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सारा खेल काम-वासना का
आत्यंतिक रूप से स्वतंत्र है, और दूसरे की आत्मा का अर्थ ही यह होता है कि उसे परतंत्र नहीं किया जा सकता।
इसे ठीक से समझ लें।
परतंत्र हम कर ही सकते हैं किसी को तब, जब कि उसमें आत्मा न हो। मशीन परतंत्र हो सकती है। मशीन के लिए स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता। लेकिन व्यक्ति कभी परतंत्र नहीं हो सकता, और हम व्यक्ति को मशीन की तरह व्यवहार करना चाहते हैं। वह व्यवहार ही हिंसा है। तब तो बड़ा होश रखना पड़ेगा। व्यवहार के छोटे-छोटे हिस्से में होश रखना पड़ेगा कि मैं किसी की परतंत्रता लाने की चेष्टा में तो नहीं लगा है। आयेगी तो है ही नहीं, लेकिन चेष्टा, मेरा प्रयास, मझे दख में डाल जायेगा। अप्रमाद तो रखना पड़ेगा, होश तो रखना पड़ेगा। ___ आप रास्ते से गुजर रहे हैं और एक आदमी की तरफ आप किसी भांति देखते हैं। अगर उसमें निन्दा है, और भले आदमी बड़े निन्दा के भाव से देखते हैं। एक साधु के पास आप सिगरेट पीते चले जायें, फिर उसकी आंखें देखें कैसी हो गयीं। उसका वश चले तो अभी इसी वक्त आपको नरक भेज दे। साधु नहीं है यह आदमी, क्योंकि आपकी स्वतंत्रता पर गहन बाधा डाल रहा है, चेष्टा कर रहा है।
साधुओं के पास जाओ तो उनके पास बात ही इतनी है, ऐसा मत करो, वैसा मत करो । जैसे ही साधु के पास जायेंगे वहां आपकी स्वतंत्रता को छीनने की चेष्टा में संलग्न हो जायेगा । उसको वह कहता है, व्रत दे रहा हूं। कौन किसको व्रत दे सकता है? इसीलिए साधुओं के पास जाने में डर लगता है लोगों को, कि वहां गये तो यह छोड़ दो, यह पकड़ लो । ऐसा मत करो, वैसा मत करो; यह नियम ले लो।
मगर सारी चेष्टा का मतलब क्या है कि साधु आपको बर्दाश्त नहीं कर सकता, कि आप जैसे हैं। आप में फर्क करेगा, आपके पंख काटेगा, आपकी शक्ल-सूरत में थोड़ा सा हिसाब-किताब बांटेगा। तब, आप जैसे हैं इसकी परम स्वतंत्रता का कोई समादर साधु के पास नहीं है। और जिसके पास आपकी स्वतंत्रता का समादर नहीं है, वह साधु कहां? साधुता का मतलब ही यह है कि मैं कौन हूं जो बाधा दूं। मुझे जो ठीक लगता है वह मैं निवेदन कर सकता हूं, आग्रह नहीं।। ___ महावीर ने कहा है, साधु उपदेश दे सकता है, आदेश नहीं । उपदेश का मतलब अलग होता है, आदेश का मतलब अलग । उपदेश का मतलब होता है, ऐसा मुझे ठीक लगता है, वह मैं कहता हूं। आदेश का मतलब है, ऐसा ठीक है, तुम भी करो । मुझे जो ठीक लगता है वह जरूरी नहीं कि ठीक हो । यह मेरा लगना है। मेरे लगने की क्या गारन्टी है? मेरे लगने का मूल्य क्या है? यह मेरी रुचि है, यह मेरा भाव है। यह परम सत्य होगा, यह मैं कैसे कहूं? ___ असाधुता वहीं से शुरू होती है जहां मैं कहता हूं, मेरा सत्य तुम्हारा भी सत्य है, बस असाधुता शुरू हो गयी, हिंसा शुरू हो गयी। जब तक मैं कहता हूं, मेरा सत्य मेरा सत्य है। निवेदन करता हूं कि मुझे क्या ठीक लगता है। शायद तुम्हारे काम आ जाये, शायद काम न भी आये, शायद तुम्हें सहयोगी हो, शायद तुम्हें बाधा बन जाये । सोच-समझकर, अप्रमाद से, होशपूर्वक, तुम्हें जैसा लगे करना। आदेश मैं नहीं दे सकता हूं। लेकिन जब मैं आदेश देता हूं तब उसका मतलब हुआ कि मैं कह रहा हूं, मेरा सत्य सार्वभौम सत्य है, माई ट्रथ मीन्स दि टूथ, मेरा जो सत्य है वही सत्य है, और कोई सत्य नहीं है। अगर मेरे सत्य के विपरीत किसी का सत्य है तो वह असत्य है, उसे छोड़ना होगा। अगर उसे नहीं छोड़ते हो तो नरक जाना पड़ेगा, वह नरक की व्यवस्था मेरी है। जो मुझे नहीं मानेगा वह नरक जायेगा, यह उसका अर्थ है । जो मुझे नहीं मानेगा वह आग में सड़ेगा, इसका यह अर्थ है । जो मुझे मानेगा उसके लिए स्वर्ग का आश्वासन है, उसे स्वर्ग के सुख हैं।
यह क्या हुआ? यह साधु का भाव न हुआ। यह असाधु हो गया आदमी। यह हिंसा हो गयी। महावीर की अहिंसा गुह्य है, एसोटेरिक है, गुप्त है। अहिंसा का मतलब यह है, यह स्वीकृति कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है, उससे
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