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महावीर-वाणी भाग : 2
बड़े आश्चर्य की बात है कि शिकारी, जिनको हम शुद्धतम हिंसक कहें, हमेशा मिलनसार और अच्छे लोग होते हैं। अगर आपको किसी शिकारी से दोस्ती है, तो आप चकित होंगे कि वह कितना मिलनसार है—है हत्यारा ! लेकिन अहिंसा की चेष्टा करनेवाला व्यक्ति, जिसने अपनी चेतना को नहीं बदला, अकसर मिलनसार नहीं होगा-दुष्ट मालूम पड़ेगा, कठोर मालूम पड़ेगा। उसे आप झुका नहीं
सकते। वह झकेगा भी नहीं. मिलने आयेगा भी नहीं। ___ क्या कारण है कि शिकारी इतने मिलनसार होते हैं, जो हिंसा कर रहे हैं! उनकी हिंसा शिकार में निकल जाती है, आदमी की तरफ निकलने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। जो सब तरफ से हिंसा को रोक लेता है, उसकी हिंसा आदमी की तरफ निकलनी शुरू हो जाती है। अगर अहिंसा को माननेवाले जैनों ने इस देश में किसी भी दूसरे समाज के मुकाबले ज्यादा पैसा इकट्ठा किया है, तो उसका कारण है। क्योंकि हिंसा का सारा रुख बाकी तरफ से तो बच गया, हिंसा और कहीं तो निकल न सकी, सिर्फ धन की खोज में, धन को खींचने में निकल सकी।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है, जो मैं कह रहा हूं कि आपकी वृत्तियां अगर एक तरफ से रोक दी जायें तो दूसरी तरफ से निकलती हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि अगर कोई दौड़नेवाला, तेज दौड़नेवाला प्रतियोगी पंद्रह दिन दौड़ने के पहले संभोग न करे तो उसकी दौड़ की गति ज्यादा होती है, अगर संभोग कर ले तो कम हो जाती है। अगर परीक्षार्थी सुबह परीक्षा दे और रात संभोग कर ले, तो उसकी बुद्धि की तीक्ष्णता कम हो जाती है; अगर परीक्षा के समय में संभोग न करे तो उसकी बुद्धि की तीक्ष्णता ज्यादा होती है। सैनिकों को पत्नियां नहीं ले जाने दिया जाता, क्योंकि अगर वे संभोग कर लें तो उनकी लड़ने की क्षमता कम हो जाती है । उनको वासना से दूर रखा जाता है, ताकि वासना इतनी इकट्ठी हो जाए कि छुरे में प्रवेश कर जाये । जब वे किसी की हत्या करें तो हत्या काम-वासना का कृत्य बन जाये।
यह जानकर आप चकित होंगे कि जब भी कोई समाज समृद्ध हो जाता है तो उसके हार के दिन करीब आ जाते हैं, क्योंकि उसके सैनिक भी आराम से रहने लगते हैं। जब कोई समाज दीन-दरिद्र होता है तो उसके हारने के दिन नहीं होते। कभी भी अत्यंत दरिद्र समाज अगर समृद्ध समाज से टक्कर में पड़ जाये, तो समृद्ध को हारना पड़ता है। यह भारत इस अनुभव से गुजर चुका है। तीन हजार साल निरंतर भारत पर हमले होते रहे। और जो भी हमलावर था इस मल्क पर-वह हमेशा गरीब था, दीन था, दखी था, परेशान था। लेकिन उसकी परेशानी इतनी ज्यादा थी कि हिंसा बन गई । हम यहां बिलकुल सुखी थे, खाते-पीते थे, प्रसन्न थे, आनंदित थे, हमारी कुछ इतनी वासना इकट्ठी नहीं थी कि हिंसा बन जाये। - आप देखें, अगर आप दो-चार दिन ब्रह्मचर्य का साधन करें तो आप पायेंगे, आपका क्रोध बढ़ गया है। बड़े मजे की बात है। क्रोध बढ़ना नहीं चाहिए ब्रह्मचर्य के साधने से, घटना चाहिए। लेकिन आप अगर पंद्रह दिन ब्रह्मचर्य का साधन करें, आपका क्रोध बढ़ जायेगा; क्योंकि जो शक्ति इकट्ठी हो रही है, अब वह दूसरा मार्ग खोजेगी। जब तक आपको ध्यान का मार्ग न मिल जाये, तब तक ब्रह्मचर्य खतरनाक है; क्योंकि ब्रह्मचारी आदमी दुष्ट हो जायेगा । आप दो-चार दिन उपवास करके देखें, आप बंद ही हो जायेंगे, क्रोधी हो जायेंगे।
सभी को अनुभव है कि घर में एक-आध आदमी धार्मिक हो जाये तो पूरे घर में उपद्रव हो जाता है; क्योंकि वह धार्मिक आदमी सबको सताने की तरकीबें खोजने लगता है। उसकी तरकीबें भली होती हैं, इसलिये उनसे बचना भी मुश्किल है। वह तरकीबें भी ऐसी करता है कि आप यह भी नहीं कह सकते कि 'तुम गलत हो।' क्योंकि वह इतना अच्छा है, उपवास करता है, ब्रह्मचर्य साधता है, सुबह से उठकर योगासन करता है-बुराई तो उसमें आप खोज ही नहीं सकते। न सिगरेट पीता है, न शराब पीता है, न होटल में जाता है, न सिनेमा देखता है; घर में ही बैठकर गीता, रामायण पढ़ता रहता है। मगर वह जितना इकट्ठा कर रहा है उतना निकालेगा, चिड़चिड़ा हो
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