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महावीर-वाणी भाग : 2
होता। आपने ढूंढ़ ली वह जगह, जहां आप अपने को छोड़ सकते हैं पूरा किसी के हाथ में, पूरे भरोसे के साथ। अब अवज्ञा नहीं करेंगे।
और गुरु निश्चित ही बहुत-सी ऐसी बातें कहेगा, जिनमें मन होगा कि अवज्ञा की जाये, निश्चित ही! क्योंकि अगर गुरु ऐसी ही बातें कहे जिनकी आप अवज्ञा कर ही नहीं सकते, तो आपके शिष्यत्व का जन्म नहीं होगा। इसे समझ लें, अगर गुरु सच में ही गुरु है तो वह बहुत सी ऐसी बातें कहेगा और करेगा जिनमें अवज्ञा करना बिलकुल स्वाभाविक मालूम हो। और जब उस स्वाभाविक अवज्ञा को भी आप छोड़ देते हैं, तभी, तभी शिष्य का पूरा जन्म होता है।
लेकिन, हम बड़े होशियार हैं। हम वह मान लेंगे जो हम मानना चाहते हैं। मेरे पास बहुत तरह के लोग हैं । एक व्यक्ति आया, उसे मैंने कहा-संन्यासी है—कि अच्छा हो कि तू कुछ दिन के लिए भ्रमण करती कीर्तन मंडली में सम्मिलित हो जा। उसने कहा, 'मेरी तबियत ठीक नहीं है, तो मैं तो किसी यात्रा पर न जा सकूँगा।' फिर मैंने थोड़ी देर दूसरी बात की। और फिर मैंने कहा, 'अच्छा, ऐसा कर, तुझे मैं अमरीका भेज देता हूं। वहां एक आश्रम है, उसको तू संभाल ले। उसने कहा कि जैसे आपकी आज्ञा! जब सभी आपको समर्पित कर दिया, तो फिर क्या! फिर थोड़ी देर बात चली । मैंने कहा कि ऐसा है, अमरीका तो तुझे भेज दंगा, पहले तू कीर्तन-मंडली में एक छह महीने...।
उसने कहा, 'आप जानते ही हैं कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती।' मगर वह आदमी यही सोचता है कि वह मेरी अवज्ञा कभी नहीं करता!
आज्ञाकारी होना बहुत आसान है, जब आज्ञा आपके अनुकूल हो। तब आज्ञाकारी होने का कोई अर्थ ही नहीं है। मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा रो रहा है । मुल्ला उससे कह रहा है, 'रोना बंद कर । मैं तेरा बाप हूं, मेरी आज्ञा मान ।' मगर वह रोना बंद नहीं करता । बाप भी क्या कर सकता है, अगर बच्चा रोना बंद न करे । नसरुद्दीन उसकी पिटाई करता है। पिटाई करता है तो वह और रोता है। इतने में ही एक आदमी नसरुद्दीन से मिलने आ गया। उस आदमी को देखकर नसरुद्दीन ने कहा, 'बेटा, दिल खो जितना रोना है, रो! मेरी आज्ञा है!' ___ वह लड़का भी थोड़ा चौंका और उस आदमी ने भी पूछा कि यह क्या मामला है? क्यों उसको रोने को कह रहे हो? उसने कहा, 'सवाल रोने का नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि यह रोये न, लेकिन उसमें मेरी आज्ञा टूटती है। और हर हालत में मुझे अपने पिता का गौरव बचाना जरूरी है। इसलिये इसे कह रहा हूं कि रो, यही मेरी आज्ञा है।'
लेकिन वह बेटा भी चुप हो गया। अब नसरुद्दीन कह रहा है कि नालायक, कोई भी हालत में मेरी आज्ञा मानने को तैयार नहीं है। - आप भी, जब मन की बात होती है तो मानने को तैयार होते हैं, जब मन की बात नहीं होती तो अड़चनें डालते हैं; पचीस बहाने करते हैं; होशियारियां निकालते हैं।
गुरु के पास ये होशियारियां न चलेंगी। आपकी सब होशियारी अज्ञान है। आपको बिलकुल निर्दोष होकर जाना पड़ेगा। '...कभी गुरु की अवज्ञा नहीं करता, वही पूज्य है।'
'जो केवल संयम-यात्रा के निर्वाह के लिए अपरिचित भाव से दोष-रहित उन्छ वृत्ति से भिक्षा के लिए भ्रमण करता है, जो आहार आदि न मिलने पर भी खिन्न नहीं होता और मिल जाने पर प्रसन्न नहीं होता, वही पूज्य है।' 'संयम-यात्रा के निर्वाह के लिए...।'
महावीर कहते हैं, जीवन का एक ही उपयोग है कि महाजीवन उपलब्ध हो जाये। अगर जीवन उपकरण बन जाता है, साधन बन जाता है महाजीवन को पाने के लिए, परमात्म-जीवन को पाने के लिए, तो ही उसका उपयोग हुआ । उसका और कोई उपयोग नहीं है। इसलिए
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