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महावीर-वाणी भाग : 2
हुई होगी। जबसे वैज्ञानिकों को पता चला है कि ध्रुव की बर्फ पिघलायी जा सकती है, तब से यह संदेह है कि वह बाढ़ भी किसी युद्ध का परिणाम थी। वह अपने आप नहीं हो गयी थी, किसी महायुद्ध में, किसी महासभ्यता ने बर्फ को पिघला डाला, सारी जमीन ड्रब गयी। वह महाप्रलय थी। वह कल फिर हो सकती है। आदमी का वश कितना है?
हिरोशिमा पर बम गिरा, जो जहां था वहीं सख गया, एक सेकेंड में । एक तस्वीर मेरे मित्र ने मझे भेजी थी। एक बच्ची सीढियां चढकर अपना होम-वर्क करने ऊपर जा रही है, रात नौ बजे वह अपनी किताब, बस्ता, बही के साथ सूखकर दीवार से चिपक गयी। राख हो गयी । एक लाख बीस हजार आदमी सेकेंडों में राख हो गए। उनकी भी आकांक्षाएं आप ही जैसी थीं। उनकी भी योजनाएं आप ही जैसी थीं। उन्होंने भी समय का बड़ा भरोसा किया था। उन्होंने भी शरीर का बड़ा बल माना था । वह एक सेकेंड नहीं रुकता। अभी हम यहां बैठकर बात कर रहे हैं, एक सेकेंड में सब रुक जा सकता है। और कोई उपाय नहीं है शिकायत का।।
महावीर कहते हैं, 'शरीर है दुर्बल, काल है निर्दयी। यह जानकर भारंड पक्षी की तरह अप्रमत्त भाव से विचरण करना चाहिए।'
भारंड पक्षी एक मिथ, माइथोलाजिक, पौराणिक पक्षी है, एक काल्पनिक कवि की कल्पना है कि भारंड पक्षी मृत्यु से, समय से, जीवन की क्षणभंगुरता से इतना ज्यादा भयभीत है कि वह सोता ही नहीं। वह उड़ता ही रहता है, जागता हुआ। कि सोये, और कहीं मौत न पकड़ ले, कि सोये और कहीं जीवन समाप्त न हो जाये, कि सोये और कहीं वापस न उठे। काल्पनिक पक्षी है।
तो महावीर कहते हैं, भारंड पक्षी की तरह समय निर्दयी, शरीर दुर्बल, ऐसा जानकर अप्रमत्त भाव से, बिना बेहोश हुए, होशपूर्वक विद अवेयरनेस, जागरूकता से जीना ही प्राज्ञ व्यक्ति का, प्रज्ञावान व्यक्ति का लक्षण है।
ग का, महावीर का, बुद्ध का, क्राइस्ट का । वह सूत्र है अप्रमत्त भाव, अवेयरनेस, होश । इसे हम आगे समझेंगे।
एकही
आज इतना ही। रुकें पांच मिनट, कीर्तन करें, और फिर जायें!
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