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________________ अंतस बाह्य संबंधों से मुक्ति था, वह गिर जाता है। जैसे मछली जाल के बाहर आ जाती है। लेकिन अभी तो हम कामवासना में इस तरह घिरे हुए हैं, कामवृत्ति में इस तरह डूबे हुए हैं कि हम सोच ही नहीं सकते विरक्त आदमी को क्या रस होगा । विरक्त आदमी तो रसहीन हो जायेगा – क्योंकि हम एक ही रस जानते हैं। हमारी हालत वैसी ही है, जैसे नाली का कीड़ा हो; उसे नाली में ही रस है । वह सोच भी नहीं सकता कि आकाश में उड़ते पक्षी क्यों जीवन व्यर्थ गवां रहे हैं ! नाली में सारा रस है ! मुल्ला नसरुद्दीन एक व्याख्यान सुनने गया है। एक वैज्ञानिक बोल रहा है। वह मछलियों के संबंध में कुछ समझा रहा है । और वह कहता है कि मादा मछलियां अंडे रख देती हैं और फिर नर मछलियां उन अंडों के ऊपर से गुजरते हैं और उन अंडों को वीर्यकण दे देते हैं, और तब वह अंडा सजीव हो जाता है। तो नसरुद्दीन बड़ा बेचैन होता है। आखिर जब व्याख्यान खत्म हो जाता है, वह पहुंचता है वैज्ञानिक के पास और उससे कहता है, क्या आपका मतलब है कि मछलियां संभोग नहीं करतीं ? उस वैज्ञानिक ने कहा, आप बिलकुल ठीक समझे । मादा अंडे दे देती है, पुरुष अंडों को आकर फर्टिलाइज कर देता है। कोई संभोग नहीं होता । तो नसरुद्दीन थोड़ी देर चिंतित रहा और फिर उसके चेहरे पर चमक आ गयी ! उसने कहा कि नाउ आइ अंडरस्टैंड, व्हाइ पीपुल कॉल फिशेज़ पुअर फिश —क्यों लोग मछली को गरीब मछली कहते हैं, मैं समझ गया । यही कारण है ! वह जो काम में डूबा हुआ है, उसके लिए सारा जीवन दीन-हीन है अगर कामवासना नहीं है। तब जीवन में कोई अर्थ नहीं दिखाई पड़ेगा । क्योंकि सारा अर्थ ही हमारे जीवन का कामवासना के आधार पर टिका हुआ है। हम सारी चीजों को तौल ही रहे हैं एक ही जगह से । तो हम सोच भी नहीं सकते कि महावीर का आनंद क्या हो सकता है। एक आनंद ऐसा भी है, जो किसी पर निर्भर नहीं है और किसी का मुहताज नहीं है, और किसी की मांग नहीं करता, और किसी के सामने भिक्षा का पात्र नहीं फैलाता । एक ऐसा निज में डूबने का आनंद भी है। उसकी हमें कोई खबर नहीं है; उसकी खबर हो भी नहीं सकती। उसकी खबर हमें तभी होगी, जब हमारी आसक्ति शुद्ध पीड़ा बन जाये और हमें दिखाई पड़ने लगे कि हम जो भी कर रहे हैं, वह सब दुख है। और यह प्रतीत इतनी स जाये कि यह प्रतीति ही हमें उपर उठा दे । और एक क्षण को भी हमें अनुभव हो जाये अपने शुद्ध होने का, जहां दूसरे की कोई मौजूदगी नहीं थी, कल्पना में भी कोई दूसरा मौजूद नहीं था, हम अकेले थे - टोटल लोनलीनेस – एकांत पूरा भीतर अनुभव हो जाये एक क्षण को भी, तो आपने खुला आकाश जान लिया। फिर आप कामवासना के कारागृह में लौटने को राजी नहीं होंगे। महावीर कहते हैं, 'जब साधक विरक्त हो जाता है, तब अंदर-बाहर के सभी सांसारिक संबंधों को छोड़ देता है । ' 'जब अंदर और बाहर के समस्त सांसारिक संबंधों को छोड़ देता है, तब दीक्षित होकर पूर्णतया अनगार वृत्ति को प्राप्त होता है । ' और जब तक विरक्ति न हो, तब तक दीक्षा का कोई उपाय नहीं है। दीक्षा का अर्थ है, उस विराट में इनिशिएशन । जब तक आप संसार से जकड़े हुए हैं, तब तक गुरु से कोई संबंध नहीं हो सकता; तब तक गुरु से कोई लेना-देना नहीं है; तब तक आप गुरु के पास भी संसार के लिए ही जाते हैं। इसलिए जो गुरु आपका संसार बढ़ाता हुआ मालूम पड़ता है, आश्वासन देता है, भरोसा दिलाता है, उसके पास बड़ी भीड़ इकट्ठी Jain Education International 543 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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