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महावीर-वाणी भाग : 2
हिंदू ऋषियों की तो आपको कथाएं पता ही हैं कि जरा में श्राप दे दें; अभिशाप दे दें, नाराज हो जायें, अभी भी हिन्दू भिक्षु जब द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है, तो आपमें डर पैदा हो जाता है कि अगर नहीं दिया तो पता नहीं...? चाहे वह कुछ जानता हो या न जानता हो, अगर अपना चिमटा ही हिलाने लगे, आंख बंद कर ले, कुछ मंत्र वगैरह पढ़ने लगे, तो आपको जल्दी देना पड़ता है कि निबटाओ।
महावीर कहते हैं, खिन्न मत होना, प्रसन्न मत होना, वही पूज्य है—एक । और भिक्षा अपरिचित के घर मांगना, ताकि उसे कोई चिन्ता न हो । अपरिचित के घर मांगना ताकि तुम्हें भी विचार न हो, क्या मिलेगा? नहीं तो तुम भी सोचोगे । अनजान में जाना, भविष्य को निश्चित मत करना। __ लेकिन जैन साधु ऐसा कर नहीं रहा है। जैन साधु परिचित के घर भिक्षा मांग रहा है। जैन साधु अजैन के घर भिक्षा नहीं मांगता,
जैनी का पता लगाता है, और उन्हीं घरों में भिक्षा मांगता है, जहां उसे अच्छा भोजन मिलता है । जैन साधु जिस गांव से गुजरते हैं पद-यात्रा में, वहां अगर जैन न हों तो उनके साथ गृहस्थ चलते हैं, बैलगाड़ी में सामान लादकर । तो हर गांव में जाकर वे चौका तैयार करते हैं। ___ अब यह साधारण गृहस्थ से भी ज्यादा खर्चीला धंधा है । दस-पांच आदमी साथ चलते हैं। और ये श्वेताम्बर साधुओं का तो उतना मामला नहीं है; क्योंकि एक आदमी भी चले और वही भोजन तैयार कर दे, तो भी चल जायेगा। लेकिन दिगम्बर मुनि की और भी तकलीफ है, क्योंकि दिगम्बर मुनि एक ही जगह से भोजन नहीं लेता, जैसा कि महावीर के सूत्र में लिखा है। वह अनेक जगह से भोजन लेता है। दस, पंद्रह, बीस आदमियों का जत्था उसके पीछे चलता है; क्योंकि सभी जगह जैन नहीं हैं, अजैन के घर वह भिक्षा ले नहीं सकता, तो दस-पचीस चौके तैयार होंगे हर गांव में, ये पचीस जो उसके पीछे चल रहे हैं, पचीस चौके बनायेंगे, एक आदमी के भोजन के लिए! फिर वह इन सब चौकों से थोड़ा-थोड़ा मांगकर ले जायेगा!
चीजें कितनी पागल हो जाती हैं! ये पचीस आदमियों का भोजन एक आदमी खराब कर रहा है। ये पचीस चौके व्यर्थ ही मेहनत उठा रहेहैं; ये पचीस आदमियों के साथ चलने का खर्च, सामान ढोना । यह सब फिजूल चल रहा है। और महावीर कहते हैं, अपरिचित के घर... । निश्चित ही ये पचीस आदमी जो चौका लेकर चलेंगे मुनि के साथ, ये थोड़े ही दिनों में मुनि की आदतों से परिचित हो जायेंगे, क्या उसे पसंद है, क्या उसे पसंद नहीं है और अच्छी-अच्छी चीजें बनाने लगेंगे। और मुनि सहजभाव से लेता रहेगा। ___ यह सहजभाव धोखे का है। महावीर कहते हैं, अपरिचित के घर से भिक्षा, उन्छ वृत्ति से...और एक ही घर से भी मत लेना, क्योंकि किसी पर ज्यादा बोझ पड़ जाये! तो थोड़ा-थोड़ा, जैसे कबूतर चलता है, एक दाना यहां से उठा लिया, फिर दूसरा दाना कहीं और से उठा लिया, फिर तीसरा...।
उन्छ वत्ति का मतलब है, कबतर की तरह, एक घर के सामने आधी रोटी मिल गयी, आगे बढ़ गये; दसरे घर के सामने कुछ दाल मिल गयी, आगे बढ़ गये; तीसरे घर के सामने कोई सब्जी मिल गयी...ताकि किसी पर बोझ न हो। और रोज उसी घर में मत पहुंच जाना,
अपरिचित घरों की तलाश करना। _महावीर ने कहा है कि तीन दिन से ज्यादा एक गांव में रुकना भी मत । बड़ी अदभुत बात है। क्योंकि मनसविद कहते हैं कि तीन दिन का समय चाहिये कोई भी मोह निर्मित होने के लिए। अगर आप घर बदलते हैं तो आपको तीन दिन नया लगेगा, चौथे दिन से पुराना हो जायेगा। अगर आप किसी नये घर में सोते हैं तो तीन दिन तक, ज्यादा से ज्यादा आपको नींद की तकलीफ होगी, चौथे दिन सब ठीक हो जायेगा, आदी हो जायेंगे। तीन दिन कम से कम का समय है, जिसमें मन चीजों को पुराना कर लेता है।
तो महावीर कहते हैं, तीन दिन से ज्यादा एक गांव में मत रुकना, ताकि कोई मोह निर्मित न हो। और जब रुकना ही नहीं है तो मोह निर्मित करने का कोई प्रयोजन नहीं है; आगे बढ़ जाना है। अभी जैन साधु करते हैं यह काम, मगर गणित से करते हैं । विलेपार्ले को
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