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________________ महावीर वाणी भाग : 2 पूछनेवाला कृत्यों के संबंध में पूछ रहा है। कैसे चले, कैसे बैठे, कैसे सोये, कैसे भोजन करे, कैसे बोले ? यह सब कृष्ण से अर्जुन है गीता में कि स्थितप्रज्ञ की भाषा क्या है ? वह कैसे बोलता है ? समाधिस्थ का व्यवहार क्या है ? वह कैसा व्यवहार करता है ? ऐसा ही कोई साधक, कोई जिज्ञासु महावीर से पूछ रहा है कि हम क्या करें ? जोर, ध्यान दें, करने पर है; हम क्या करें, जिससे पाप-कर्म का बंध न हो । पूछा ने पाप-कर्म के बंध से अर्थ है, जिससे मैं बंधूं न, गुलाम न होऊं; जिससे मैं कारागृह में बंद न होऊं; जिससे मेरी आंतरिक स्वतंत्रता नष्ट न हो; जिससे मैं भीतर खुले आकाश में विचरण कर सकूं, मुझे कोई बांधे न; कोई भी घटना मुझे बांधे न; मैं मुक्त रहूं; मेरा भीतरी मोक्ष नष्ट न हो । यह समझ लेने जैसा है कि आदमी की गहनतम आकांक्षा स्वतंत्रता की है; गहनतम आकांक्षा मुक्ति की है। और जहां भी आप पाते हैं कि आपकी स्वतंत्रता में बाधा पड़ती है, वहीं कष्ट शुरू हो जाता है I इसलिए जो भी आपकी स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं - वे चाहे मित्र ही क्यों न हों – वे दुश्मन की भांति मालूम होने लगते हैं। जिनसे आप प्रेम करते हैं, अगर वे भी आपके जीवन में बाधा बन जायें और परतंत्रता लायें, तो प्रेम कड़वा हो जाता है; जहरीला हो जाता है और प्वाइजन हो जाता है। फिर उस प्रेम से रस नहीं बहता । फिर उस प्रेम में दुख और पीड़ा समाविष्ट हो जाती है। जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको सुख दे सके, अगर आपकी स्वतंत्रता को नष्ट करता हो। इसलिए मनीषियों ने कहा है कि मोक्ष परम तत्व है। इसका अर्थ आप समझ लेना । इसका अर्थ हुआ, टु बी फ्री - टोटली फ्री - समग्र रूप से मुक्त। जहां कोई चीज बाधा नहीं बनती, और जहां मैं अपने निज-स्वभाव में पूरी तरह रह सकता हूं। जहां कोई मजबूरी नहीं है । ऐसे चित्त की दशा ही मनुष्य की खोज है। तो न धन से पूरी होती वह खोज, क्योंकि धन भी चारों तरफ दीवाल बन जाता है। वह भी मुक्त कम करता और बांधता ज्यादा है। धनी आदमी को देखें। वह धन से मुक्त नहीं मालूम पड़ता; धन से और भी बंधा हुआ मालूम पड़ता है। इसका यह मतलब नहीं है कि आप गरीब हैं तो धन से मुक्त होंगे। गरीब तो और भी मुक्त नहीं हो सकता। जो नहीं है धन उसके पास, वह उसे बांधे रहता है । तो दुनिया में गरीब और अमीर नहीं हैं। दुनिया में धन के आकांक्षी और जिनको धन उपलब्ध हो गया, धनिक; दो तरह के लोग हैं। एक जिनको धन अभी उपलब्ध नहीं हुआ; ऐसे धनी; और एक जिनको धन उपलब्ध हो गया है, ऐसे धनी । गरीब तो खोजना बहुत मुश्किल है; गरीब का मतलब यह है कि जिसे धन की आकांक्षा ही नहीं है; जो धन की दौड़ में ही नहीं है। लेकिन वैसा गरीब सम्राट हो जाता है। धन मिल जाता है तो धन मुक्त नहीं करता दिखाई पड़ता; और भी बांध लेता है, कसकर बांध लेता है। सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में एक अमीर आदमी था । और जैसा कि अमीर आदमी होते हैं, महाकृपण था। कपड़े भी कभी धोता था, इसमें शक था; क्योंकि धोने से कपड़े जल्दी नष्ट हो जाते। घर में बीमारी आ जाये तो इलाज नहीं करवाता था ! क्योंकि बीमारी तो अपने से ही ठीक हो जाती है, इलाज तो नाहक पैसे का खर्च है ! उसने सब तरह के सिद्धांत बना रखे थे जो उसके पैसे को बचाते थे । फिर गांव में एक जादूगर, एक मदारी आया और उसकी बड़ी चर्चा फैली कि वह बड़े गजब के खेल दिखा रहा है। उसके खेल का नाम था : दि मिरेकल – चमत्कार । आखिर उस कंजूस को भी मन में खेल देखने का खयाल उठने लगा। लेकिन मन में बड़ी पीड़ा होती थी, क्योंकि पत्नी कहती थी, अगर तुम गये तो मैं भी जाऊंगी, बेटा कहता था, अगर तुम गये तो मैं भी जाऊंगा। तो तीन रुपये का खर्च था; एक रुपया टिकट था एक-एक आदमी का । Jain Education International 490 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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