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________________ महावीर वाणी भाग : 2 जिसने अतीत भी छोड़ दिया, और जिसने भविष्य भी त्याग दिया। जो शुद्ध वर्तमान में खड़ा है, वही भिक्षु है । 'जो ऋद्धि, सत्कार, और पूजा-प्रतिष्ठा का मोह छोड़ देता है... । मोह पकड़ता है, क्योंकि जैसे ही व्यक्ति साधना के जगत में प्रवेश करता है, अनेक घटनाएं घटनी शुरू हो जाती हैं। उन घटनाओं अगर थोड़ा-सा भी ऋद्धि, चमत्कार, सिद्धि का आग्रह बना रहे, तो जीवन मदारी का जीवन हो जाता है। मोक्ष की तरफ जाने के बजाय आदमी मदारी की तरफ जाना शुरू हो जाता है। बहुत घटनाएं घटती हैं। क्योंकि जीवन में बड़ी पर्तें छिपी हैं; बड़े रहस्यमय लोक छिपे हैं। बड़ी शक्तियां हैं, जो आपके पास हैं । जैसे ही आप भीतर प्रवेश करेंगे, वे शक्तियां सक्रिय होना शुरू होंगी। रामकृष्ण के आश्रम में एक सीधा-सादा आदमी था, कालू उसका नाम था। वह बड़ा सरल था। वह इतना सरल था और इतना ग्राहक था, जिसका हिसाब नहीं । उसका मस्तिष्क सीधा खुला था। विवेकानन्द साधना शुरू किये तो एक दिन विवेकानन्द को ध्यान लगा—पहली दफा । ध्यान लगते ही विवेकानन्द को ऐसा लगा कि मुझमें इतनी शक्ति है कि मैं चाहूं तो किसी का भी विचार प्रभावित कर सकता हूं। वह कालू बेचारा निरीह, सीधा आदमी था । उसको याद आया - विवेकानन्द को कि कालू से चाहो तो कुछ भी करवाया जा सकता है। और किसी में तो अड़चन भी होगी, क्योंकि लोग चालाक हैं; बाधा डालेंगे — कालू सीधा है। कालू अपनी पूजा कर रहे थे। वह अपने कमरे में सभी तरह के देवी-देवता रखे थे – सैकड़ों; और सभी की पूजा करते थे । उनको कोई छह-आठ घण्टे सभी फूल रखने में और घण्टी हिलाने में लग जाते। वे पूजा कर रहे थे। घण्टी की आवाज आ रही थी । को विवेकानन्द ने कहा : कालू, बांध एक पोटली सब देवी-देवताओं की और फेंक गंगा में। कालू ने बांधी पोटली; चले हैं गंगा की तरफ । वहां से रामकृष्ण स्नान करके आ रहे थे। तो उन्होंने कहा : रुक, कहां जा रहा है? उसने कहा कि बस, ऐसा भाव आ गया... । 'यह तेरा भाव नहीं है। तू वापिस चल । ' जाकर विवेकानन्द का दरवाजा खटखटाया और कहा कि बस, यह तू क्या कर रहा है? अगर ऐसा ही तुझे करना है तो तेरे ध्यान की चाबी मैं अपने हाथ में ले लेता हूं। जैसे ही व्यक्ति के जीवन में भीतर की ऊर्जाएं जगनी शुरू होती हैं, बड़ा भरोसा आना शुरू होता है। और उस भरोसे में आदमी कर सकता है वह सब जो...अब इस मुल्क में कई चमत्कारी बहुत-से तरह के काम करते दिखाई पड़ रहे हैं। महावीर उनमें से किसी को भी संन्यासी नहीं कहेंगे। सच तो यह है कि वे संन्यास का दुरुपयोग कर रहे हैं । कोई ताबीज निकाल रहा है। किसी के हाथ से भस्म गिर रही है। कोई घड़ियां बांट रहा है। मिठाइयां आ रही हैं; हाथों में प्रगट हो रही हैं। यह सब हो सकता है। इस सबके होने में जरा भी अड़चन नहीं है; बड़े मूल्य पर होता है लेकिन । संन्यास खो जाता है, मदारीपन हाथ में रह जाता है। तो महावीर कहते हैं, भिक्षु वही है, जो ऋद्धि-सिद्धि से बचे; जो सत्कार, पूजा-प्रतिष्ठा का मोह छोड़ दे। क्योंकि तब बड़ा सत्कार मिल सकता है क्षुद्र बातों से । हमारे आसपास जो भीड़ खड़ी है, वह क्षुद्र बातों की तो आकांक्षा करती है। अब यह क्या बड़ी आकांक्षा है - किसी के हाथ से राख गिरने लगे; बस, आप चमत्कृत हो गये । साधु के पास आप गये । उसने हाथ बन्द किया - खुला हाथ था, खाली आपने देखा था— बन्द किया और एक ताबीज आपको भेंट कर दिया। बस, मोक्ष आपको भी मिल गया; साधु को भी मोक्ष मिल गया। न तो कोई ज्ञान से प्रभावित होता है, न कोई जीवन से प्रभावित होता है। लोग क्षुद्र चमत्कारों से प्रभावित होते हैं। लोग क्षुद्र हैं; Jain Education International 460 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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