SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तोड़ने में लगा था, तब इंग्लैंड का एक बड़ा राजनीतिज्ञ उससे मिलने गया—एक बड़ा कूटनीतिज्ञ । सातवीं मंजिल पर हिटलर अपने आफिस में बैठकर उससे बात कर रहा था। और हिटलर ने उससे कहा कि 'ध्यान रखो, जाकर अपने मुल्क में कह देना कि जर्मनी से उलझने में लाभ नहीं है। मेरे पास ऐसे सैनिक हैं. जो मेरे इशारे पर जीवन को ऐसे फेंकदे सकते हैं. जैसे कोई हाथ से कचरे को फें __ तीन सैनिक द्वार पर खड़े थे। इतना कहकर एडोल्फ हिटलर ने पहले सैनिक से कहा कि खिड़की से कूद जा! वह पहला सैनिक दौड़ा। अंग्रेज कूटनीतिज्ञ तो समझ ही नहीं पाया, वह खिड़की से छलांग लगा गया। उसने यह भी नहीं पूछा, 'क्यों ?' अंग्रेज राजनीतिज्ञ की छाती कांपने लगी। वह बहुत परेशान हो गया; उसे पसीना आ गया। और हिटलर ने कहा, 'शायद इतने से तुझे भरोसा न हो'-दूसरे सैनिक को कहा, 'खिड़की से कूद जा !' दूसरा सैनिक भी खिड़की से कूद गया ! हिटलर ने कहा कि 'शायद अभी भी भरोसा नहीं आया।' और तीसरे सैनिक से कहा, 'तू भी खिड़की से कूद जा!' तब तक अंग्रेज राजनीतिज्ञ ने हिम्मत जुटा ली। वह भागा खिड़की से कूदते सैनिक को बांह पकड़कर रोका और कहा, 'पागल हो गये हो? जीवन को ऐसे खोने की क्या आतुरता है?' उस सैनिक ने कहा 'यू काल दिस लाइफ? इसे तुम जीवन कहते हो?' । जिसे हम जीवन कहते हैं, वह भी जीवन नहीं है। लेकिन हम उसे ही जानते हैं, उसके अतिरिक्त जीवन का हमें कोई अनुभव नहीं है। अगर हमें थोड़ी-सी भी प्रतीति हो जाये वास्तविक जीवन की, तो इस जीवन को हम भी वैसे ही छोड़ने को राजी हो जायेंगे जैसे एडोल्फ हिटलर का सैनिक उसके नीचे हिटलर की ज्यादतियों से परेशान होकर जीवन को छोड़ने को उत्सुक है, आतुर है। लेकिन हमें किसी और जीवन का अनुभव न हो तो बड़ी कठिनाई है। जो है, उसे ही हम सब कुछ मानकर जी लेते हैं। क्षुद्र सब कुछ मालूम होता रहता है, क्योंकि विराट का कोई स्वाद नहीं मिलता। और हमने इस ढंग की व्यवस्था कर ली है कि विराट का स्वाद मिल भी नहीं सकता । हमने कोई जगह . भी नहीं छोड़ी कि विराट हम में उतर सके। __महावीर का यह सूत्र कहता है, कौन पूज्य है। पूज्य वही है जो विराट को उतरने की अपने में जगह दे । क्षुद्र वही है, अपूज्य वही है, जो सब तरफ से अपने को बंद कर ले और अपनी क्षुद्रता में ही डूब मरे, लेकिन हम तो पूजते भी उन्हीं को हैं, जो अपनी क्षुद्रता को ही जीवन का शिखर बना लेते हैं। हम पूजते ही उनको हैं, जो अपने अहंकार को गौरीशंकर बना लेते हैं। पूजते हैं हम राजनीतिज्ञों को; पूजते हैं हम शक्तिशालियों को; पूजते हैं हम अभिनेताओं को, हमारे मन में पूज्य की धारणा भी बड़ी अजीब है। जहां पूज्य जैसा कुछ भी नहीं, जहां विराट का कोई संस्पर्श नहीं हुआ है जीवन में, जहां अंधेरे हृदय में कोई प्रकाश की किरण नहीं उतरी है-वहां हमारी पूजा ____समझ लेना जरूरी है कि हम क्या-क्यों इस तरह के लोगों को पूजते हैं, जहां पूज्य कुछ भी नहीं है। शायद आप खयाल भी न किये होंगे। आप वही पूजते हैं, जो आप होना चाहते हैं। पूज्य आपका भविष्य है। अगर आप अभिनेता को पूजते हैं, और उसके आसपास भीड़ इकट्ठी हो जाती है पागलों की, तो उसका अर्थ है कि वे सब पागल हैं, जीवन का एक लक्ष्य मन में लिए हुए हैं कि वे भी अभिनेता हो सकते हैं, नहीं हो पाये, हो जायें किसी दिन, उसी आशा से जी रहे हैं। ___ आप जिसे पूजते हैं, उससे खबर देते हैं कि आपके जीवन का आदर्श क्या है? अगर राजनीतिज्ञों के आसपास भीड़ इकट्ठी होती है, तो उसका अर्थ है कि आप भी शक्ति, पद, यश को पूजते हैं। और जिसे आप पूजते हैं, वह आपकी महत्वाकांक्षा की खबर है। आप जहां दिखायी पड़ते हैं, वहां अकारण दिखायी नहीं पड़ते। जिन चरणों में आपके सिर झुकते हैं, अकारण नहीं झुकते। आप उन्हीं चरणों में सिर झुकाते हैं, जो आपके भविष्य की प्रतिमा हैं, जो आप चाहते हैं कि हो जायें। तो महावीर पूज्य-सूत्र में कुछ सूत्र दे रहे हैं कि 'कौन पूज्य है?' 316 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy