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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 करेगा। ___ इसलिए फ्रायड ने तो कहा है कि संभोग से ज्यादा अच्छा टैंक्विलाईजर कोई भी नहीं है। नींद के लिए अच्छी दवा है । क्योंकि अगर शक्ति भीतर है तो सो न पायेंगे। उसे फेंक दो बाहर, हल्के हो जाओ, खाली हो जाओ। नींद लग जायेगी। तो दो ही जरूरतें है-जब कमी हो तो भरो, जब ज्यादा हो जाये तो निकाल दो। इसलिए दुनिया में इतनी कामवासना दिखायी पड़ रही है आज, उसका कारण यह है कि भरने की जरूरतें काफी दूर तक काफी लोगों की पूरी हो गयी हैं, निकालने की जरूरत बढ़ गयी है, भूखा आदमी है, गरीब आदमी है, मकान नहीं, कपड़ा नहीं, प्रतिपल भरने की चिंता है, तो निकालने की चिंता का सवाल नहीं उठता। इसलिए आज अगर अमरीका में एकदम कामुकता है, तो उसका कारण आप यह मत समझना कि अमरीका अनैतिक हो गया है । जिस दिन आप भी इतनी समृद्धि में होंगे, इतनी ही कामुकता होगी। क्योंकि जब भरने का काम पूरा हो गया, तब निकालने का ही काम बचता है। जब भोजन की कोई जरूरत न रही, तो सिर्फ संभोग की ही, सेक्स की ही जरूरत रह जाती है, और कोई जरूरत बचती नहीं है। ___भोजन है भरना, और संभोग है निकालना । तो जब भोजन ज्यादा होगा, तो तकलीफ शुरू होगी। इसलिए सभी सभ्यताएं जब भोजन की जरूरत पूरी कर लेती हैं, तब कामुक हो जाती हैं। इसलिए हम बड़े हैरान होते हैं कि समृद्ध लोग अनैतिक क्यों हो जाते हैं ! गरीब आदमी सोचता है, हम बड़े नैतिक हैं। अपनी पत्नी से तृप्त हैं। ये बड़े आदमी, समृद्ध आदमी, तृप्त क्यों नहीं होते, शांत क्यों नहीं हो जाते? ये क्यों भागते रहते हैं। मोरक्को का सुलतान था, उसके पास अनगिनत पत्नियां थीं, कभी गिनी नहीं गयीं। लेकिन अनगिनत होंगी-उसके पास दस हजार बच्चे पैदा करने की कामना थी, उसकी। काफी दूर तक सफल हआ । एक हजार छप्पन लड़के और लड़कियां उसने पैदा किये। गरीब आदमी को लगेगा, यह क्या पागलपन है! लेकिन एक सुलतान को नहीं लगेगा। भरने की जरूरतें सब पूरी हैं, जरूरत से ज्यादा पूरी हैं, अब निकालने की ही जरूरत रह गयी है। ___ यह जो स्थिति है, यह तो प्रकृतिगत है। धर्म कहां से शुरू होता है? धर्म वहां से शुरू होता है, जहां भरना भी व्यर्थ हो गया, निकालना भी व्यर्थ हो गया। जहां दुख तो व्यर्थ हो ही गये, सुख भी व्यर्थ हो गये। जहां सारी प्रकृति व्यर्थ मालूम होने लगी। ___ एक स्त्री से असंतुष्ट हैं तो आप दूसरी स्त्री की तलाश पर जायेंगे। लेकिन अगर स्त्री-मात्र से असंतुष्ट हो गये, तब धर्म का प्रारंभ होगा। इस भोजन से असंतुष्ट हैं, दूसरे भोजन की तलाश में जायेंगे। लेकिन भोजन मात्र, एक व्यर्थ का क्रम हो गया, तो धर्म की खोज शुरू होगी । यह सुख भोग लिया, इससे असंतुष्ट हो गये तो दूसरे सुख की खोज शुरू होगी। सब सुख देखे, और व्यर्थ पाये, तो धर्म की खोज शुरू होगी। जहां प्रकृति व्यर्थता की जगह पहुंच जाती है, मीनिंगलेसनेस, वहां आदमी आशुप्रज्ञता की तरफ, उस अंतस चैतन्य, उस भीतरी ज्योति की तरफ यात्रा करता है। क्यों? __ क्योंकि प्रकृति है बाहर । जब बाहर से कोई व्यर्थता अनुभव करता है तो भीतर की तरफ आना शुरू होता है। एक है जगत, जो खाली है उसे भरो, जो भरा है उसे खाली करो ताकि फिर भर सको, ताकि फिर खाली कर सको। एक है जगत इस सर्कल, व्हिसियस सर्कल का। और एक और जगत है, कि बाहर व्यर्थ हो गया, भीतर की तरफ चलो। प्रकृति व्यर्थ हो गयी, परमात्मा की तरफ चलो। __इसलिए प्रकृति की ही मांग के लिए अगर आप परमात्मा की तरफ जाते हों, तो जानना कि अभी गये नहीं। जिस दिन आप परमात्मा के लिए ही परमात्मा की तरफ जाते हैं, उस दिन जानना कि धर्म का प्रारंभ हुआ। अब हम सूत्र लें। 'जैसे कमल शरद-काल के निर्मल जल को भी नहीं छूता, और अलिप्त रहता है।' 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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