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________________ वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से वस्त्रों से भीतर को पहचानने का कोई उपाय नहीं है। भीतर की क्रांति तो वस्त्रों तक आ जाती है, लेकिन वस्त्रों का परिवर्तन भीतर तक नहीं जाता। लेकिन मनुष्य की कठिनाई है कि हमें बाहर से आदमी दिखाई पड़ता है, भीतर पहुंचने का कोई उपाय भी तो नहीं है। और, धर्म की घटना घटती है भीतर से, और हम देख पाते हैं केवल व्यवहार-अंतरात्मा नहीं। इसी कारण पूरे धर्म की परंपराएं रोगग्रस्त हो जाती हैं। महावीर नग्न हुए; नग्न होकर परम-ज्ञान को उपलब्ध हो गये, ऐसा नहीं। लेकिन परम ज्ञान जैसा उनके जीवन में घटा, वे इतने निर्दोष हो गये कि नग्नता आ गयी। नग्नता पीछे आयी; निर्दोषता पहले घटी। निर्दोषता को हम नहीं देख सकते, लेकिन उनका बच्चे की तरह नग्न खड़े हो जाना हमें दिखाई पड़ा । हममें से बहुत से लोगों को भी उन्होंने प्रभावित किया । उनके जीवन की सुगंध ने, उनका प्रकाश हमें छुआ। हमारे हृदय की वीणा पर कुछ अनुगूंज हुई; कोई गीत हमारे भीतर भी जगा, कोई प्रतिध्वनि हम में भी गूंजी । हम जो कि बिलकुल जड़ हैं, वे भी थोड़े हिले । लेकिन हमें महावीर की निर्दोषता नहीं दिखाई पड़ी, नग्नता दिखाई पड़ी। तो हमने सोचा : हम भी नग्न खड़े हो जाएं तो महावीर-जैसा ज्ञान हमें भी उपलब्ध हो जाएगा। बात बिलकुल उलटी हो गयी। ___ हम नग्न खड़े हो सकते हैं, और नग्न खड़े होने का अभ्यास कठिन बात नहीं है । एकाध, दो दिन अड़चन होगी। जब सभी को जाहिर के आप नग्न रहते हैं तो बात समाप्त हो जायेगी। दो-चार दिन के बाद नग्नता वैसे ही सहज हो जाएगी, जैसे अभी वस्त्र हैं। पश्चिम में बहुत से 'न्यूड-क्लब' हैं। जो लोग उन नग्न क्लबों के सदस्य बनते हैं, उनको एक-दो दिन अड़चन होती है। सच तो यह है कि सिर्फ पहले दिन ही अड़चन होती है, दूसरे दिन से तो वे भूल ही जाते हैं। तीसरे दिन पता ही नहीं रहता कि कोई नग्न भी है, क्योंकि सभी नग्न हैं। ___ मेरे एक मित्र एक नग्न क्लब के सदस्य थे अमरीका में । उन्होंने मुझे बताया कि हम भूल ही गये थे कि कोई नग्न है । हमें याद तो तब आया, जब एक दिन एक कपड़े पहने हुए आदमी भीतर आ गया। जहां पांच सौ लोग नग्न थे, वहां एक आदमी के कपड़े पहने हए भीतर आने से तत्काल हमें पता चला कि अरे, हम नग्न हैं। अन्यथा नग्नता का हमें कोई पता नहीं था। मन अभ्यस्त हो जाता है। लेकिन नग्न-क्लबों में जो बैठे हैं, वे महावीर नहीं हो जायेंगे। नग्न क्लब की सदस्यता से कोई महावीर नहीं हो जाता। __तो यहां हिंदुस्तान में जैन मुनि हैं, जो नग्न हैं। वे नग्न होने से महावीर नहीं हो जायेंगे। महावीर को मरे हुए पच्चीस सौ साल हो गये। इस बीच बहुत लोग उनके पीछे नग्न हुए, एक में भी महावीर की चमक नहीं आयी । कहीं कुछ भूल हो गयी । जो घटना भीतर से बाहर की तरफ घटी थी, जो झरना सदा भीतर से बाहर की तरफ बहता है, हमने उसे बाहर से भीतर की तरफ ले जाना चाहा । फूल निकलते हैं पौधे में; वे भीतर से आते हैं, फिर खिलते हैं। हम जाकर बाजार से फूल ले आयें और पौधे की डाल पर चिपका दें, शायद किसी अजनबी को धोखा भी हो जाए, और जो नहीं जानता है फूल का अंतर्जीवन, वह शायद चमत्कृत भी हो; कहे, 'कैसा सुंदर फूल है!' लेकिन माली को धोखा नहीं दिया जा सकता। और, साधारण आदमी को भी ज्यादा देर धोखा नहीं दिया जा सकता; क्योंकि बाहर से चिपकाया फूल अलग ही मुरझाया हुआ, लटका हुआ होगा। भीतर से आते हुए फूल में जो जीवन है, जो प्रवाह है, जो गति है, वह बाहर से लटकाये हुए फूल में नहीं हो सकती। तो महावीर की नग्नता का फूल तो भीतर से आता है, फिर महावीर के पीछे चलनेवाला नग्नता को ऊपर से आरोपित कर लेता है और सोचता है कि जब बाहर हम महावीर जैसे हो गये तो भीतर भी महावीर जैसे हो जायेंगे। यह गणित बिलकुल ठीक दिखाई पड़ता है, और बिलकुल गलत है। 385 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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