनी जगह आ गये । तो दो में से एक भी टूट जाये, फिर दूसरा नहीं टिक सकता। मुर्गी मर जाये तो फिर अंडा नहीं हो सकता, अंडा फूट जाये तो फिर मुर्गी नहीं हो सकती । क्रोध को तो छोड़ने की बहुत कोशिश की, अब कृपा करके इतना करो कि पश्चात्ताप ही छ ,मत करो पश्चात्ताप । रहने दो क्रोध को वहीं, तो आपकी प्रतिमा वापस खड़ी न हो पायेगी, और वही प्रतिमा खड़े होकर क्रोध करती है। लेकिन हम होशियार हैं । हम हर कृत्य से दूसरे कृत्य को बैलेंस कर लेते हैं । तराजू को हम हमेशा संभालकर रखते हैं। अच्छाई करते हैं थोड़ी, तत्काल थोड़ी बुराई कर लेते हैं। थोड़ा हंसते हैं, थोड़ा रो लेते हैं, थोड़े रोते हैं, थोड़े हंस लेते हैं। संभाले रहते हैं अपने को। ___ हम नटों की तरह हैं जो रस्सियों पर चल रहे हैं, पूरे वक्त संभाल रहे हैं । बायें झुकते हैं, दायें झुक जाते हैं। दायें गिरने लगते हैं, बायें झुक जाते हैं। अपने को संभाले हुए रस्सी पर खड़े हैं। __आदमी तभी पहुंचता है मंजिल तक, जब उसके जीवन की यात्रा... यह इस चमत्कार से बच जाती है, कि एक बर्थ बम्बई, एक बर्थ कलकत्ता । जब आदमी एक दिशा में यात्रा करता है तो परिणाम, निष्पत्तियां, उपलब्धियां आती हैं, नहीं तो जीवन व्यर्थ हो जाता है, अपने ही हाथों व्यर्थ हो जाता है। तो महावीर कहते हैं, ऐसे रस का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। महावीर बहुत ही सुविचारित बोलते हैं। उन्होंने ऐसा भी नहीं कहा कि सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह अति हो जायेगी। कभी सेवन करने की जरूरत भी पड़ सकती है। कभी जहर भी औषधि होता है। महावीर बहुत ही सुविचारित हैं। एक-एक शब्द उनका तुला हुआ है। कहीं भी वे अति नहीं करते, क्योंकि अति में हिंसा हो जाती है। वे ऐसा नहीं कहते कि ऐसा करना ही नहीं चाहिए, वे इतना ही कहते हैं कि अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। ___ ध्यान रहे, औषधि की मात्रा होती है, शराब की कोई मात्रा नहीं होती। शराब का मजा ही अधिक मात्रा में है । औषधि की मात्रा होती है। औषधि मात्रा से ली जाती है, शराब कोई मात्रा से नहीं ली जाती। और जितनी मात्रा से आप लेते हैं, कल मात्रा बढ़ानी पड़ती है, क्योंकि उतने आप आदी होते चले जाते हैं । जितनी आप शराब पीते चले जाते हैं उतनी शराब बेकार होती चली जाती है। फिर और पियो, और पियो, तो ही कुछ परिणाम होता दिखायी पड़ता है। ध्यान रहे अगर एक आदमी शराब पी रहा है तो मात्रा बढ़ती जायेगी। और अगर एक आदमी शराब को दवा की तरह ले रहा है तो मात्रा घटती जायेगी। क्योंकि जैसे-जैसे बीमारी कम होगी, मात्रा कम होगी। और जिस दिन बीमारी नहीं होगी, मात्रा विलीन हो जायेगी। और अगर एक आदमी शराब नशे की तरह ले रहा है, तो मात्रा रोज बढ़ेगी। क्योंकि हर शराब बीमारी को बढ़ायेगी, और ज्यादा शराब की मांग करेगी। ___ मुल्ला नसरुद्दीन कहता था कि मैं कभी एक पैग से ज्यादा नहीं पीता । उसके मित्रों ने कहा, 'हद्द कर दी ! झूठ की भी एक सीमा होती है। अपनी आंखों से तुम्हें पैग पर पैग ढालते देखते हैं!' तो मुल्ला ने कहा, 'मैं तो पहला ही पीता हूं। फिर पहला पैग दूसरा पीता है, फिर दूसरा, तीसरा । अपना जिम्मा एक का ही है। उससे सिलसिला शुरू हो जाता है। बाकी के हम जिम्मेवार नहीं है। हम अपने होश में एक ही पीते हैं। फिर होश ही कहां, फिर हम कहां, फिरपीने वाला कहां, फिर तो बस शराब ही शराब को पिये चली जाती है।' वह ठीक कहता है। बेहोशी का पहला कदम आप उठाते हैं। फिर पहला कदम दूसरा कदम उठाता है, फिर दूसरा तीसरा उठाता है। जिसे बेहोशी को रोकना हो, उसे पहले कदम पर ही रुक जाना चाहिए, क्योंकि वहीं उसके निर्णय की जरूरत मुश्किल है। तीसरे पर असम्भव हो जायेगा। हर रोग हमारे मानसिक जीवन में पहले कदम पर ही रोका जा सकता । दूसरे कदम पर मोकदम पर रुकना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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