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________________ संयम है संतुलन की परम अवस्था लेकिन आदमी बूढ़ा हो जाये, जीवन के सब दुख-सुख भोग ले, तो भी शरीर की वासना खींचती ही चली जाती है। अकसर तो ऐसा होता है कि बूढ़ा होते-होते आदमी और भी कामवासना से भर जाता है। ___ इसलिए कोई उम्र से ही कभी मुक्त नहीं होता; और न उम्र से कोई कभी ज्ञानी होता है; और न उम्र से कभी कोई अनुभवी होता है। तो कोई भी कितना ही बूढ़ा हो जाये, लेकिन जीवन की प्रौढ़ता उम्र से नहीं आती। और कितना ही आपको अनुभव हो जाये जीवन का, अनुभव अकेला आपको कहीं भी नहीं ले जाता हो सकता है और गर्त में ले जाये; क्योंकि जितना हमें अनुभव होता जाता है, उतनी ही हमारी आदत भी मजबूत होती जाती है। ___ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन का जवान लड़का है। बीस वर्ष उसकी उम्र है, लेकिन थोड़ा शर्मीला है। न तो ज्यादा बोलता है, न ज्यादा लोगों से मिलता-जुलता है। और उसकी उम्र में जो स्वाभाविक है कि लड़कियों के पीछे घूमे, वह भी नहीं करता है-बंद अपनी किताबों में, द्वार बंद किये रहता है। __ लेकिन एक दिन सांझ वह अपने कपड़े पहनकर, ठीक सज-धज कर नीचे उतरा सीढ़ियों से और उसने बूढ़े नसरुद्दीन से कहा कि पिता जी, अब बहुत हो चुका ! और अब मैं वहीं करूंगा, जो मेरी उम्र में सभी लोग कर रहे हैं। और मैं शहर की तरफ जा रहा हूं सुंदर लड़कियों की तलाश में। और आज मैं खूब डटकर पियूँगा भी ताकि मेरा यह सारा संकोच और यह मेरी सारी जड़ता टूट जाये। और आज तो अभियान और दुस्साहस की रात है। आज जो भी हो सकता है, वह मैं करूंगा। जो भी मेरी उम्र के लोग कर रहे हैं, वह मैं करूंगा। और ध्यान रहे, डोन्ट ट्राइ ऐण्ड स्टाप मी, कोशिश मत करना मुझे रोकने की! नसरुद्दीन उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा, ट्राइ ऐण्ड स्टाप यू, होल्ड आन माइ ब्वाय, आइ ऐम कमिंग विद यू-दृढ़ रहना अपने खयाल पर, मैं तेरे साथ आ रहा हूं। रोकने का कोई सवाल ही कहां है ! __ बाप भी बेटों से बहुत भिन्न नहीं है ! बूढ़ा होकर भी आदमी वहीं भटकता रहता है, जहां जवान भटकता है। जवान का भटकना क्षम्य है, बूढ़े का भटकना बिलकुल अक्षम्य हो जाता है। लेकिन कोई सिर्फ बूढ़ा होकर मुक्त नहीं हो पाता वासना से। कोई हो भी नहीं सकता। वासना से तो केवल वे ही मुक्त होते हैं, जो विवेक में गति करते हैं। उम्र की गति से वासना से मुक्त होने का कोई संबंध नहीं है। शरीर बूढ़ा हो जाये, वासना कभी बूढ़ी नहीं होती-मरते दम तक पकड़े रखती है। वासना तो बूढ़ी होती है तभी, जब विवेक जगता है। विवेक वासना की मौत है ! दमी वासना को पूरा करने में अक्षम हो जाता है, लेकिन वासना मन को घेरे रखती है-घेरे रखती है; घूमती रहती है। और जवान की वासना में तो एक सौंदर्य भी होता है, बूढ़े की वासना बड़ी कुरूप हो जाती है और गंदी हो जाती है। हो ही जायेगी, क्योंकि शरीर अब साथ अपने आप छोड़ रहा है। शरीर अपने आप आत्मा से अलग हो रहा है। लेकिन वासना के कारण बूढ़ा आदमी अपने शरीर को अभी भी जकड़े हुए है। मृत्यु करीब आ रही है और शरीर आत्मा से टूट जायेगा। ___ अगर जीवन ठीक से विकसित हो तो मृत्यु का क्षण मोक्ष का क्षण भी बन सकता है। अगर उम्र ही न बढ़े और शरीर ही न पके-बोध भी पके, विवेक भी पके और भीतर समझ भी बढ़ती चली जाये, और साक्षी-भाव भी गहन होता चला जाये जीवन के अनुभव कोरे अनुभव न रहें, उनके पीछे विवेक का जागरण भी निर्मित होता चला जाये, तो मृत्यु के पहले ही व्यक्ति मुक्त हो सकता है। __ और जब कोई व्यक्ति मृत्यु के पहले जान लेता है कि मैं शरीर से पृथक हूं, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है। तब वह मर सकता है ऐसे, जैसे पुराने वस्त्र बदले जा रहे हों। तब वह मर सकता है ऐसे, जैसे ऊपर का कचरा झड़ रहा हो और भीतर का सोना निखर रहा हो। तब मृत्यु एक मित्र है एक अग्नि की भांति, जो जलायेगी कचरे को और बचायेगी मुझे। 511 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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