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पांच ज्ञान और आठ कर्म
हैं। जब आप भूख से भरते हैं, तो आप भूखे हो जाते हैं। लेकिन मन-पर्यायवाला व्यक्ति जानेगा कि शरीर को भूख लगी है और मैं जान रहा हूं। यह स्पष्ट भेद होगा। आपने गाली दी है, मन उद्विग्न हो गया, मैं जान रहा हूं। मन की उद्विग्नता मेरी उद्विग्नता नहीं है; मन की बेचैनी मेरी बेचैनी नहीं है। मन एक यंत्र है। मन परेशान है, मैं परेशान नहीं हूं।
लेकिन इस मन के घेरे के बाहर उतरना बड़ा साहस है, बड़े-से-बड़ा साहस है; क्योंकि हमारा पूरा जीवन ही मन का जीवन है। जो भी हम जानते हैं अपने बाबत, वह मन ही है। जो व्यक्ति मन के बाहर उतरता है, उसे लगता है कि मैं मरने की अवस्था में जा रहा हूं ।
ध्यान मृत्यु का प्रयोग है। ध्यान से मन-पर्याय पैदा होता है। लेकिन हम तो डरते हैं थोड़ा-सा भी बाहर निकलने में, क्योंकि मन के बाहर निकलने का मतलब कि मैं खोया। मेरा सारा होना ही मन है। कभी-कभी एकाध कदम भी रखते हैं तो घबड़ाकर फिर पीछे रख लेते हैं।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन के घर कुछ बदमाशों ने हमला किया। दरवाजे उन्होंने सब बन्द कर दिये। मुल्ला को हाथ-पैर बांध कर खड़ा कर दिया और उसके चारों तरफ चाक से एक लकीर खींच दी, और कहा कि 'इस घेरे के बाहर निकले कि समझना कि हत्या हो जायेगी। इस घेरे के बाहर भर मत निकलना ।' उसकी पत्नी को घसीटकर दूसरे कमरे में ले गये । घण्टेभर बाद वे सब - मुल्ला खड़ा था अपने घेरे में – घर छोड़कर चले गये। पत्नी भीतर से अत्यंत दयनीय अवस्था में - कपड़े फटे हुए, खून के दाग- बाहर भागी हुई आयी, और उसने नसरुद्दीन से कहा, 'यू मिजरेबल कावर्ड, डू यू नो व्हाट दे वेअर डूइंग टु मी इन दैट रूम ? क्या कर रहे थे वे लोग उस कमरे में मेरे साथ ? तुम अत्यन्त कायर हो ।'
नसरुद्दीन ने कहा, 'कायर, यू काल मी एकावर्ड, एंड यू नो व्हाट आई डिड, व्हेन दे वेअर विद यू इन दि रूम ? आन थ्री सेपरेट आकेजन्स, आई स्टेप्ड आउट आफ द सर्कल ! तुम्हें पता है कि मैंने क्या किया, जब वे तुम्हारे साथ कमरे में थे ? तीन अलग-अलग मौकों पर घेरे के बाहर मैंने कदम रखा, और तुम मुझे कावर्ड, मुझे कायर कहती हो ।'
बस, ऐसे ही हम भी कभी-कभी मन के घेरे के बाहर जरा-सा कदम रखते हैं, बड़ी बहादुरी समझते हैं, फिर भीतर खींच लेते हैं।... वे आदमी तो जा चुके हैं, नसरुद्दीन अभी भी घेरे में खड़ा था ।... और बहादुर भी अपने को समझ लेते हैं। डर है ! डर क्या था नसरुद्दीन को---कि मौत न हो जाये, कि हत्या न कर दें वे लोग ?
ध्यान में भी वही डर है। और गुरु से बड़ा हत्यारा खोजना मुश्किल है। इसलिये हमने तो उपनिषदों में गुरु को मृत्यु ही कहा है । और जब कठोपनिषद में नचिकेता का बाप उससे कहता है नाराज होकर ... क्योंकि नचिकेता के पिता ने एक उत्सव किया है और वह दान कर रहा है। तो जैसा कि लोग दान करते हैं, मरी, मुर्दा चीजें - गायें, जिनका कि दूध सूख चुका है, वह दान कर रहा है, घोड़े, जो अब बोझ नहीं ढो सकते; रथ, जो अब चल नहीं सकता - -जैसे कि लोग दान करते हैं— दानी। जो आपके काम नहीं आता, लोग उसको दान
कर देते हैं।
क्वेकर समाज में एक नियम है कि दान उसी चीज का करना जो तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद हो, नहीं तो मत करना। नहीं तो उसका कोई मूल्य नहीं है। दान का मतलब ही है, जो तुम्हें सबसे ज्यादा प्यारी चीज हो, उसका दान करना, तो ही किसी मूल्य का है ।
मैं मानता हूं कि क्वेकर की समझ जो दान के संबंध में है, वैसी समझ दुनिया में किसी धर्म में पैदा नहीं हुई। वे कहते हैं; हर सप्ताह एक चीज दान करना, लेकिन वही चीज जो तुम्हें सबसे ज्यादा प्यारी हो । तो उससे क्रान्ति घटित होगी ।
हम भी दान करते हैं ! वह जो कचरा - कूड़ा इकट्ठा हो जाता है, उसको हम दान कर देते हैं! और अकसर दान की चीजें दूसरे लोग भी दूसरों को दान करते चले जाते हैं। क्योंकि किसी के काम की नहीं होती ।
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