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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 ...नचिकेता का पिता दान कर रहा है, नचिकेता पास में बैठा देख रहा है। उसे बड़ी हैरानी होती है। वह पूछता है कि 'ये गायें, जिनमें दूध नहीं है, इनसे क्या फायदा है दान करने से?' बाप नाराज होता चला जाता है। ___ बेटे सरल होते हैं । स्वभावतः क्योंकि अभी उनकी उम्र क्या है? अभी नचिकेता भोला-भाला है। उसे चीजें साफ दिखाई पड़ती हैं। बाप समझ रहा है कि वह दान कर रहा है-उसको दिखाई पड़ रहा है, बेटे को, कि 'कैसा दान ? यह गाय तो दूध दे ही नहीं सकती, उल्टे जिसको तुम दे रहे हो उस पर बोझ हो जायेगी। उसको और घास का इंतजाम करना पड़ेगा, पानी पिलाना पड़ेगा। यह बूढ़ी गाय देने से क्या फायदा है?' पर बाप उसको कहता है कि 'तू चुप रह, तू क्या जानता है ?' लेकिन उससे भी चुप रहा नहीं जाता। आखिर में वह पूछता है कि आप सभी-कुछ दान कर दोगे?' बाप कहता है, 'हां, सभी-कुछ।' तो वह कहता है, 'मुझे किसको दान करोगे? क्योंकि मैं भी तो आपका बेटा हूं।' बाप नाराजगी में कहता है कि 'तुझे मौत को दे दूंगा, यम को दे दूंगा।' लेकिन बड़ी मीठी कथा है कठोपनिषद में कि नचिकेता फिर मृत्यु को दे दिया जाता है । और मृत्यु से नचिकेता जीवन के गहरे-से-गहरे सवाल पूछता है, और जीवन की परम गुह्य साधना को लेकर वापस लौटता है। गहरा प्रतीक यह है कि बाप जब कहता है, तुझे मृत्यु को दे दूंगा, तब वह कहता है तुझे गुरु को दे दूंगा । क्योंकि गुरु का अर्थ ही मृत्यु है । गुरु से गुजरकर तू नया होकर लौट आयेगा! नचिकेता नया होकर लौटता है। अमृत का तत्व सीखकर लौटता है। हमारा डर यही है। ... ध्यान? समाधि? कि हम मर तो नहीं जायेंगे, मिट तो नहीं जायेंगे। हम अपने को बचाकर ध्यान करना चाहते हैं। ध्यान नहीं हो सकता। हमें अपने को छोड़ना ही पड़ेगा, तोड़ना ही पड़ेगा, हटना ही पड़ेगा। मन-पर्याय केवल उन्हीं लोगों के जीवन में उतरेगा, जो मन से दूर हट जाते हैं। क्या करें ...? मन के साथ जहां-जहां तादात्म्य हो, वहां-वहां तादात्म्य न होने दें। क्रोध उठे-पूरा प्राण आपका कहेगा कि क्रोधी हो जाओ-उस समय भीतर शांत बने रहें । क्रोध को घूमने दें चारों तरफ, दबाने की कोई जरूरत नहीं है। हाथ पैर फड़कें, फड़कने दें; मुट्ठियां बंधे, बंध जाने दें। क्रोध शरीर के खून को उत्तप्त कर दे; श्वास तेज चलने लगे, चलने दें। लेकिन भीतर केंद्र पर अलग खड़े देखते रहें कि क्रोध घट रहा है मेरे शरीर और मन में, लेकिन मैं पृथक हूं, मैं अन्य हूं, मैं अलग हूं। मैं सिर्फ देखनेवाला हूं। जैसे यह किसी और को घट रहा है। ___ कामवासना पकड़े, ऐसे ही दूर खड़े हो जायें, लोभ पकड़े, ऐसे ही दूर खड़े हो जायें, विचारों का झंझावात पकड़ ले, दूर खड़े हो जाएं। रात पड़े हैं बिस्तर पर, नींद नहीं आ रही है! विचार पकड़े हुए हैं। विचारों के कारण नींद में बाधा नहीं पड़ती ; आप विचारों के साथ तादात्म्य जोड़ लेते हैं, इससे बाधा पड़ती है। अब दोबारा जब ऐसा हो रात नींद न आये और विचार पकड़े हो, तब कुछ न करें, सिर्फ आंख बंद किये इतना ही अनुभव करें कि 'मैं अन्य हूं, ये विचार अन्य हैं। जैसे आकाश में बदलियां चल रही हैं, ऐसे मन में विचार चल रहे हैं; जैसे रास्ते पर कारें चल रही हैं, ऐसे मन में विचार चल रहे हैं, मैं अपने घर में बैठा देख रहा हूं-सिर्फ देखते रहें। थोड़ी ही देर में आप पायेंगे, विचार खो गये, आप गहरी निद्रा में प्रवेश कर गये। ____ ध्यान की प्रक्रिया भी यही है कि विचार से अपने को तोड़ लेना । विचार से टूटते ही व्यक्ति को ‘मन-पर्याय' की अवस्था शुरू हो जाती है। महावीर मन-पर्याय को चौथा ज्ञान कहते हैं। चौथा ज्ञान साधक को उपलब्ध होता है। और पांचवें ज्ञान को महावीर कहते हैं, 'कैवल्य' । सिर्फ-मात्र ज्ञान, जहां कुछ भी जानने को नहीं रह जाता । क्योंकि चौथे ज्ञान में मन जानने को रहता है। मन की पर्याय जानते-जानते, साक्षी होते-होते मन की पर्यायें गिर जाती हैं, रूपान्तरण गिर जाते हैं, मन खो जाता है; आकाश खाली हो जाता है । उस 258 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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