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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 जैसा भी घटित होने लगता है उस चेतना के प्रकाश में, वैसा घटित होने देता है । तो दुनिया के सारे ज्ञानी एक जैसा व्यवहार करते नहीं दिखाई पड़ते। यह बात बड़े मजे की और समझ लेने जैसी बात है कि अगर ज्ञान भीतर हो, तो दो ज्ञानियों का व्यवहार एक जैसा नहीं होगा, लेकिन अगर आचरण थोपा जाए तो हजारों ज्ञानियों का व्यवहार एक जैसा होगा । मगर वे ज्ञानी नहीं हैं। पांच सौ जैन साधुओं को खड़ा कर दें, अगर वे तेरापंथी हैं तो सब मुंह पर पट्टी बांधे हुए खड़े हैं; जैसा कि सैनिक या सिपाही खड़े हों। सैनिक और सिपाही का एक जैसा, एक युनिफार्म में खड़े हो जाना समझ में आता है; एक ढंग से खड़े हो जाना समझ में आता है; उसका कारण है, क्योंकि सैनिक के व्यक्तित्व को मिटाने की पूरी कोशिश की जाती है; ताकि उसमें कोई आत्मा न रह जाए: आत्मा रहे. तो युद्ध में वह कुशल नहीं हो पायेगा । वह जड़ मशीन की तरह हो जाए, उसका सारा काम यांत्रिक हो जाए। तो आप पांच सौ सैनिकों को खड़ा करके देखें, आपको पांच सौ लोग दिखाई पड़ेंगे, लेकिन व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ेंगे। सब चेहरे एक जैसे मालूम होंगे। एक सा कपड़ा, एक सी बंदूक, एक सी टोपी, एक से बाल कटे, सब एक जैसे मालूम होंगे । व्यक्तित्व खो जाता है, भीड़ रह जाती है। इसलिए, मिलिट्री में हम नंबर दे देते हैं, नाम हटा देते हैं, क्योंकि नाम से थोड़ा व्यक्तित्व का पता चलता है। अगर एक आदमी मर जाता है, तो तख्ती पर खबर लग जाती है कि ग्यारह नंबर गिर गया। ग्यारह नंबर गिरने से कुछ नंबर भी पता नहीं चलता, कौन गिर गया? वह कवि था, वैज्ञानिक था, साधु था, असाधु था; उसके बच्चे हैं, पत्नी है?...कुछ पता नहीं चलता । ग्यारह नंबर का न कोई परिवार होता है, न कोई बच्चे होते हैं, न पत्नी होती है । ग्यारह नंबर के क्या बच्चे होंगे? ग्यारह नंबर नंबर गिर जाता है, तख्ती पर लोग पढ़ लेते हैं। बात खतम हो गयी। ग्यारह नंबर की जगह दसरा आदमी ग्यारह नंबर हो जाता है। ध्यान रहे, नंबर रिप्लेस किये जा सकते हैं, व्यक्ति रिप्लेस नहीं किये जा सकते। कोई उपाय नहीं है। आपमें से एक व्यक्ति हट जाए, कोई उपाय नहीं है जगत में कि उसकी जगह दूसरा व्यक्ति रखा जा सके। क्योंकि उसकी पत्नी कहेगी कि कितना ही दूसरा व्यक्ति प्यारा हो, मेरा पति नहीं है। उसके बेटे कहेंगे कि कितना ही अच्छा आदमी हो, लेकिन मेरा पिता नहीं है; उसके मित्र कहेंगे कि सब ठीक है, लेकिन वह मित्रता कहां? उसकी मां कहेगी कि सब ठीक है, लेकिन मेरा बेटा जिसे मैंने जन्मा था...! व्यक्ति को स्थान पर रखा नहीं जा सकता, बदला नहीं जा सकता; नंबर बदले जा सकते हैं। एक फिएट कार की जगह दूसरी फिएट कार रखें, तीसरी रखें, कोई फर्क नहीं पड़ता । यंत्र बदले जा सकते हैं। तो मिलिट्री पूरी कोशिश करती है कि व्यक्ति मिट जाए और यंत्र रह जाए । और उस व्यक्ति को पूरी ऐसी चेष्टा करवायी जाती है कि धीरे-धीरे आज्ञा उसके लिए मैकेनिकल हो जाए, सोच-विचार समाप्त हो जाए। तो इसलिए उसको लेफ्ट-राइट करवाते रहते हैं वर्षों तक लेफ्ट-राइट की कोई जरूरत नहीं है कि बायें घमो. दायें घमो, आगे चलो, पीछे जाओ-उसको करवाते रहते हैं। नया-नया सैनिक भी हैरान होता है कि इतना यह करवाने से क्या मतलब है, और वर्षों तक! लेकिन इसका उपयोग है। धीरे-धीरे 'बायें घूमो' यह सुनते ही उसे सोचना नहीं पड़ता, वह बायें घूमता है । सोचने की कोई जरूरत नहीं रह जाती । जिस दिन बिना सोचे शरीर बायें-द गता है, उस दिन यह आदमी अब सैनिक हो गया; इसकी आत्मा खो गयी। अब इससे कहो, गोली चलाओ, तो इसका हाथ सीधा बंदूक के घोड़े पर जायेगा; गोली चलेगी। अब वह सोचेगा नहीं कि मैं किसको मार रहा हूं? क्यों मार रहा हूं? मारने का क्या अर्थ है, क्या प्रयोजन है? न, अब वह यंत्रवत हो गया। ___ तो सैनिक के लिए तो पोंछ मिटा देना तो शायद उचित हो, लेकिन साधु के लिए पोंछकर मिटा देना बिलकुल गलत है। लेकिन पांच सौ तेरापंथी साधु खड़े कर दें, कि स्थानकवासी साधु खड़े कर दें, कि दिगंबर साधु खड़े कर दें, वे सब बिलकुल एक जैसे लकीर के फकीर होकर चल रहे हैं। इससे लगता है कि भीतर कोई अपनी चेतना नहीं है जो मार्ग खोज सके। शास्त्र ने जो मार्ग दिया है उसको 390 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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