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________________ मोक्षमार्ग-सूत्र जया निव्विंदए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ संजोगं, सब्भिन्तरं बाहिरं ।। जया चयइ संजोगं, सब्भिन्तरं बाहिरं । तया मुण्डे भवित्ताणं, पव्वयइ अणगारियं ।। जया मुण्डे भवित्ताणं, पव्वयइ अणगारियं । तया संवरमुक्किट्ठे धम्मं फासे अणुत्तरं ।। जया संवरमुक्तिट्ठ, धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं । जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं । तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छइ ।। जब देवता और मनुष्य संबंधी समस्त काम-भोगों से (साधक) विरक्त हो जाता है, तब अंदर और बाहर के सभी सांसारिक संबंधों को छोड़ देता है। जब अंदर और बाहर के समस्त सांसारिक संबंधों को छोड़ देता है, तब मुण्डित (दीक्षित) होकर (साधक) पूर्णतया अनगार वृत्ति (मुनिचर्या) को प्राप्त करता है । जब मुण्डित होकर अनगार वृत्ति को प्राप्त करता है, तब (साधक) उत्कृष्ट संवर एवं अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है। Jain Education International : 3 जब (साधक) उत्कृष्ट संवर एवं अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब (अंतरात्मा पर से) अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को झाड़ देता है । जब (अंतरात्मा पर से) अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को दूर कर देता है, तब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है। 532 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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