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महावीर-वाणी भाग : 2
मैं चुप ही रहा। तो पादरी ने कहा, 'लेकिन इससे तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?' तो नसरुद्दीन ने कहा कि और तो कुछ हल न हुआ, बट शी हैज़ गिवन मी थ्री न्यू कान्टैक्ट्स । और अभी अब बीच में पड़ो मत !
मन फिर गतिमान हो गया। अब तीन नये पते उसने और बता दिये । इन तीन स्त्रियों का खयाल ही नहीं था नसरुद्दीन को। __ कई बार आप संयम के करीब पहुंचने लगते हैं और फिर कोई तरंग हिला जाती है। आप सोचते हैं, संयम की इतनी जल्दी भी क्या है, कुछ देर और रुका जा सकता है। और अकसर लोग मरते क्षण तक संयम नहीं साध पाते । आखिरी क्षण तक भी जीवन हिलाता ही रहता है।
महवीर कहते हैं, जिसे बाहर की स्थितियां कंपित कर देती हैं, आंदोलित कर देती है-आंदोलन का अर्थ है, जो बाहर जाने को उत्सुक हो जाता है, वह आदमी संसार में है । वह चेतना कभी भी सिद्ध नहीं हो सकती। ___ महावीर का शब्द है, शैलेशी अवस्था', हिमालय की तरह थिर । जहां कोई कंपन न हो । हिंदुओं ने शिव का घर कैलाश पर बनाया है सिर्फ इसी कारण । कोई कैलाश पर ढूंढने से शिव मिलेंगे नहीं। और अब तो करीब-करीब सारा हिमालय खोज डाला गया है। और कुछ बचा होगा तो चीनी छोड़ेंगे नहीं । वे खोजे ले रहे हैं। और शिव अगर मिलते होते. तो आपको ही मिलते. चीनियों को तो कभी मिल ही नहीं सकते।
शिव वहां हैं भी नहीं, सिर्फ प्रतीक है, कि शिवत्व की जो आखिरी अवस्था है, वह कैलाश जैसी थिर होगी। इसलिए महावीर ने शैलेशी अवस्था कहा है उसे। शैलेश जैसी, हिमालय जैसी थिर । जहां कोई कंपन नहीं है।
लेकिन अगर वैज्ञानिकों से पछे तो वे कहेंगे कि यह शब्द ठीक नहीं है. क्योंकि हिमालय कंप रहा है। सच तो यह है कि हिमालय से ज्यादा कंपनेवाला कोई पहाड़ ही दुनिया में नहीं है। विंध्याचल है, सतपुड़ा है-ये ठहरे हुए हैं। आल्प्स-ये सब ठहरे हुए हैं, कंप नहीं रहे हैं; हिमालय कंप रहा है उसका कारण है क्योंकि हिमालय जवान है। विंध्या और सतपुड़ा बूढ़े हैं। _भू-तत्वविद कहते हैं कि विंध्याचल जगत का सबसे पुराना पर्वत है, सबसे बूढ़ा पर्वत है। हमारी भी कहानियां कहती हैं कि ऋषि अगस्त्य जब दक्षिण गये, तो वे विंध्या से कह गये कि मैं जब तक लौट न आऊं, तुम झुके रहना, क्योंकि मैं बूढ़ा आदमी हूं और मुझे चढ़ने में बड़ी तकलीफ होती है।
उनके लिए ही वह झुका था। लेकिन फिर वे लौटे नहीं, उनकी मृत्यु हो गयी दक्षिण में । तब से वह झुका है। कहानी बड़ी मीठी है। वह यह कहती है कि बूढ़ा पहाड़ है, गर्दन झुक गयी है, कमर झुक गयी है। ___ विंध्या सबसे पुराना पहाड़ है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है । वह बढ़ नहीं रहा है; घट रहा है । हिमालय रोज बढ़ रहा है । उसकी ऊंचाई रोज बढ़ती जाती है। उसमें रोज कंपन है। वह अभी जवान है।
जितना जवान चित्त होगा, उतना कंपित होगा। अगर चित्त कंपित ही होता रहता है, तो आपका वार्धक्य शरीर का है लेकिन चित्त के अर्थों में अभी आप जवान की वासना से भरे हैं। लेकिन महावीर का प्रयोजन है-महावीर को खयाल भी नहीं होगा कि हिमालय कंप रहा है। उस समय तक इस बात का कोई उदघाटन नहीं हुआ था कि हिमालय कंपित हो रहा है और बढ़ता जा रहा है।
रोज कुछ इंच हिमालय ऊपर उठ रहा है जमीन से। अभी जवान है, अभी वह वयस्क नहीं हुआ। अभी बाढ़ रुकी नहीं। लेकिन महावीर का प्रयोजन साफ है, क्योंकि हिमालय जैसी थिर और कोई चीज जगत में मालूम नहीं पड़ती। ऊपर से देखने पर तो कम से कम हिमालय बिलकुल थिर मालूम होता है।
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