________________
भिक्षु कौन? उनकी क्षुद्र वासनाएं हैं। उन क्षुद्र वासनाओं से उनका तालमेल बैठता है। __ असल में जब आप एक आदमी के हाथ से ताबीज को प्रगट होते देखते हैं, तो आपको लगता है, जो ताबीज प्रगट कर सकता है शून्य से, वह मेरी शून्य में भटकती सारी वासनाओं को भी चाहे तो पूरा कर सकता है। लड़का नहीं है मुझे एक लड़का पैदा हो सकता है। जब ताबीज निकल सकता है शून्य से, तो लड़का क्यों नहीं निकल सकता ! और अभी मुझे असफलता लगती है हाथ; सफलता क्यों नहीं आ सकती है, जब शून्य से ताबीज निकल सकता है। ___ आपकी भटकती हुई वासनाएं हैं, जो शून्य में हैं; जिनको कोई पूरा करने का उपाय नहीं दिखता। जब भी आप किसी आदमी के पास शून्य से कुछ प्रगट होते देखते हैं, तब आपको भरोसा पड़ता है। तब आप चरणों पर गिर जाते हैं। ___ कोई भी व्यक्ति धर्म को नमस्कार करने की तैयारी में नहीं दिखता। इसलिए महावीर के भिक्षुओं को कभी भी आज्ञा नहीं रही है कि वे किसी तरह का भी चमत्कार करें। बुद्ध के भिक्षुओं को भी आज्ञा नहीं रही कि वे किसी तरह का चमत्कार करें। हो सकता है, शायद बुद्ध और महावीर के भिक्षुओं का प्रभाव इस देश पर इसीलिए ज्यादा नहीं पड़ सका। क्योंकि मदारी होने की उन्हें आज्ञा नहीं है, निषेध है। और निषेध कीमती है।
काश, हिन्दू संन्यासियों को भी इसी तरह का निषेध साफ-साफ हो। और हिन्दू मन में भी यह बात साफ बैठ जाये कि चमत्कार दिखाता ही वह आदमी है, जो किसी तरह पूजा पाना चाहता है; प्रतिष्ठा पाना चाहता है; जो आपकी क्षुद्र वासना का शोषण कर रहा है। तो जिन्हें हम अभी महात्मा कहते हैं, उन्हें हम महात्मा न कह पायें। और जिन्हें अभी हम पहचान भी नहीं पाते, और जो महात्मा है, उनकी पहचान, उनकी प्रतिभिज्ञा होनी शुरू हो जाये। 'जो स्थितात्मा है...' जो हर स्थिति में थिर है, और जिसे हिलाने का कोई उपाय नहीं है। 'जो निस्पृही है...।' जिसकी कोई स्पर्धा नहीं; कोई स्पृहा नहीं; कोई महत्वाकांक्षा नहीं। जो न किसी से जीतना चाहता है, न किसी से हारना चाहता है। जो न कहीं पहुंचना चाहता है, न जिसका कोई लक्ष्य है इस संसार की भाषा में। जो किसी का प्रतियोगी नहीं है—वही भिक्षु है।
वस्तुतः प्रतियोगिता अहंकार का ज्वर है। और जब तक अहंकार है, तब तक प्रतियोगिता रहेगी। जिनको हम साधु-महात्मा कहते हैं, वे भी बड़े प्रतियोगी हैं। एक-दूसरे से प्रतियोगिता चलती रहती है। किसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, किसकी घटती है; कौन ज्यादा सम्मान को प्राप्त होता है, कौन कम सम्मान को प्राप्त होता है-उसकी सबकी चेष्टा चलती रहती है। __महावीर कहते हैं, भिक्षु वही है, जिसकी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। जो न-कुछ होने को राजी है। और जो न-कुछ ही मर जाये, तो उसे जरा-सी भी चिन्ता पैदा न होगी। और जो सब-कुछ भी हो जाये, तो भी उसमें कोई गर्व निर्मित न होगा। जो सिंहासन पर हो तो ऐसे ही होगा, जैसे सूली पर हो। सूली और सिंहासन पर जो समभाव से हो सके, ऐसा निस्पृही, प्रतिस्पर्धारहित, समभावी व्यक्ति संन्यस्त है। वही भिक्षु है।
पांच मिनट कीर्तन करें, फिर जायें...!
461
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org