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पांच समितियां और तीन गुप्तियां
पायेंगे कि मुश्किल से दस-पांच वाक्य से काम चल जाता है; गूंगे रहने से भी काम चल जाता है। लेकिन बोले जा रहे हैं; गूंगे तक बोले जाते हैं। गूगों तक को भी चैन नहीं है। ___ मैंने सुना है कि एक फैक्टरी में गूंगी स्त्रियों को काम देने का मालिक ने इंतजाम किया। और एक दस-बारह स्त्रियों का मंडल, गूंगी स्त्रियों का... काम ऐसा था कि हाथ से ही करने का था। लेकिन गूंगी स्त्रियां इशारे से एक दूसरे से बातचीत करती जाती हैं। फिर एक पुरुष को भी, जो गूंगा था, उसी डिपार्टमेन्ट में भेज दिया कि ठीक रहेगा—'वहां इतने गूंगे हैं, तुम भी उनके साथ रहो।' उसने तीन दिन बाद आकर कागज पर लिखकर कहा कि मेरा इस्तीफा स्वीकार कर लें।' मालिक ने पूछा, 'क्या बात है?'-'वे औरतें बहुत बातें करती हैं। मेरा सिर खा गई हैं।' मालिक ने कहा, 'लेकिन वे तो सब गूगी हैं !' तो उस गूंगे ने लिखा, 'लेकिन गूंगी होने से क्या होता है? वे सब इशारा कर रही हैं एक-दूसरे को, मैं अकेला वहां फंस गया हूं।' __ औरतें गूगी हों तो भी क्या फर्क पड़ता है, औरतें ही हैं। उसने कहा, 'वहां तो मेरी जान ही निकल जायेगी। और मैं तो समझता हूं उनके इशारे का मतलब क्या है, क्योंकि मैं भी गूंगा हूं।'
बड़ी बातचीत हो रही है। गूंगे तक बातचीत में लगे हैं। तो हम जो बोलनेवाले हैं, महावीर कहते हैं, उनको धीरे-धीरे गूंगे होने की कला सीखनी चाहिये।
वचन को रोक लेना है, 'वचनगुप्ति' । संभालना है भीतर; जल्दी नहीं करनी है। व्यर्थ को तो रोक ही लेना है-सार्थक को भी भीतर रोकना है, ताकि वह बीज की तरह भूमि में रुका रह जाये और अकुंरित हो सके। पर हम सार्थक-व्यर्थ सब फेंके जा रहे हैं, उलीचे जा
और तीसरा महावीर कहते हैं, 'कायगुप्ति ।' शरीर को भी सिकोड़ना है : यह एक प्रक्रिया है महावीर की, खास । चलते, उठते, बैठते - ऐसे चलना है जैसे शरीर सिकुड़ता जा रहा है, छोटा होता जा रहा है। - आप जानकर हैरान होंगे कि शरीर का विस्तार आपकी वासना का विस्तार है; शरीर का विस्तार आपकी कल्पना पर निर्भर है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन मुल्कों में लोग लंबे होते हैं, उनमें वे लंबे होते चले जाते हैं। उसका कारण वंशानुगत तो है ही, लेकिन आसपास लंबे लोगों को देखकर बच्चे को लंबे होने की कल्पना प्रगाढ़ होती है। जहां ठिगने लोग होते हैं वहां ठिगने होने की कल्पना प्रगाढ़ होती है।
बर्नार्ड शॉ मरने के पहले-कुछ वर्ष पहले लन्दन के आसपास के सब मरघटों में गया, यह देखने कि किस गांव में सबसे ज्यादा लम्बी उम्र तक लोग जीते हैं। आखिर उसने एक गांव खोज लिया, जिसमें एक कब्र पर पत्थर लगा हुआ था कि यह आदमी 17 वीं सदी में जन्मा. और 18 वीं सदी में, कम उम्र में ही. सौ वर्ष बाद मर गया। बर्नार्ड शॉ ने उसी गांव में रहने का तय कर लिया। उस ने पछा, 'तुम्हारा मतलब क्या है?' उसने कहा, 'जिस गांव में लोग सोचते हैं कि सौ वर्ष में मरना कम उम्र में मरना है, उस गांव में ज्यादा जीने का उपाय है, कल्पना को फैलाव है।' ___ अगर पुराने ऋषि बच्चों को आशीर्वाद देते थे कि 'शतायु हो! सौ वर्ष तक जीओ'- तो उनके आशीर्वाद से कोई सौ वर्ष तक नहीं जी सकता। लेकिन जहां सब बड़े-बूढ़े कह रहे हों कि सौ वर्ष तक जीओ, वहां बच्चे की कल्पना सौ वर्ष तक जीने की प्रगाढ़ हो जाती है। वह कल्पना शरीर को खींचती है।
कई बार ज्योतिषी आदमियों को मार देते हैं । वे कह देते हैं कि 'बस, अब तो अंतिम समय आ गया है, दो ही साल में आपका मरना है।' ज्योतिषी कह रहा है, ये इसलिए नहीं कि यह आदमी दो साल में मरने ही वाला था-बल्कि यह आदमी मर जायेगा दो साल में,
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