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________________ पांच ज्ञान और आठ कर्म जायेगा। इससे तुम्हें क्या लेना-देना है ? तुम अपने जीवन की चिंता करो ! ___ तुम्हें वह चुन लेना चाहिये जो तुम्हारे लिए सार्थक मालूम पड़ता है। लेकिन बड़े अंतराय भीतर हैं । अब ध्यान रहे, जो आदमी कहता है, इम्पाला परेशान कर रही है, वह जरूर इम्पाला में बैठना चाहता होगा। और तो परेशानी का कोई कारण नहीं हो सकता । कहीं-न-कहीं भीतर कोई रस इम्पाला में बैठने का अवश्य मौजूद होगा। उसे रस मेरी बात से ज्यादा गाड़ी में हो, तो समझ में आता है कि मामला क्या है? लेकिन उसे यह दिखाई नहीं पड़ेगा कि उसका रस उसे बाधा दे रहा है, उसे दिखाई पडेगा कि मेरा बैठना बाधा दे रहा है।' ___ मैंने उस वकील को कहा कि ऐसा करें, आपके मन में कोई वासना लम्बी बांह का कुर्ता पहनने की है, उसे पूरा कर लें। उन्होंने कहा कि क्या बात करते हैं आप? कभी नहीं !' मैंने कहा कि आप इतने जोश में आते हैं, इतने जोर से इनकार करते हैं, उसका मतलब ही यह होता है कि है । नहीं तो इतने जोश में आने की क्या बात है? हंस भी सकते थे। आपके मन में कोई वासना है, लेकिन उसे पूरा करने की हिम्मत नहीं है। __ वे थोड़े चिंतित हुए, हल्के हुए । कहने लगे, 'हो सकता है, क्योंकि मेरे बाप मुझे कुर्ता नहीं पहनने देते थे। बाप भी वकील थे, वे कहते थे कि टाई बांधो । आपने शायद ठीक नब्ज पकड़ ली है। मेरे बाप ने मुझे कभी कुर्ता नहीं पहनने दिया। फिर हाईकोर्ट का वकील हो गया तो हाईकोर्ट के ढंग से जाना चाहिये, नियम से जाना चाहिये। शायद कुर्ता पहनने की कोई वासना भीतर रह गई है।' तो मैंने कहा कि 'तुम उसकी फिक्र करो। मेरे कुर्ते से तुम्हें क्यों...? तुम्हें मेरा कुर्ता चाहिये तो ले जाओ। और क्या कर सकता हूं? आदमी हमेशा बाहर सोचता रहता है, लेकिन सब सोचने के मूल कारण भीतर होते हैं। ये अंतराय बड़ा कष्ट देते हैं... बड़ा कष्ट देते हैं, जिनसे कोई प्रयोजन नहीं है। अब एक मित्र अफ्रीका से आये । वह कहने लगे कि वहां एक महात्मा आए थे। और तो सब ठीक था, लेकिन बीच में बोलते-बोलते वह कान खुजलाते थे...।' तुम्हें क्या मतलब उनके कान खुजलाने से? नहीं, जरा शिष्टाचारपूर्ण मालूम नहीं होता । अब अगर इस व्यक्ति का मनोविश्लेषण किया जाए तो कान खुजलाने से कहीं-न-कहीं कोई दबी बात पकड़ में आ जायेगी। कहीं कोई अड़चन इसे होनी चाहिये। यह महात्मा पर छोडो ! महात्मा को कम-से-कम इतनी स्वतंत्रता तो दो कि अपना कान खजलाए तो कोई बाधा न दे ! मगर वह भी नहीं, वह भी नहीं कर सकते आप। अंतराय से महावीर का अभिप्राय है, जिन व्यर्थ की बातों के कारण सार्थक तक पहुंचने में बाधा आ जाती है। ये आठ कर्म हैं। और इन आठ के प्रति जो सचेत होकर इनका त्याग करने लगता है, वह धीरे-धीरे केवल-ज्ञान की तरफ उठने लगता महावीर के पास अनेक लोग इसलिए आने से रुक गये कि वे नग्न थे। वह अंतराय हो गया । मेरे शिविर में कई लोग आने से घबड़ाते हैं कि वहां कोई नग्न हो जाता है। ___ कोई नग्न होता है !... आपको करे तो दिक्कत भी है। होनी तो तब भी नहीं चाहिये; क्योंकि कपड़ा ही तो छुड़ाकर ले गया। लेकिन कोई आपको करे तो भी आपकी स्वतंत्रता पर बाधा है, कोई खुद अपने कपड़े उतारकर रखे तो भी आपको बेचैनी होती है। जरूर नग्नता के साथ आपका कोई आंतरिक उपद्रव है । या तो आप नग्न होना चाहते हैं और हो नहीं पाते, और या फिर दूसरों को 269 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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