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________________ पहले ज्ञान, बाद में दया तो नसरुद्दीन ने कहा, एक छोटे से छोटा बच्चा भी जानता है-ईवन ए स्कूल ब्वाय नोज द ट्रिक : फर्स्ट काउंट द लेग्ज, देन डिवाइड देम बाई फोर-पहले पैर गिन लो, फिर चार से भाग दे दो। पहले मैंने पैर गिने, फिर चार से भाग दे दिया । ठीक सत्रह सौ चौरासी भेड़ें __पंडितों के सारे गणित ऐसे हैं। जिस बात से वे पहले उपद्रव को हल करते हैं, वह और भी ज्यादा उपद्रव के हैं। फिर उनसे और पूछिये तो वे और चार तर्क खडे कर देते हैं। एक रेश्नलाइजेशन का जाल है। वे खडा करते चले जाते हैं। लेकिन उससे मल भल मिटती नहीं। हां, जो नहीं समझ पाते हैं गणित को, उनको शायद चमत्कार हो जाता हो । शायद वे सोचते हों कि जरूर कोई रहस्य होगा, जभी तो इतना गणित हल हो रहा है। लेकिन पहली, प्राथमिक भूल मिटती नहीं। बुनियादी भूल यह है कि कोई भी चरित्र पैदा नहीं होता बोध के बिना। अगर बोध के बिना चरित्र पैदा करने की कोशिश की, तो चरित्र थोथा और पाखंड होगा-हिपोक्रेसी होगा। और ऐसा चरित्र नरक भला ले जाये, मोक्ष नहीं ले जा सकता । और ऐसा चरित्र यहां भी पीड़ा देगा; यहां भी कष्ट देगा-क्योंकि झूठा होगा, जबरदस्ती होगा। __मेरे पास लोग आते हैं । वे कहते हैं कि जिंदगीभर हमने कोई चोरी नहीं की; बेईमानी नहीं की-लेकिन कैसा नियम है जगत का कि चोर और बेईमान धनपति हो गये हैं; आनंद लूट रहे हैं; कोई पद पर है; कोई प्रतिष्ठा पर है; कोई सिंहासन पर बैठा हुआ है, और हम ईमानदार रहे और दुख भोग रहे हैं ! ___ उनको मैं कहता हूं कि तुम सच्चे ईमानदार नहीं हो । नहीं तो ईमानदारी से ज्यादा सुख तुम्हें महल में दिखाई नहीं पड़ सकता था । तुम्हारी ईमानदारी पाखंड है। तुम भी बेईमान हो, लेकिन कमजोर हो । वह बेईमान ताकतवर है। वह साहसी है। वह कर गुजरा, तुम बैठे सोचते रह गये। तुम सिर्फ कायर हो, पुण्यात्मा नहीं हो । तुममें बेईमानी करने की हिम्मत भी नहीं है, लेकिन बेईमानी का फल मिलता है, उसमें रस है। तुम चाहते हो कि बेईमानी न करूं और महल हमें मिल जाये। तब तुम जरा ज्यादा मांग रहे हो । बेईमान बेचारे ने कम से कम बेईमानी तो की; कुछ तो किया; दांव पर तो लगाया ही; झंझट में तो पड़ा ही; वह जेल में भी हो सकता है। उतनी उसने जोखम ली। जोखम हमेशा हिम्मतवर का लक्षण है । तुम सिर्फ कमजोर हो, और कमजोरी को तुम ईमानदारी कह रहे हो। तुम नहीं कर सकते बेईमानी, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम ईमानदार हो । इसका कुल मतलब इतना है कि तुममें साहस की कमी है । अगर तुम ईमानदार होते, तो तुम कहते कि बेचारा महलों में सड़ रहा है। बेईमानी करके देखो-यह फल मिला—कि महलों में सड़ रहा है; कि सिंहासन पर सड़ रहा है। तुम्हें दया आती, और तुम आनंदित होते । लेकिन एक बड़े मजे की बात है कि बेईमान कभी ईमानदारों की ईर्ष्या नहीं करते। यह बड़े मजे की बात है। और ईमानदार हमेशा बेईमानों की ईर्ष्या करते हैं। इससे बात साफ है कि वह जो ईमानदार है, झूठ है; धोखा है। उसकी ईमानदारी ऊपरी कवच है, उसका आंतरिक प्रकाश नहीं है। और वह जो बेईमान है, वह कम से कम सच्चा है; साफ है, कम से कम जटिल नहीं है; उलझा हुआ नहीं है। भला आदमी...उसका भला होना ही इतना बड़ा आनंद है कि वह क्यों ईर्ष्या करेगा? दया कर सकता है। लेकिन आप सब भले आदमियों को ईर्ष्या करते पायेंगे। वे समझते हैं कि अपनी भलाई की वजह से वे असफल हो गये हैं। भलाई की वजह से दुनिया में कोई कभी असफल नहीं होता और बुराई की वजह से दुनिया में कोई सफल नहीं होता। सफलता का कारण है : बुराई के साथ कोई साहस जुड़ा है; कोई सच्चाई जुड़ी है; यह जरा समझ लें। असफलता का कारण है : भलाई के साथ कोई कमजोरी, कोई कायरता, कोई नपुंसकता जुड़ी है। बेईमान अपनी बेईमानी में जितना साहसी है, ईमानदार अपनी ईमानदारी में उतना साहसी नहीं है, वह साहस प्राण ले लेता है, उसकी 503 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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