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________________ महावीर वाणी भाग 2 यह रास्ता बिलकुल अलग है। अगर प्रश्न छोड़ने हैं तो ध्यान करना पड़ेगा। अगर प्रश्नों के उत्तर खोजने हैं तो विचार करना पड़ेगा। विचार से उत्तर मिलेंगे; उत्तरों से नये प्रश्न मिलेंगे, और जाल फैलता चला जायेगा । अगर प्रश्न छोड़ने हैं तो ध्यान करना पड़ेगा। एक प्रश्न उठता है, उसके उत्तर की खोज में मत जाएं; उस प्रश्न को देखते हुए खड़े रहें; और तब तक खड़े रहें भीतर, जब तक कि वह प्रश्न तिरोहित न हो जाये; आंख से ओझल न हो जाए; परदे से हट न जाए। हर चीज हट जाती है, आप थोड़ी हिम्मत से लगे रहें । सोचें, आपको पता होगा कि आपके पिता का चेहरा कैसा है। जब तक आपने गौर नहीं किया, तब तक पता है। आंख बंद करें, हलकी-सी छवि आयेगी । फिर गौर से देखें, आप बड़ी मुश्किल में पड़ जायेंगे --पिता का चेहरा अस्त-व्यस्त होने लगा। अपने ही पिता का चेहरा, और पकड़ में ठीक से नहीं आता। और गौर से देखें... रेखाएं घूमिल हो गयीं, चेहरा हटने लगा। और गौर से देखें... देखते चले जाएं। थोड़ी देर में आप पायेंगे, परदा खाली हो गया, वहां पिता का कोई चेहरा नहीं है। चित्त से किसी भी चीज को विसर्जित करना हो― गौर से देखना कला है। टु बी अटेन्टिव — पूरा ध्यान उसी पर हो जाए, वह नष्ट हो जायेगी । ध्यान अग्नि है । वह किसी भी विचार को जला देती है। आप करें और देखें। किसी भी विचार को सोचें मत, सिर्फ देखें। खड़े हो जाएं और देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें - थोड़ी देर में आप पायेंगे, वह तिरोहित हो गया; वहां खाली जगह रह गयी। वह खाली जगह समाधान है। और जब कोई व्यक्ति ऐसी कला से चलते, चलते, चलते उस जगह पहुंच जाता है, जहां प्रश्न उठते ही नहीं, खाली जगह रह जाती है, वह समाधिस्थ है 1 इस समाधि में आत्मा का अनुभव होता है, क्योंकि इस समाधि में मन नहीं रह जाता। मन है विचार, जब विचार खो गये; मन है प्रश्न, जब प्रश्न खो गये - तब कोई मन नहीं बचता - अ - मन - नो - माइण्ड | कबीर ने कहा है : अ-मनी स्थिति आ गयी, अब अमृत झरता ही रहता है। जब मन नहीं रह जाता, अ-मनी स्थिति आ जाती है— उसको महावीर कहते हैं, 'समाधि ।' इस समाधि को उपलब्ध हो जाना जीवन का परम लक्ष्य है। इस समाधि को उपलब्ध होकर ही आपके भीतर परमात्मा का फूल खिल जाता है। और जब तक वह फूल न खिल जाए, तब तक जीवन से दुख, उत्तेजना, बेचैनी, तकलीफ, चिंता, संताप के मिटने का कोई उपाय नहीं है। • उस फूल के खिलने के लिए ही यह सारा आयोजन है। तो महावीर कहते हैं : वही है भिक्षु, जो शांत है इतना कि बाहर से उसका कोई संबंध न रहा। जो अभय है इतना कि बाहर से कोई भी चीज उसे कंपित नहीं कर सकती। और जो समाधिस्थ है; जिसके भीतर भी प्रश्न उठने बंद हो गये, वही भिक्षु है । पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें और फिर जायें... ! Jain Education International 440 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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