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महावीर-वाणी भाग : 2
पसीना थोड़ा आता ही रहेगा।
सपने तक में आप घबड़ा जाते हैं, तो जगकर भी थोड़ी देर घबड़ाये रहते हैं।
चारों तरफ की भीड़ घबड़ायी हुई है। चारों तरफ के लोग भागे जा रहे हैं अंधों की तरह-उस में आप भी भागे जा रहे हैं। महावीर इसको 'मूढ़ता' कहते हैं । संन्यासी तो वही है, जो इस मूढ़ता के बाहर आ जाए । वही भिक्षु है । अमूढ़-जो जग जाये और जो जिंदगी की भीड़ के धक्के में न जिये, बल्कि होशपूर्वक सोचे और जिये; देखे और जिये; निर्णय करे और चले, ऐसे ही न चलता जाये। __ बेहतर है कुछ न करना, बजाय कुछ करने के जो कि मूढ़ है, जो कि अंधा है। अच्छा है रुक जायें कुछ देर के लिए; कुछ न करें,
खाली छोड़ दें और एक दफा जिंदगी को पुनर्विचार कर लें, रिकन्सिडरेशन कर लें; और एक दफा लौटकर पिछला इतिहास देख लें अपना कि क्या कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं-अगर सफल भी हो जायेंगे तो कहां पहुंचेंगे, क्या उपलब्ध हो जायेगा?
ऐसी मूढ़ता तोड़ने की जब तक कोई तैयारी न करे, तब तक उसके जीवन में संन्यास नहीं उतरता । संन्यास या भिक्षु होने की संभावना उतरती है मूढ़ता का सिलसिला तोड़कर अमूढ़ होने से; होश से भरने से । जो होश से भर जाता है, वह नये पाप नहीं करता । सब पाप मूढ़ता में किये जाते हैं। जो होश से भर जाता है, वह भविष्य के पापों की योजना नहीं करता, क्योंकि सभी योजनायें मूढ़ता में की जाती हैं। जो होश से भर जाता है, उसके होश की अग्नि उसके अतीत के किये गये पापों को भी जलाने लगती है। लेकिन मूढ़ आदमी अभी तो पाप करता ही है, भविष्य की योजना भी बनाता है और अतीत के लिए भी दुखी रहता है। ___ मुल्ला मरते वक्त जो वक्तव्य दिया था, वह याद रखने जैसा है। पुरोहित ने उससे पूछा कि नसरुद्दीन, अगर तुम्हें फिर से जिंदगी मिले, तो तुमने जो पाप किये हैं, क्या तुम उसे फिर से करना चाहोगे?
नसरुद्दीन ने कहा, 'निश्चय ही. लेकिन जरा जल्दी शरू करूंगा! इस बार काफी देर कर दी।' परोहित तो समझा भी नहीं। उस परोहित ने कहा कि प्रार्थना करो परमात्मा से, पश्चाताप करो। क्या पागलपन की बात कह रहे हो?
नसरुद्दीन ने कहा, 'पश्चाताप मैं भी कर रहा है, लेकिन उन पापों के लिए नहीं. जो मैंने किये हैं: बल्कि उन पापों के लिए. जो मैं नहीं कर पाया; नाहक चूक गया; जिंदगी हाथ से निकल गयी।' ___ मूढ़ता अतीत में भी पाप करना चाहती है, जो कि जा चुका; जहां अब कुछ नहीं किया जा सकता। होशपूर्वक व्यक्ति भविष्य के पापों
की योजना छोड़ देता है, वर्तमान के पापों से उसका हाथ अलग हो जाता है, अतीत के पाप उसके इस होश की अग्नि में गिरने लगते हैं, जलने लगते हैं; कुसंस्कार अपने आप जल जाते हैं। उनका जो प्रतिफल है, वह भोग लिया जाता है। मैंने किसी को गाली दी थी, तो मैं गाली पा लूंगा; भोग लूंगा । वह दुख, वह कांटा छिदेगा, उसे मैं साक्षी-भाव से सुन लूंगा और समझूगा कि एक सौदा, एक संबंध, एक लेन-देन पूरा हो गया। इस आदमी से अब हमारा कुछ लेना-देना न रहा। में ऋण से मुक्त हो गया।
अतीत धीरे-धीरे होश की अग्नि में जल जाता है। और जिस दिन न कोई अतीत का पाप पकडता है: न भविष्य की कोई कामना पकड़ती है; न वर्तमान में कोई पाप की मूढ़ता होती है, उस दिन व्यक्ति जहां होता है वहीं संन्यास है, वहीं भिक्षु का स्वरूप है।
पांच मिनट रुकें। कीर्तन करें, फिर जायें।
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