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भिक्षु की यात्रा अंतर्यात्रा है
है। वस्तुयें जैसी अपने में हैं, उनको शुद्धता से देखने का नाम सम्यकदृष्टि है । और जो व्यक्ति वस्तुओं को वैसा ही देखने लगे, जैसी वे हैं—वह मुक्त होना शुरू हो जाता है, क्योंकि फिर उसे कोई भी नहीं बांध सकता। जिसकी दृष्टि मुक्त है, उसकी आत्मा को बांधने का कोई उपाय नहीं है। 'जो सम्यकदृष्टि है, जो अमूढ़ हैं...!'
मूढ़ता एक तरह की मूर्छा है, जिसमें हम सोये-सोये चलते हैं जैसे होश नहीं है; क्या कर रहे हैं, इसका कुछ पता नहीं है; क्या हो रहा है, इसका कुछ पता नहीं है-किये जा रहे हैं। आप अपनी जिंदगी से कभी एक दिन की छुट्टी ले लें, चौबीस घंटे की बिलकुल छुट्टी ले लें और बैठकर सोचें कि आप क्या कर रहे हैं? यह क्या हो रहा है? आप कहां हैं? आप सारी ताकत लगाये दे रहे लेकिन कहां पहुंचने के लिए? कोई मंजिल है? कुछ इससे उपलब्ध होनेवाला है? कुछ सार इससे निकलेगा? कभी निकला है किसी को? लेकिन दौड में इतने उलझे हैं कि सोचने की फुरसत कहां है! ___ मुल्ला नसरुद्दीन पैंतालीस साल तक नौकरी करता रहा । पैंतालीस साल बाद जब वह रिटायर हो गया, तो एक दिन उसने पत्नी से कहा कि चाय बहुत ज्यादा गर्म है । इतनी ज्यादा गर्म चाय मुझे बिलकुल पसंद नहीं। उसकी पत्नी ने कहा, 'हद्द करते हो, नसरुद्दीन! पैंतालीस साल इससे भी ज्यादा गर्म चाय तुम पीते रहे; कभी तुमने कहा क्यों नहीं?' उसने कहा, 'फुरसत कहां थी; अब रिटायर हो गया हूं, अब फुरसत है। अब तुझे बताता हूं कि एक दिन भी मैं इतनी गर्म चाय नहीं पीना चाहता।' __आप जिंदगी के आखिर में बैठकर पायेंगे कि जो आप क्या करना चाहते थे, वह तो किया नहीं, और जो करना नहीं चाहते थे, वह करते रहे। फरसत भी नहीं थी कि सोच लेते। अगर आपको आज ही पता चल जाये कि कल सुबह आप समाप्त हो जायेंगे, आपकी जिंदगी का पूरा मूल्यांकन बदल जायेगा। तत्काल आप सोचेंगे कुछ चीजें जो आपने सदा से करना चाहा और टालते रहे; और कुछ चीजें जिन्हें आप सदा करना चाहते थे, चाहेंगे कि अब बन्द कर दें-उनका अब कोई सार नहीं है।
लेकिन असलियत यही है कि अगला क्षण भरोसे का नहीं है। आप अगले क्षण समाप्त हो सकते हैं; कल तो बहुत दूर है, अगले क्षण आप समाप्त हो सकते हैं। लेकिन मूढ़ता है। एक मूर्छा है, चले जा रहे हैं। भीड़ में धक्कम-धुक्का है; और भी सब लोग जा रहे हैं, उसी में हम भी चले जा रहे हैं। अगर अकेले भी रास्ते पर होते, तो शायद थोड़े आप चौंकते । इतनी बड़ी भीड़ चली जा रही है, जरूर कहीं जा रही होगी। इतने पैर, इतने हाथ, चारों तरफ लोग दबाये दे रहे हैं; सब भागम-भाग, इतनी प्रतिस्पर्धा है कि ये जरूर कहीं पहुंच रहे होंगे। और हमें इतना भरोसा है अपने चारों तरफ की भीड़ पर, उनके शब्दों पर, उनकी इच्छाओं, वासनाओं पर कि वे वासनाग्रस्त लोग हमें भी उन्हीं वासनाओं से भर देते हैं।
नसरुद्दीन जिस दफ्तर में काम करता था। एक दिन जब वह अपने आफिस में आया तो देखा कि उसकी टेबल पर एक तार रखा है। तो वह भागा, तार में खबर थी कि यौर मदर हेज एक्सपायर्ड-तुम्हारी मां चल बसी है, शीघ्र पहुंचो; तो वह स्टेशन पर पहुंच गया। स्टेशन पर उसके ही दफ्तर के एक क्लर्क ने उससे आकर कहा कि क्षमा करिये, मैं आपको बहुत ढूंढ़ता रहा, आप मिले नहीं। मेरी मां मर गयी है, तार घर से आया है। आपकी टेबल पर मैं वह तार छोड़ आया हूं। __नसरुद्दीन ने कहा, 'धत तेरे की । यही मैं सोचता था कि मेरी मां को मरे तो दस साल हो गये, तार आज क्यों आया है। लेकिन तार ने ही ऐसी हालत पैदा कर दी कि मैंने कहा, कुछ भी हो, कुछ न कुछ होगा मामला, जाना जरूरी है।' ___अभी यहां कोई जोर से चिल्ला दे कि आग लग गई, तो आपके हृदय की धड़कन बढ़ जायेगी, पैर तैयार हो जायेंगे भागने को। फिर कोई खबर भी दे दे कि आग नहीं लगी, आप बैठ भी जायें, तो भी हृदय थोड़ी देर तक धड़कता ही रहेगा। सांस जोर से चलती रहेगी,
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