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________________ महावीर वाणी भाग 2 जो आग अगर दबा दी जाती तो आपके स्नायुओं को नष्ट करती और आपके शरीर को विषयुक्त करती, अगर उस आग का कोई भी उपयोग न किया जाये, वह तप हो जाती है। उस आग को अगर सिर्फ देखा जाये, तो वह आग आपके सोने को निखारने लगती है । और अगर आप एक क्रोध को सिर्फ देखने में समर्थ हो जायें तो आप इतने आनंदित होंगे इस अनुभव के बाद, कि आप कल्पना नहीं कर सकते । इतना बल मालूम होगा। आप अपने मालिक हुए। अब कोई दूसरा आदमी आपको क्रोधित नहीं करवा सकता । मतलब हुआ कि अब दूसरे लोग आपके ऊपर हावी नहीं हो सकते। अब दुनिया की कोई ताकत आपको परेशान नहीं कर सकती । आप, चाहे सारी दुनिया आपको परेशान कर रही हो, तो भी निश्चिंत रह सकते हैं। इसका नाम जिनत्व है, ऐसी निश्चिंतता जो दूसरे से मुक्त होकर उपलब्ध होती है। जब आप क्रोध करते हैं, तब आप दूसरे के गुलाम । यह सुनकर हैरानी होगी, क्योंकि क्रोध करनेवाला सोचता है, मैं दूसरे को ठीक कर रहा हूं। क्रोध करनेवाला समझता है अगर मैंने क्रोधन किया तो दूसरा मेरा मालिक हुआ जा रहा है। आपको पता नहीं है कि जीवन बड़ी जटिल बात है। जब आप क्रोध करते हैं, तो आपने दूसरे को मालिक स्वीकार कर लिया, क्योंकि उसने आपको क्रोधित करवा दिया। आपकी चाबी उसी के हाथ में है। किसी ने आपको गाली दी, उसने चाबी घुमा दी, आपका ताला खुल गया । उसकी चाबी घूमती रहे और ताला नहीं खुले, तो चाबी बेकार हो गयी। वह चाबी फेंकने जैसी हो गयी । अगर दुनिया में अधिक लोग अपने क्रोध को, अपने सोने को निखारने का उपाय बना लें, तो दूसरे लोगों को भी अपनी चाबियां फेंकने का मौका मिले; क्योंकि उनका कोई अर्थ न रहेगा। जो चाबी लगती ही नहीं उसका क्या करोगे ? अगर कोई गाली देता हो और उसकी गाली की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, तो दुनिया से गालियां गिर जायें । गालियों में वजन है, क्योंकि गालियों से लोग प्रभावित होते हैं। सच तो यह है कि आप चाहे किसी और चीज से प्रभावित न भी हों, गाली से जरूर प्रभावित होते हैं । कोई जरा गाली दे दे, आप एकदम आंदोलित हो जाते हैं, जैसे तैयार ही बैठे थे। बारूद तैयार थी, किसी की चिनगारी की जरूरत थी । जरा-सी चिनगारी और भभक उठ आयेगी । कामवासना उठती है; अग्नि है, वस्तुतः अग्नि है। रोआं-रोआं आग से भर जाता है, खून गरम हो जाता है, स्नायु तन जाते हैं। इस आग को आप किसी पर उड़ेल दे सकते हैं। यह कामवासना किसी पर उड़ेली जा सकती है और यह कामवासना खुद में भी दबायी जा सकती है। दोनों ही गलत हैं। क्योंकि खुद में दबाने पर हर चीज रोग बन जाती है; दूसरे पर उड़ेलने पर रोग और फैलता है । और रो की आदत निर्मित होती है। कामवासना जगी है और आप चुपचाप साक्षी भाव से देख रहे हैं। भीतर खड़े हो गये हैं, भीतर के मंदिर में, आंख बंद कर ली है और देख रहे हैं कि शरीर में कैसी कामवासना फैल रही है, कैसा रोआं-रोआं उससे कंपित और आंदोलित हो रहा है। उसे देखते रहें । यह आग आपकी चेतना को निखार जायेगी। इस आग की चमक में आप जग जायेंगे। इस आग की तप्तता में आपके भीतर का कचरा जल जायेगा । जीवन की समस्त वासनाएं अग्नियां बन सकती हैं। उनके तीन उपयोग हैं : या तो दूसरे को नुकसान पहुंचायें, या अपने को नुकसान पहुंचायें, और या फिर अपनी आत्मा को उस अग्नि से निखारें । इस निखार के लिए महावीर कह रहे हैं कि जो अग्नि में डालकर शुद्ध किये हुए, कसौटी पर कसे हुए सोने के समान हैं ... ! कसौटी पर भी कसा जाना जरूरी है। क्योंकि पता नहीं अग्नि सोने को निखार पायी या नहीं निखार पायी। इसकी कसौटी कहां होगी? अग्नि में सोना डाल देना काफी नहीं है। हो सकता है अग्नि कमजोर ही सोने का कचरा मजबूत रहा हो, पर्तें गहरी रही हों, सोना Jain Education International 350 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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