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________________ महावीर वाणी भाग 2 : जाती है। अगर सत्य साईंबाबा जैसे लोगों के पास लाखों लोग इकट्ठे हो जाते हैं, तो उसका कुल कारण इतना ही है कि सत्य साईंबाबा से किसी विरक्ति की आशा नहीं है; आपके आसक्ति के जाल को सघन करने की संभावना है। किसी को लड़का चाहिए, किसी को बीमारी मानी है, किसी को धन पाना है, किसी को लंबी उम्र पानी है, किसी को मुकदमा जीतना है- - वे सारे लोग इकट्ठे हो जाते हैं। जिस साधु पास ज्यादा भीड़ मालूम पड़े, समझ लेना कि जरूर उस साधु के पास संसार की घटना घट रही है। अन्यथा साधु के पास ज्यादा भीड़ नहीं हो सकती; होनी मुश्किल है। इस विराट संसार में बहुत थोड़े से लोग हैं, जो विरक्त हैं । वे ही लोग साधु के पास हो सकते हैं - चूजन फ्यू । बहुत चुने हुए लोगों का मामला है। गुरु के पास आना बहुत थोड़े से लोगों का मामला है -करोड़ों में एक ! लेकिन जिस गुरु के पास एक को छोड़कर पूरा करोड़ पहुंच जाता हो, समझना कि वहां गुरु मूल्यवान नहीं है, वहां इस भीड़ में इकट्ठे हुए लोगों की वासना मूल्यवान है। इतनी बड़ी भीड़ विरक्त नहीं है, नहीं तो यह संसार दूसरा हो जाये। इतनी बड़ी भीड़ गहरी तरह से आसक्त है— इसकी आसक्ति में कोई भी सहारा देता हो । मेरे पास मित्र आते हैं- भले, शुभ, चाहक — वे मुझसे कहते हैं कि आप कब तक थोड़े से लोगों को समझाते रहेंगे। आप कोई चमत्कार क्यों नहीं दिखाते कि लाखों लोग आ जायें । मगर जो लाखों लोग चमत्कार के कारण आते हैं, उनसे मेरा कोई संबंध नहीं जुड़ सकता; उनसे मेरा कोई लेना-देना नहीं है । वे मेरे लिए आ ही नहीं रहे हैं। वे किसी और वासना से पीड़ित होकर आ रहे हैं। उनका इनिशिएशन, उनकी दीक्षा नहीं हो सकती। भीड़ दीक्षित नहीं हो सकती। बहुत चुने हुए लोग, जिनके जीवन का अनुभव परिपक्व हुआ है और जिन्होंने अपने अनुभव से जाना है कि व्यर्थ है सब कुछ जो हम कर रहे हैं, जिनको यह दिखाई पड़ जाता है कि जहां हम हैं वहां व्यर्थता है, वे ही उस यात्रा पर निकलने की चेष्टा करते हैं जहां सार्थक का जन्म हो सके । का अर्थ है, इनिशिएशन का अर्थ है: यह संसार व्यर्थ हुआ, अब हमारी चेतना किस आयाम में प्रवेश करे? ऐसे लोग द्वार खोजते हैं। तभी गुरु ऐसे लोगों को द्वार दिखा सकता है। आप मंदिर में भी जाते हैं, गुरु के पास भी जाते हैं, तो कुछ मांगने जाते हैं, कुछ होने नहीं जाते; चाहते हैं अदालत में मुकदमा जीत जायें; टी.बी. हो गया, कैन्सर हो गया — दूर हो जाये। कुछ संसार का हिस्सा आपका अधूरा लग रहा है, वह गुरु पूरा कर दे। और गुरु आपके संसार के हिस्से को पूरा करता है या करता हुआ दिखाने का धोखा देता है, वह आपका मित्र नहीं है, वह आपका शत्रु है! क्योंकि वह जीवन में आपको धक्का दे रहा है— उसी संसार में। जहां से शायद कैन्सर आपको उबा देता। उसका चमत्कार वापस लौटा रहा है। जहां शायद टी. बी. आपको कह देती कि शरीर व्यर्थ है और सड़ा हुआ है, और इसके पार होना उचित है, वहां उसका चमत्कार आपको शरीर में वापस भेज रहा है। चमत्कारी गुरु धर्म की तरफ नहीं ले जाते, वे संसार के ही एजेंट हैं। लेकिन उसमें एक सुविधा है, म्युचुअल संबंध है। क्योंकि जितनी बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है, उतना अहंकार को तृप्ति मिलती है गुरु के । लगता है मैं कुछ हूं। और भीड़ इकट्ठी करनी हो तो भीड़ सिर्फ चमत्कार से इकट्ठी होती है। ज्ञान से किसी को प्रयोजन नहीं है; महात्मा से किसी का संबंध नहीं है, मदारी की मांग है। और जब महात्मा के वेश में मदारी दिखता है, तो आपकी आत्मा को बड़ी तृप्ति होती है। क्योंकि आशा बंधती है कि जो-जो हम नहीं कर पाये, शायद इस आदमी की कृपा हो जाये । से Jain Education International 544 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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