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________________ पांच ज्ञान और आठ कर्म अगर कोई बांसुरी बजा रहा है आपको भी पता है कि ऐसे ही कोई ऐरा-गैरा बजा रहा है, तो आप कहेंगे कि 'क्यों सिर खा रहे हो?' और अगर आपको पता चले कि कोई महान कलाकार है, तो आप बिलकुल रीढ़ सीधी करके बैठ जायेंगे कि क्या गजब का संगीत है !' ___ लोग शास्त्रीय संगीत सुनते रहते हैं ! उनको बिलकुल पता नहीं कि क्या हो रहा है? लेकिन शास्त्रीय हो रहा है, तो शास्त्रीय सुनने से वे भी सुसंस्कृत मालूम होते हैं । वे भी सिर हिलाते हैं !... 'दर्शनावरणीय!' आपके पास अपनी आंखें नहीं, अपने कान नहीं, अपने हाथ नहीं-एक्सपर्ट बता रहा है कि 'यह कीमती है, यह सुंदर है, यह बहुमूल्य है !' __ आपके हाथ में हीरा रख दिया जाये और बताया न जाये कि हीरा है, और कह दिया जाये कि एक चमकदार कंकड़ है, आप उसे बच्चों को खेलने को दे देंगे। और एक दिन आपको पता चले कि एक्सपर्टस् कह रहे हैं कि 'कोहिनूर है'-छीन लेंगे बच्चे से, तिजोड़ी में बंद करके रख लेंगे। ___ आपके पास अपनी कोई भी प्रतीति नहीं है; आपका दर्शन विशुद्ध नहीं है- अशुद्ध है, उधार है । आंखें अपनी और आंखों पर पर्दे किन्हीं और के हैं । सब चीजें ऐसी हैं।... सब चीजें ही ऐसी हैं ! मैं रोज देखता हूं। आप रोज अनुभव करते होंगे, चारों तरफ यह घट रहा है। मैं एक मित्र को एक मूर्ति दिखाने ले गया। मूर्ति महावीर की है, लेकिन कुछ अनआर्थोडाक्स है। जैसी होनी चाहिये महावीर की, वैसी नहीं है, कुछ भिन्न है। तो वे खड़े रहे । मैंने कहा कि 'झुको, नमस्कार करो।' उन्होंने कहा, 'क्या झुकने का है ?' मैंने कहा, 'जरा नीचे देखो गौर से, महावीर का चिन्ह बना हुआ है। नीचे गौर से देखा, साष्टांग...सिर रखकर लेट गये ! आखिर आपके भीतर से अपना कुछ उदभावन होता है या नहीं होता? सब दूसरों से संचालित है? तो जिसकी दृष्टि अपनी नहीं है, निज की नहीं है, उसको महावीर कहते हैं, उसके दर्शन पर आवरण है। अपनी आंखें खोजें । और अगर आपको एक पत्थर प्रीतिकर लगता हो, तो हीरे की तरह उसे अपनी तिजोड़ी में संभालकर रखें, और अगर एक हीरा आपको साधारण लगता हो तो कचरे में फेंक दें ! इतनी हिम्मत चाहिये। इतनी हिम्मत न हो तो आदमी कभी भी दर्शन की क्षमता को उपलब्ध नहीं होता। और जिसके पास आंख अपनी नहीं है, वह क्या अपने परमात्मा को खोज सकेगा ! कोई उपाय नहीं है। निजता मूल्यवान है। तीसरी कर्म की एक प्रक्रिया है जो हमें चारों तरफ से घेरे है, उसे महावीर ‘वेदनीय' कहते हैं। दुख के परमाणु हमारे चारों तरफ हैं। उनके कारण हम निरंतर दुखी होते रहते हैं। कुछ लोग, आप जानते होंगे कुछ क्या, अधिक लोग, जिनको आप सुखी कर ही नहीं सकते। आप कुछ भी करें, वे उसमें से दुख निकाल लेंगे। ___ मुल्ला नसरुद्दीन हर साल रोता था कि फसल खराब गई, फसल खराब गई, इस साल वर्षा आ गई, इस साल ज्यादा धूप हो गई, इस साल जानवर चर गये, इस साल पक्षी आ गये । लेकिन, एक साल ऐसा हुआ अनहोना कि न पक्षी आए, न कीड़े लगे, न ज्यादा धूप पड़ी, न ज्यादा वर्षा हुई, न कम वर्षा हुई। फसल ऐसी अदभुत हुई कि लोग कहने लगे कि 'हजारों वर्ष में ऐसा शायद ही हुआ हो।' बूढ़े-से-बूढ़े गांव के लोग कहने लगे, 'बड़ी अदभुत फसल हुई, कुछ भी सड़ा नहीं, कुछ भी गला नहीं, कुछ भी खराब नहीं हुआ।' लेकिन मुल्ला है कि अपने दरवाजे पर सिर लटकाए दुखी बैठा है । उसके पड़ोस के लोगों ने कहा कि नसरुद्दीन, अब तो खुश हो जाओ, अब तो कुछ भी उदासी का कारण नहीं है। उसने कहा कि कारण क्यों नहीं है, कुछ भी सड़ा-गला नहीं है, जानवरों को क्या खिलायेंगे?' 263 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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