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________________ महावीर वाणी भाग : 2 जाता है । जो लोग रोज-रोज क्रोध करते रहते हैं, छोटी-छोटी बातों में क्रोध करते रहते हैं, ऐसे लोग बड़े अपराध नहीं कर पाते। ऐसे लोग हत्या नहीं कर सकते, क्योंकि हत्या करने के लिए जितना क्रोध इकट्ठा होना चाहिए, उतना उनके पास कभी इकट्ठा ही नहीं होता । इसलिए अकसर जो लोग छोटी-छोटी बातों में क्रोध कर लेते हैं, बुरे लोग नहीं होते। और जो आदमी दबाये चला जाता है, वर्षों तक दबाता रहता है, उसके भीतर ज्वालामुखी इकट्ठा हो जाता है। जब भी इसका विस्फोट होगा, तब यह छोटी-मोटी घटना होनेवाली नहीं है । यह कोई महा उपद्रव करेगा। तो जिनको आप साधारणतः शांत समझते हैं, वे भयंकर अशांति के जन्मदाता हो सकते हैं। तो जो आदमी कभी-कभी क्रोध करता है, उसके क्रोध से जरा सावधान रहना। जो अकसर करता है, उसके क्रोध का कोई मतलब नहीं है - हवा आयी और गयी। छोटे बच्चे बड़े अपराध नहीं कर सकते। और उसका कारण यह है कि वे छोटा-छोटा क्रोध करके दिनभर निकाल लेते हैं। इसलिए छोटे बच्चे क्षणभर में क्रोध करेंगे, क्षणभर बाद बिलकुल शांत हो जायेंगे -जैसे तूफान कभी आया ही न हो । भरोसा ही न आयेगा कि इस बच्चे ने थोड़ी देर पहले एक भयंकर क्रोध किया था। वह मुस्कुरा रहा है, नाच रहा है, प्रसन्न है। बच्चे से बड़े अपराध की संभावना नहीं है। जो लोग अपने जीवन को सहज प्रगट करते रहते हैं, ये कोई महात्मा तो नहीं हो सकते, लेकिन ये महा अपराधी भी नहीं हो सकते । इनके महा-अपराधी होने का कोई उपाय नहीं है । दमन से महा अपराध पैदा होता है। अपराध बचना हो जाता है, महा अपराध पैदा हो जाता है; क्योंकि ऊर्जा का एक नियम है। कि आप उसे इकट्ठी करके रख नहीं सकते - उबल जायेगी, ओवरफ्लो हो जायेगी। एक सीमा है जब तक आप संभाल सकेंगे, और फिर संभालने के बाहर हो जायेगी। इस तरह अगर आप संभालते गये, संभालते गये, तो वह सीमा आ जाती है जहां आपके भीतर इकट्ठी शक्ति प्रगट होगी, और अगर वह आपके विपरीत प्रगट हो जाये तो आप विक्षिप्त भी हो सकते हैं। मनसविद कहते हैं कि पागल आदमी वही है, जिसने बहुत दबाया है। दबाना इतना ज्यादा हो गया है कि अब होश में उसे निकालने का कोई उपाय न रहा, तो उसने होश भी खो दिया है। अब वह बेहोशी में निकाल रहा है। पागलखानों में जो लोग बंद हैं, वे दमित स्थिति के आखिरी परिणाम हैं । तो आप दमन कर-करके विक्षिप्त हो सकते हैं, विमुक्त कभी नहीं हो सकते। विमुक्त होना हो, तो दबाना कोई रास्ता नहीं है । और जिसे हम दबाते हैं, हम उससे और ज्यादा बुरी तरह ग्रसित हो जाते हैं। उसकी जकड़ हम पर बढ़ जाती है। तो दबाने से तो कोई कभी पहुंचता नहीं, पर मन को बिना समझे बहुत लोग दबाने की कोशिश में लग जाते हैं। वह सरल दिखता है, सुगम दिखता है, तात्कालिक परिणामकारी दिखता है - लेकिन लंबे अरसे में भयानक है, खतरनाक है। दूसरा, कुछ लोग मन को मूर्च्छित करने में लग जाते हैं। उन्हें लगता है, अगर मन मूर्च्छित हो जाये, न पता चलेगा, न मन की उद्विग्नता, पीड़ा सतायेगी । मूर्च्छा के कई उपाय हैं। शराब कोई पी ले तो सीधा उपाय है— केमिकल्स, रासायनिक तत्व शरीर को मूर्च्छित कर देते हैं । मस्तिष्क भी शरीर का हिस्सा है, वह भी मूर्च्छित हो जाता है। मूर्च्छित हो जाने से फिर कुछ दुख, पीड़ा, तनाव, परेशानी, चिंता, संताप - कुछ भी पता नहीं चलता। लेकिन जो मूर्च्छित हो गया है, वह मिट नहीं जाता है। होश आयेगा, सारी बीमारियां फिर खड़ी हो जायेंगी । धर्मों ने शराब का विरोध किया है – इसलिए नहीं कि शराब में कोई अपने आप में बुराई है। सारे धर्मों ने विरोध किया है, क्योंकि धर्म जिस बीमारी को मिटाना चाहते हैं, शराब उसे केवल भुलाती है। भुलाने से कोई चीज मिटती नहीं । Jain Education International 554 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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