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महावीर-वाणी भाग : 2
भटकाये चले जाते हैं।
दूसरों को भटकाने का भी एक मजा है। और जब खुद भटका हुआ आदमी दो-चार आदमियों को भटका देता है, तो उसे अपनी भटकन कम मालूम पड़ती है कि हम कोई अकेले थोड़े ही भटक रहे हैं। और उसकी बात को मानकर अगर बहुत-से लोग भटकने लगते हैं तो वह भूल ही जाता है कि मैं भटक रहा हूं। क्योंकि तब उसे लगता है कि मैं इतने लोगों का नेता हूं, इतने लोग मेरे पीछे चल रहे हैं, मेरे भटकने का सवाल ही नहीं है । नेता को अपने पीछे चलते अनुयायियों को देखकर भरोसा आता है कि मैं ठीक चल रहा हूं, अन्यथा इतने लोग मेरे पीछे क्यों चलते।। ___पंडितों के कारण-थोथा और उधार ज्ञान जिन्होंने इकट्ठा कर लिया है- ऐसे गुरुओं के कारण आपको रास्ता मिल भी सकता तो नहीं मिल पाता।
मुल्ला नसरुद्दीन का एक रुपया गिर गया है। वह सड़क पर खोज रहा है । आधे घंटे में पसीना-पसीना हो गया खोजते-खोजते। उसकी पत्नी भी उसका साथ दे रही है। आखिर पत्नी ने पूछा, 'नसरुद्दीन, मिला?' नसरुद्दीन ने कहा, 'मिल सकता था, अगर तूने इतनी सहायता न की होती।'
उसको डर है कि यह स्त्री पा गयी। वह कह रहा है कि मिल सकता था, अगर तूने खोजने में इतनी सहायता न की होती।
बहुत-से गुरु आपको खोजने में इतनी सहायता कर रहे हैं कि जो मिल सकता था वह भी मिल नहीं पा रहा है। लेकिन उधार ज्ञान का दंभ करे, यह भी स्वाभाविक है, क्योंकि दंभ करे तो ही ज्ञान जैसा मालूम पड़ सकता है। __महावीर कहते हैं, ऐसे ज्ञान से कोई मुनि नहीं होता। जो ज्ञान बाहर से आ सकता है, वह आपकी बुद्धि को भरेगा। लेकिन जो ज्ञान भीतर से जन्मता है, जो स्वयं की अनुभूति से आता है, वही आपको मौन कर जायेगा । जो ज्ञान बाहर से आता है, वह आपको मुखर करेगा; बुद्धि और बेचैन होकर चलने लगेगी। जो ज्ञान भीतर से आता है, वह आपको मौन कर जायेगा; बुद्धि को चलने की जरूरत न रह जायेगी। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है । ज्ञानी की बुद्धि चलती नहीं। जरूरत नहीं है। अज्ञानी की बुद्धि चलती है। और जितना ज्यादा अज्ञानी हो, उतना बुद्धि को चलाना पड़ता है, क्योंकि उतनी ज्यादा जरूरत होती है।
अगर आंखवाला आदमी इस हाल के बाहर जायेगा, तो वह टटोलेगा नहीं। क्या जरूरत है टटोलने की? आंखें हैं, सोचेगा भी नहीं कि दरवाजा कहां है। सोचने की भी क्या जरूरत है? दरवाजा दिखाई पड़ता है। बस, वह दरवाजे से निकल जायेगा। अगर आप उससे बाद में पूछे कि तुम्हें पता है कि दरवाजा कहां है, तो वह कहेगा कि मैंने खयाल नहीं किया, किस दिशा में है,
ल नहीं किया, किस दिशा में है, मुझे कुछ खयाल नहीं। दरवाजा था-मैं तो बस निकल आया, मैंने सोचा भी नहीं। लेकिन अंधा आदमी अगर इस हाल के बाहर जाना चाहे, तो पहला सवाल उसके सामने यह उठेगा कि दरवाजा कहां है? फिर अंधा लकड़ी से टटोलेगा, फिर अंधा किसी से पूछेगा कि दरवाजा कहां है? अगर आप अंधे से पूछे तो जितनी व्यवस्था से वह जवाब देगा कि दरवाजा कहां है, आंखवाला कभी नहीं दे सकता। ___ यह बड़े मजे की बात है। अंधे से अगर आप बाद में मिलें, तो वह आपको पूरा ब्यौरा बता देगा कि दरवाजा कहां है । कितनी कुर्सियों के बाद उसको दरवाजा मिला। कितनी जगह उसने टटोला । कितनी खिड़कियां बीच में पड़ीं। बायें है कि दायें है, कि कहां है-अंधा जितना ठीक जवाब देगा, आंखवाला नहीं देगा। क्यों?
क्योंकि अंधे को सोचना पड़ा; आंखवाला निकल गया।
जैसे-जैसे भीतर का ज्ञान जन्मेगा, बुद्धि की जरूरत न रहेगी, क्योंकि बुद्धि सब्सिटट्यूट है । वह भीतर का ज्ञान नहीं है, इसलिए हमें बुद्धि का उपयोग करना पड़ता है। जब भीतर का ज्ञान आना शुरू होता है, बुद्धि का उपयोग बंद हो जाता है। बुद्धि जहां शांत होती है,
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