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________________ पांच समितियां और तीन गुप्तियां की मूर्च्छा तृप्त नहीं हो पाती तो बीमार हो जाते हैं, रुग्ण हो जाते हैं । रिप्ले जवान था और प्रसिद्ध होना चाहता था। तो जब उसे कुछ नहीं सूझा तो उसने एक आदमी से सलाह ली। जिससे सलाह ली वह एक सर्कस का मालिक था । उसने कहा, 'यह भी कोई खास बात है, बिलकुल सरल बात है। तू आधी खोपड़ी के बाल काट दे, आधी दाढ़ी काट दे, आधी मूंछ काट दे - और सड़क से सिर्फ गुजर, कुछ मत बोल किसी से। लोगों को देखने दे, कोई कुछ पूछे तो मुस्कुरा ।' रिप्ले ने कहा, 'इससे क्या होगा'? उसने कहा कि 'तीन दिन के बाद तू आना ।' तीन दिन बाद आने की जरूरत न रही, सारे अखबारों में खबरें छप गईं। जगह-जगह लोग खड़े होकर देखने लगे । नाम व पता उसने अपनी छाती पर लिख रखा था। लोग उससे पूछते कि 'आप कौन हैं?' तो वह सिर्फ मुस्कुराता । सड़कों पर सिर्फ घूमता रहता । तीन दिन न्यूयार्क में प्रसिद्ध हो गया। तीन महीने के भीतर पूरी अमेरिका उसको जानती थी। तीन साल के भीतर दुनिया में बहुत कम लोग थे जो उसको नहीं जानते थे । फिर तो उसने जिन्दगीभर इस तरह के काम किए। और इस जमीन पर कम ही लोग इतने प्रसिद्ध होते हैं, जैसा राबर्ट रिप्ले हुआ। फिर तो वह इसी तरह के उल्टे-सीधे काम में लग गया। .... मगर प्रसिद्धि मिलती है, अहंकार तृप्त होता है, अगर आप सिर्फ खोपड़ी के बाल काट लें आधे तो। जिसको आप साधु कहते हैं, वह जो साधु नाम का जीव है, उनमें से सौ में से निन्यानबे लोग खोपड़ी के आधे बाल काटे हुए हैं ! मगर उससे प्रसिद्धि मिलती है, सम्मान मिलता है, आदर मिलता है, मूर्च्छा तृप्त होती है । मूर्च्छा के लिए अहंकार भोजन है । अहंकार के लिए मूर्च्छा सहयोगिनी है। महावीर कहते हैं, ‘ईर्या-समिति' पहली समिति है । व्यक्ति जो भी करे, होशपूर्वक करे। करने की फिक्र छोड़ दे कि वह क्या कर रहा है, इसकी फिक्र करे कि मैं होशपूर्वक कर रहा हूं कि नहीं । '— गलत तो नहीं कर रहे हैं, सही तो कर रहे हैं। चोरी तो नहीं कर रहे हैं, दान हम सब की चिंता होती है कि 'हम क्या कर रहे हैं?' कर रहे हैं। हिंसा तो नहीं कर रहे, अहिंसा कर रहे हैं। - 'क्या कर रहे हैं' – इस पर हमारा जोर है। महावीर का सारा जोर इस पर है कि वह जो कर रहा है, वह जागकर कर रहा है या सोकर कर रहा है? हंस कर सकते हैं - सोये-सोये, और दूसरी तरफ हिंसा जारी रहेगी । में कलकत्ते में, एक घर में मैं मेहमान था । बहुत बड़े धनपति हैं । सांझ को मैंने देखा कि बाहर कुछ खाटें लगा रखी हैं। तो पूछा कि 'यह क्या मामला है?' उन्होंने कहा कि 'अहिंसा के कारण । खटमल पैदा हो गये हैं खाट में, मार तो सकते नहीं, लेकिन उनको धूप डाल देंगे तो वे मर ही जायेंगे। तो रात को नौकरों को उन पर सुला देते हैं। नौकरों को दो रुपये रात दे देते हैं सोने के लिये ।' अब यह बड़ा मजेदार मामला हुआ । अहिंसक होने की कोशिश चल रही है- - 'खटमल न मर जाये!' लेकिन दो रुपये देकर जिस आदमी को सुलाया है, उसको रातभर खटमल खा रहे हैं! पर उसको दो रुपये मैंने दे दिए हैं, इसलिए कोई अड़चन नहीं मालूम होती ! सब मामला साफ हो गया, सुथरा हो गया ! एक तरफ अहिंसा करो, अहिंसा करने की कोशिश होगी, दूसरी तरफ हिंसा होती चली जायेगी। क्योंकि भीतर से चेतना तो बदल नहीं रही, सिर्फ कृत्य का रूप बदल रहा है; भीतर से आदमी तो बदल नहीं रहा, सिर्फ उसका व्यवहार बदल रहा है। जो व्यवहार को बदलने की कोशिश करेंगे वे पायेंगे कि जो चीज उन्होंने बदली है, वह दूसरी तरफ से भीतर प्रवेश कर गई। Jain Education International 299 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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