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संयम है संतुलन की परम अवस्था की विधि का नाम ही 'ध्यान' है। इस रोक लेने की विधि को 'सामायिक', महावीर ने कहा है।
सामायिक शब्द बड़ा बहुमूल्य है, ध्यान से भी ज्यादा बहुमूल्य है। क्योंकि ध्यान में थोड़ी-सी भ्रांति हो सकती है। सामायिक जैसा शब्द सारी दुनिया की किसी भाषा में नहीं है। जब भी हम कहते हैं 'ध्यान', तो ऐसा लगता है, किसी चीज पर ध्यान।
मेरे पास लोग आते हैं-उनसे मैं कहता हूं, 'ध्यान करो !' तो वे कहते हैं, किस चीज पर ध्यान करें?' तो ध्यान लगता है, बहिर्मुखी है। अंग्रेजी में शब्द है, मेडिटेट-उसका मतलब ही होता है, किसी चीज पर। तो किसी से कहो, मेडिटेट करो, तो वह पूछता है, आन व्हाट-ओम पर? राम पर? क्राइस्ट पर? मैरी पर?...किस पर?
महावीर ने ध्यान शब्द का उपयोग नहीं किया, क्योंकि ध्यान में भ्रांति है। ध्यान का मतलब ही होता है, किसी चीज पर ध्यान; बाहर हो गया। महावीर ने कहा; सामायिक। सामायिक शब्द उनका अपना है। 'समय' आत्मा का नाम है महावीर के लिए। समय का अर्थ है : आत्मा और सामायिक का अर्थ है : आत्मा में होना-टु बी इन वनसेल्फ। ___ ध्यान उतना मूल्यवान शब्द नहीं है। लेकिन महावीर को माननेवाले भी सामायिक करते वक्त ध्यान कर रहे हैं, सामायिक नहीं;
व पढ़ रहे हैं—यह ध्यान हुआ, सामायिक नहीं हुई। महावीर-स्वामी का नाम जप रहे हैं—यह ध्यान हुआ, सामायिक न
महावीर कहते हैं : भीतर की वैसी अवस्था, जब तुम ही तुम रह गये-यू अलोन; जहां न कोई शब्द है, न कोई ध्वनि है, न कोई रूप है। जहां कुछ भी बाहर का नहीं है। जहां कुछ भी पराया नहीं है। जहां कुछ भी अन्य नहीं है। जहां तुम्हारा होना, अकेला होना है। जहां होना मात्र रह गया है-जस्ट बीइंग-उस अवस्था का नाम सामायिक है।
यह बड़े मजे की बात है। इसका अर्थ यह हआ कि सामायिक की नहीं जा सकती। आप सामायिक में हो सकते हैं. सामायिक कर नहीं सकते-क्योंकि करने का मतलब ही होगा कि बाहर चले गये। कृत्य बाहर ले जाता है। ___ तो सामायिक कोई क्रिया नहीं है। सामायिक एक अवस्था है-अपने में डूबने की अवस्था; अपने में बंद हो जाने की अवस्था; अपने को सब तरफ से तोड़ लेने की, अलग कर लेने की अवस्था।
इसके लिए कोई जंगल जाना जरूरी नहीं है। जहां आप हैं, वहीं यह कला आप सीख सकते हैं। लेकिन थोडा-सा अभ्यास करें। घड़ी-दो-घड़ी रोज आंख बंद कर लें और भीतर के अंधेरे में जीयें। थोड़े ही दिनों में, बिना कुछ और किये, सिर्फ भीतर के अंधेरे में रहने की क्षमता विकसित करते-करते आप अचानक पायेंगे कि बीच-बीच में जैसे झपकी लग जाती है; आप अपने में डब जाते हैं क्षण भर को। __ और वह क्षण भी अपने में डूबना इतना आह्लादकारी है कि आप अनंत-अनंत जन्मों के सुख उसके लिए छोड़ सकते हैं। जरा-सी झपकी भीतर; जरा-सी देर के लिए डूब जाना; एक क्षण के लिए जगत से टूट जाना; शरीर से अलग हो जाना और अपने में डूब जाना-वह डुबकी एक दफा आपको मिलनी शुरू हो जाये, फिर संसार को छोड़ना नहीं पड़ता, संसार कचरा मालूम होने लगता है। __छोड़ना तो उसे पड़ता है, जिसमें मूल्य मालूम पड़े। कचरे को कोई नहीं छोड़ता। आप घर के बाहर जाकर रोज चिल्लाकर घोषणा नहीं करते कि आज फिर कचरे का हम त्याग कर रहे हैं। हां, जब आप सोने का त्याग करते हैं, तब आप जरूर खबर चाहते हैं कि छपे-क्योंकि सोना आपके लिए कचरा नहीं है। ___ लेकिन जैसे ही भीतर के सोने का पता चलता है, बाहर का सब सोना कचरा हो जाता है। और एक क्षण के लिए भी वैसी सुरति बंध जाये, वैसी स्मृति जग जाये, वैसी सामायिक हो जाये, तो उसके बाद शास्त्रों में नहीं खोजना पड़ता, आप खुद जानते हैं कि शरीर और
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