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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 इटरनिटी का सवाल है। तब एक क्षण, जो प्राथमिक क्षण है, वही अंतिम क्षण है। वहां कोई चीज गुजरती हुई मालूम भी नहीं पड़ेगी; वहां समय व्यतीत होता हुआ मालूम भी नहीं पड़ेगा; क्योंकि समय संसार का हिस्सा है। कालातीत है चेतना की सिद्धावस्था । वहां कोई समय नहीं है। इसलिए आपको ऐसा नहीं लगेगा कि बहुत देर हो गयी सिद्ध हुए। ऐसा कभी नहीं लगेगा। क्योंकि देर का, ड्यूरेशन का कोई सवाल नहीं है। समय वहां है नहीं। वहां आपकी घड़ी रुक जायेगी। वहां घड़ी नहीं चल सकती। ___ जीसस से कोई पूछता है, तुम्हारे स्वर्ग के राज्य में खास क्या बात होगी? तो जीसस कहते हैं-देयर शैल बी टाइम नो लांगर-वहां समय नहीं होगा। समय संसार का हिस्सा है, क्योंकि समय परिवर्तन का हिस्सा है। अगर हम ठीक से समझें, तो परिवर्तन होता है, इसलिए समय का हमें पता चलता है। अगर परिवर्तन न हो, तो समय का पता न चले। जितना ज्यादा परिवर्तन होता है, उतना ज्यादा समय का पता चलता ___ इसलिए पश्चिम में लोग ज्यादा टाइम कांशस हैं-ज्यादा समय का पता चलता है, क्योंकि परिवर्तन बहुत हो रहा है। पूरब में लोग उतने समय से परेशान नहीं हैं। अगर जंगल में जायें आदिवासियों के पास, उन्हें समय से कोई लेना-देना ही नहीं है। समय का कोई सवाल नहीं है। समय जैसे है ही नहीं। सब चीजें ठहरी हुई हैं। जब परिवर्तन जोर से होता है, तो समय का पता चलता है। परिवर्तन धीमा होता है, तब समय भी धीमा हो जाता है । जब परिवर्तन बिलकुल नहीं होता, तो समय समाप्त हो जाता है। __ अगर ठीक से समझें तो समय का मतलब हुआ, परिवर्तन । परिवर्तन के बीच जो बोध होता है, वह समय है। अन्यथा समय का हमें कोई पता नहीं होगा। अगर आप एक ऐसी अवस्था में हों, जहां कुछ भी न बदले-समझें, इस कमरे में आप बैठे हैं, कुछ भी न बदले, सब चीजें थिर हों-तो आपको समय का कोई भी पता नहीं चलेगा। समय का पता चलता है, क्योंकि चीजें बदल रही हैं। एक बदलाहट से दूसरी बदलाहट के बीच जो खाली जगह है, उसमें ही समय का पता चलता है। समय परिवर्तन का बोध है। तो महावीर कहते हैं, सिद्धावस्था में कोई परिवर्तन नहीं है, इसलिए समय भी नहीं है। वहां समय का कोई पता नहीं चलता। सिद्ध होते ही समय गिर जाता है, संसार गिर जाता है। - असल में वासना के गिरते ही परिवर्तन समाप्त हो जाता है। जहां तक वासना है, वहां तक परिवर्तन है। जहां वासना नहीं है, सिर्फ आत्मा है, वहां कोई परिवर्तन नहीं है। वहां शाश्वतता है, इटरनिटी है। ___ यह जो सिद्धावस्था है, यही तलाश है हर प्राण की । यही खोज है हर श्वास की । प्राण इसी के लिए आतुर हैं कि एक ऐसी जगह मिल जाये, जिसके पार पाने को कुछ न बचे। आप कितना ही धन पा लें, ऐसी जगह नहीं मिलती। क्योंकि और धन पाने को बच रहता है ! कितने ही बड़े पद पर हो जायें, वह पद नहीं मिलता। और पद पाने को बच रहते हैं ! और कितने ही शास्त्र के ज्ञाता हो जायें, कुछ फर्क नहीं पड़ता । और शास्त्र बचे रहते हैं ! _इस जगत में ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसको पाकर आप कहें, इसके आगे कुछ भी नहीं बचता। आगे बचता ही है ! इसलिए इस जगत की उपलब्धियों में कोई सिद्धावस्था नहीं हो सकती। सिर्फ अंतर्यात्रा में एक जगह है, जहां पाने को कुछ भी नहीं बचता। जो अपने को पा लेता है, उसे पाने को कुछ भी नहीं बचता है। और जो अपने को नहीं पाता, उसे पाने को सदा ही बचा रहता है। 568 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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