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________________ प्रस्तावना आप आए, नई ज़िंदगी आ गई। बेखुदी में नई ताज़गी आ गई। पहले अल्फाज़ की थी सजावट महज, शायरी में हसीं सादगी आ गई। रूढ़ियों में, रवाज़ों में जो कैद था, दिल अब आज़ाद, आवारगी आ गई! पहले पीता था, लेकिन नहीं रिंद था, आपको जो पीया, रिंदगी आ गई! पहले 'तन्मय' जो मुनकिर था, बदनाम था, आपसे जो मिला, बंदगी आ गई! अपने एक अज़ीज़ के लिए कही गई मेरी यह ग़ज़ल अज़ीज़ों के अज़ीज़, प्रियतमों के भी प्रियतम ओशो के लिए कहीं अधिक मौजूं है। प्रिय के संबंध में जहां अतिशयोक्ति का आरोप संभव है, वहां जिसने ओशो को जाना है, उसके द्वारा अत्यल्पोक्ति का आरोप ही लगाया जाएगा। ओशो के समग्र व्यक्तित्व को भाषा के किन्हीं भी शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। भाषा असमर्थ हो जाती है। प्रथम भाग की प्रस्तावना में कह चुका हूं, मैं एकदम नास्तिक था। सौभाग्यवश ओशो से जुड़ा, उनके प्रेम में पड़ा तो आस्तिक हो गया-बंदगी आ गई। उन्हें पीया तो एक आंतरिक मस्ती का मजा आ गया। अब, चिंताएं सर पर से निकल जाती हैं; जीने की कला सिखाने के ओशो विशेषज्ञ हैं, बशर्ते कि दिल को आवारा बनाने का साहस हो। ओशो की समस्त देशनाओं को यदि किसी एक शब्द में व्यक्त करना पड़े तो वह शब्द होगा 'प्रेम', किंतु शब्द प्रेम नहीं, भाव-अनुभूति। प्यार से बढ़कर नहीं आराध्य कोई, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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