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मन एकमात्र बीमारी है। मन को स्वस्थ करने का कोई भी उपाय नहीं है, मन को शून्य करने का जरूर उपाय है। बीमारी मिट सकती है, बीमारी स्वस्थ नहीं हो सकती । साधारणतः लोग कहते हैं, उनका मन अशांत है, बेचैन है, परेशान है; तो पूछते हैं, कैसे मन को शांत
करें? __ मन कभी भी शांत नहीं होता । मन के शांत होने का कोई उपाय नहीं है। अशांत होना मन का स्वभाव है । ठीक से समझें तो अशांति ही मन है। मन से मुक्त हुआ जा सकता है। मन के पार हुआ जा सकता है। मन को छोड़ा जा सकता है। मन को शांत नहीं किया जा सकता। मन के शांत होने का एक ही अर्थ है, जहां मन न रह जाये।
इसका यह अर्थ हुआ : शांति और मन का कोई संबंध कभी भी नहीं हो पाता । जब तक मन है, तब तक शांति नहीं और जब शांति होती है, तब मन नहीं होता । मन को मिटाना, मन से मुक्त होना, मन के पार होना समस्त साधना का आधारभूत सूत्र है । तो मन को हम ठीक से समझ लें तो महावीर के इन अंतिम सूत्रों में प्रवेश हो जाये। __मन है क्या ? क्योंकि बीमारी ठीक से न समझी जा सके, निदान न हो पाये, डायग्नोसिस न हो, तो उपचार नहीं हो सकेगा। निदान आधे से ज्यादा उपचार है। और बिना निदान किये जो उपचार में लग जाये, हो सकता है बीमारी को और बढ़ा ले नयी बीमारियों को निमंत्रण दे दे।
अधिक लोग मन को बिना समझे उपचार करने में लग जाते हैं। ऐसे लोग या तो मन को दबाने लगते हैं या ऐसे लोग मन को मूर्च्छित करने लगते हैं। __ मन को दबाना हम सभी जानते हैं। क्रोध आ जाये तो उसे कैसे पी जाना, उसे कैसे गटक जाना गले के नीचे, हम सभी जानते हैं। क्योंकि जिंदगी में सभी मौकों पर क्रोध नहीं किया जा सकता । वासना मन में उठे, तो कैसे उसे पीते रहना, दबाते रहना, वह हम सभी जानते हैं। क्योंकि हर क्षण वासना को पूरा करने का उपाय नहीं है। __ तो मन को हम सभी दबाते हैं। लेकिन इस दबाने से कोई कभी मुक्त होता है? ये दबी हुई जो वृत्तियां हैं, ये धक्का मारती रहती हैं; ये भीतर चोट करती रहती हैं और अवसर की तलाश करती हैं। जब भी कमजोर क्षण मिल जायेगा, ये प्रगट हो जायेंगी। ये इकट्ठी होती रहती हैं।
और मनसविद कहते हैं कि जो आदमी बहुत ज्यादा क्रोध को दबाता रहता है, वह एक न एक दिन क्रोध के भयानक भूकंप से भर
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